पत्र
पत्र
राज शाम लिखती हूँ तुम्हारे
नाम की एक चिठ्ठी
कभी कभी सोचती हूँ
भेज दूँ सारी !
फिर सोचती हूँ
क्या फ़ायदा भेज के
अगर तुम्हें हालत
समझना आता तो
थोड़िना हमें छोड़ के जाते !
माँ की बुढ़ापे की
लाठी बनने की उम्र में
तुमने तो हाथ ही तोड़ दिया
पर क्या हुआ,
बेटा साथ नहीं तो
उनकी बहू उनकी
बेटी बनके हमेशा
हर फर्ज़ निभाएंगी।
हाँ हो सके तो कभी
चिट्ठी भेज देना माँ के नाम
उनकी साथ नहीं दे सकते तो
कम से कम जीने का
सहारा ही बन जाओ।
