आखिर कब तक?
आखिर कब तक?
कब तक...
आखिर कब तक?...
यूँ आसूँ बहाओगी?
वेदना सहकर
बदनामी से डरकर
कब तक जिओगी
आखिर कब तक?...
तुम नारी शक्ति हो
ममता,सौंदर्य की जीवंत मूरत हो
घुट-घुट कर जीना
तुम्हें शोभा देता नहीं
कब तक...
आखिर कब तक?...
अब अपनी शक्ति पहचानो
अपनी अस्मिता अब खुद बचाओ
हुंकार कर दो ऐसा,जिससे
थर्रा जाए यह धरती
कब तक...
यूँ केशव को पुकारोगी
आखिर कब तक?...
तुम ईश्वर की सुंदर कृति हो
भोग-विलास की वस्तु नहीं हो
कभी तो अपनी तप सफल करो
कब तक...
यूँ चारदीवारी में प्रवासिनी रहोगी
आखिर कब तक?..
अब तुम खुल कर जीना होगा
रूढ़िवादी विचारों से लड़ना होगा
हर अंदेशा का जवाब
तुम्हें वीरांगना बन देना होगा
कब तक....
यूँ परीक्षाओं से गुजरोगी
आखिर कब तक?..