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जब महामारी में कालाबाजारी हुई, तब वकीलों की यह आवाज़ है आई. जब महामारी में कालाबाजारी हुई, तब वकीलों की यह आवाज़ है आई.
जाने वालों हम शर्मिंदा हैं, महामारी में भी कालाबाजारी वाले ज़िंदा हैं। जाने वालों हम शर्मिंदा हैं, महामारी में भी कालाबाजारी वाले ज़िंदा हैं।
सभी मांओं को संभाल आऊंगा, मां, आज नहीं, मैं कल आऊंगा सभी मांओं को संभाल आऊंगा, मां, आज नहीं, मैं कल आऊंगा
जड़ें खो गई मेरी उन जड़ों को ढूंढती हूं कहीं। जड़ें खो गई मेरी उन जड़ों को ढूंढती हूं कहीं।
'मैं तो कुछ कहता नहीं' कह कर, दिन-रात सुनती ही जाती हैं 'मैं तो कुछ कहता नहीं' कह कर, दिन-रात सुनती ही जाती हैं
हाथों से जैसे रेत फिसल रही है... मां धीरे-धीरे ढल रही है... हाथों से जैसे रेत फिसल रही है... मां धीरे-धीरे ढल रही है...