आखिर कब होगें आजाद हम
आखिर कब होगें आजाद हम
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सोता है आज भी वो
सुबह की सूखी रोटी खाकर
गरीबी के साम्राज्य की सत्ता से
आखिर कब होंगे आजाद हम
पैनी नजर गड़ाए बैठे हैं वहसी दरिंदे
संकीर्ण मानसिकता की गुलामी से
आखिर कब होंगे आजाद हम
मजबूर है फंदे पर लटकने को किसान
कर्जे के विशाल बवंडर के बोझ से
आखिर कब होंगे आजाद हम
आमदनी से आगे जाने को तैयार है खर्चा
महंगाई डायन किस विकराल रूप से
आखिर कब होंगे आजाद हम
डिग्रियां लिए सड़कों पर घूमता है नौजवान
बेरोजगारी की महा बीमारी से
आखिर कब होंगे आजाद हम
आखिर कब होंगे आजाद हम.....