ख्यालों की दुनियाँ मे कलम को साथी बना कर शब्दों की माला पिरोने की कोशिश करती हू
क्या तुम अपने घर में मेरा अपना घर दे पाओगे। क्या तुम अपने घर में मेरा अपना घर दे पाओगे।
क्या तुमने कभी मेरे घर को भी उतना अपनाया है। । क्या तुमने कभी मेरे घर को भी उतना अपनाया है। ।
तब एक पिता का दिल भी,, मां का दिल बन जाता है! तब एक पिता का दिल भी,, मां का दिल बन जाता है!
उम्मीद की किरण सी निकलती हूँ मै, नदी की धारा सी निरंतर बहती हूँ मैं। उम्मीद की किरण सी निकलती हूँ मै, नदी की धारा सी निरंतर बहती हूँ मैं।