हमारे वृक्ष
हमारे वृक्ष
जी करता है उसकी आँचल मे सो जाऊं,
उसे छूकर मै भी सितल हो जाऊ।
सावन सी हरियाली जिसकी,
सेवा करता हर माली जिसकी।
उसका हवा से यूँ ताल बिठाना,
जाते राहि को यूँ रिझाना।
जिसकी रक्षक बनी थी कभी अमृत बिश्नोइ,
उनका बलिदान भूल गया हर कोई।
उसकी तो छाओ में मुरली मनोहर भी थें सोए,
जिनकी चाह में राधा रोए।
कड़कती धूप भी छु ना पाए,
जो इन वृक्षों के अंचल में आये।