STORYMIRROR

Jagrati Verma

Abstract Classics

4.5  

Jagrati Verma

Abstract Classics

मातृभाषा

मातृभाषा

2 mins
422


    क्यों ? 

अ भाषा मेरी हिंदी क्यों

    जब अंग्रेजी सब को भाये

    ऐसी भी क्या निज भाषा 

    जो काम न मेरे आये


अ  वो भी क्या ख्वाब मेरे जो पूरे ना हो पाये

    क्या उन जज्बातों का जो और ना सुन पाये

    क्या मातृभाषा के सम्मान में 

    यूँ कुछ लोगों में सिमट के हम रह जाये


अ   नाम मेरा गुमनामी में

     ये दौर अंग्रेजी की मनमानी में

     अस्तित्व मेरा अंधकार में

     क्या रखा है इस हिंदी में


ब   तुम्हारा नाम हिंदी में

    तुम्हारी पहचान हिंदी में

    तुम्हारे गालों पर लुढ़कते आंसुओं से लेकर

    तुम्हारे ओंठो पर सजी मुस्कान हिंदी में


ब   तुमने ख्वाब बुनें हैं हिंदी में

    तुमने जज्बात सुनें हैं हिंदी में

    रिश्ते कई है तुम्हारे यहाँ

    पर तुमने अपने चुनें हैं हिंदी में

 

 ब   तुम्हारी रगों में बहता खून हिंदी में

     तुम्हारी जीत, तुम्हारे जश्न, तुम्हारा जुनून हिंदी में

     तुम्हारे ख्वाब हिंदी में

     तुम्हारी परवाज़ हिंदी में


ब   तुम्हारी मिट्टी की सौंधी महक हिंदी मे

      तुम्हारे अरमानों की खनक हिंदी में

      तुम्हारी खुशियाँ, तुम्हारे रंग, 

      तुम्हारे त्योहारों की चमक हिंदी में


ब     तुमने जो पहला शब्द कहा था वो हिंदी मे था

       जो तुम आखिरी कह

ोगे बेशक हिंदी होगा

       फिर बीच में यह पाबंदी क्यों

       हर बार शरमिंदा हिंदी क्यों


ब    फिर क्यों कोई बाहर से आया हुआ

       तुम्हें चुप करा गया

       इस सादी सी हिंदी को किसी

       आडंबर तले दबा गया

       इस चुप्पी पर रज़ामंदी क्यों

       हर बार शरमिंदा हिंदी क्यों


अ     भाषा हो चाहे हज़ार

       ये बात समझ में आई

       मातृभाषा है 

       प्रेम की इकाई

       भाषाएँ और भी हैं

       इनका हम इस्तेमाल करेंगे 

       पर निज भाषा है अपनी 

       इसका हम सम्मान करेंगे 


साथ

       हमारा क्या कसूर कि 

       कि बोली हैं हज़ार

       भाव सभी का एक है

       सब में एकल प्रेम-सार

       

      श्वेत वर्ण की डोरी

      मोतीयं से विचार

      निज भाषा प्रेम बिन

      काहू ना बेड़ा पार

  

      वाणी का आत्म

      मनोरंजन का संसार

      जो जोड़े समाज के भाव

      मातृभाषा तहू प्रकट आभार।


Rate this content
Log in

Similar english poem from Abstract