ज़िंदगी के हीरो..
ज़िंदगी के हीरो..
यह कहानी शुरू होती है आज से सालों पहले l अभी-अभी नेहल की दसवीं कक्षा के परिणाम आए हैं और वह बहुत अच्छे नंबरों से पास हुई है। पर आई बाबा आगे की पढ़ाई के लिए शहर भेजने को तैयार ही नहीं हैं। उनका कहना है कम से कम ग्यारहवीं बारहवीं यही के कालेज से करो। जब बारहवीं में अच्छे नंबर आएंगे तो तुम्हारा दाखिला शहर के कॉलेज में करवा देंगे (मुझे और सब जगह का नहीं मालूम पर यहां महाराष्ट्र में ग्यारहवीं बारहवीं जूनियर कॉलेज के रूप में कॉलेज से ही जुड़ी होती है ना कि स्कूल से। मतलब दसवीं के बाद कॉलेज में ही दाखिला लेना पड़ता है) तो नेहल के गाँव, कस्बा कह लीजिए में दो कॉलेज है ।नेहल की चाची शहर में रहती हैं । वह हमेशा उससे कहती थी कि तुम पढ़ने के लिए मेरे पास ही आ जाओ । तो नेहल दिमागी तौर पर इतना निश्चिंत थी कि इन दोनों कॉलेज के प्रवेश फॉर्म उसने भरे ही नहीं थे, "कि क्या भरना मुझे तो शहर जाकर ही पढ़ाई करनी है" । पर पता नहीं वह नेहल के आई बाबा व चाचा चाची के बीच में क्या बात हुई, उसका जाना रद्द हो गया । अब दाखिले की समस्या . . जैसे तैसे करके नेहल के बाबा ने भागदौड़ करके दोनों कॉलेज के फॉर्म निकलवाएं और जमा करवाया । ज्यादा संभावना थी कि उसे एल.के.पी. कॉलेज में दाखिला मिल जाएगा । पर नेहल की सारी सहेलियोँ और दोस्तो ने आर.एस.के. कॉलेज में दाखिला लिया था ।
अब एक दिन नेहल बहुत ही बुझे मन से अपने दोस्तों के साथ कॉलेज गई। अरे भाई नन्हे नन्हे पंख पसार कर उड़ने की तैयारी करने वालों को आकाश ना मिले तो बुरा तो लगता ही है। कॉलेज में लिस्ट लगने वाली थी।नेहल के दोस्त व सहेलियां निश्चिंत थे कि उनका उस लिस्ट में नाम होगा । पर नेहल को मालूम था कि उसका इस कॉलेज में एडमिशन शायद ही हो, और हो तो भी इस पहली लिस्ट में नाम तो पक्का नहीं होगा। कॉलेज की प्रथम लिस्ट वाली लड़कियों को सरकार की तरफ से फीस माफ थी।
कॉलेज पहुंचते ही नेहल की पहली नजर उस पर पड़ी बहुत ही स्मार्ट बहुत ही . . . . क्या बताऊं . . . उसके पास शब्द नहीं थे। वह, उसका वयक्तित्व, उसका तेज. . . सब कुछ अलग ही था। तभी नेहल की सहेली चिल्लाई नेहल तेरा नाम भी है लिस्ट में है। बस तभी जैसे दिल ने कहा बेटा यह तो तेरा हीरो है तेरा लकी चार्म है । नेहल पता लगा पाये कि वह कौन है? इससे पहले ही वह कहीं इधर-उधर हो गया, जब नेहल लिस्ट में जाकर अपना नाम देख रही थी। खैर क्या फर्क पड़ता है . . ? अब तो दिखता ही रहेगा । एक हफ्ते बाद क्लास शुरू हुई। नेहल को पता चला कि उसके नम्बर सबसे अच्छे थे इसलिए उसका नाम पहली लिस्ट में आया था। वह लड़का कभी-कभार नेहल को दिख जाता। जब वह कॉलेज पहुंचती, वह कॉलेज से जा रहा होता (मैं बता दूँ जूनियर कॉलेज व सीनियर कॉलेज का समय अलग-अलग था)। तो नेहल को लगता कि शायद वह द्वितीय तृतीय वर्ष का छात्र होगा। किससे पूछती उस के बारे में .. ? सहेलियां जान जाती तो बातें बनाती। कभी उसे प्रोफेसर लोगों से बातें करते, हाथ मिलाते देखती। लगता शायद बहुत अच्छा होगा पढ़ने में । वह जिस रोज दिख जाता पता नहीं क्यों नेहल का वह दिन और दिनों से अपेक्षाकृत अच्छा बीतता । धीरे-धीरे वह उसे अपना हीरो मान चुकी थी। अब उनकी पहली सेमेस्टर की परीक्षा थी। वह पढ़ने में होशियार तो थी पर डर रही थी। कि तभी सामने से वह आते हुए दिखा और सच मानिए उस दिन नेहल का इकोनॉमिक्स का पेपर मेरा अच्छा गया था कि उसके 98% नंबर आए थे।
एक दिन नेहल अपने घर के बाहर खड़ी थी। उसका घर मुख्य सड़क के किनारे पर ही है। उसने उसे आते हुए देखा । उसके दिल की धड़कने तेज हो गई। क्या वह यहीं रहता है ? पहले कभी नहीं देखा . . ? क्या उसने मुझे देखा . . . ? नेहल अपलक उसे देख रही थी कि देखूं जाता कहा है ? नेहल के घर से पाँच छहः घर छोड़कर एक हनुमान जी का मंदिर है । वह वही जाकर रुका, गाड़ी खड़ी की, पूजा का सामान लिया और मंदिर में दर्शन करने चला गया । नेहल चाह कर भी उसके पीछे मंदिर नहीं जा पायी। हां भाई वही लेडीस प्रॉब्लम। उस दिन के बाद से नेहल रोज शाम को उसी समय पर रोज घर के बाहर ही खड़ी रहती कि शायद वह आज भी आए। पर वह नहीं आया, वह आया भी तो पूरे एक हफ्ते बाद । मतलब वह हर शनिवार को ही आता है । अब तो नेहल का शनिवार की शाम का समय उसके इंतजार में ही कटता। सच्ची कहती हूँ, वह दिख जाता तो हफ्ता बहुत अच्छा जाता। कभी कभी नहीं भी दिखता था।
ऐसे धीरे-धीरे लुकाछिपी करते-करते दो साल बीत गए। पुराना जमाना, नेहल पढ़ाकू लड़की और समाज का डर। वह उसे प्यार तो नहीं कर पाई पर एक कशिश थी जो उसकी ओर खींचती थी। सीनियर कॉलेज में पहले दिन की पहली क्लास। वह सब क्लास में बैठे थे। वह क्लास के अंदर आया। सब बच्चे खड़े हो गए। नेहल हैरान-परेशान क्या वह उसकी क्लास में ही पढ़ता है ? यह सारे बच्चे खड़े क्यों हो गए हैं ? तो क्या वह हमारे प्रोफेसर है ? वह प्रोफेसर जिनकी बातें सब लड़कियां पूरे दो साल से कर रही थी । क्योंकि वह सब उनके ट्यूशन पर जाती थी तो वह सब जानते थे। एक वह ही मूरख थी । सिर्फ उसे ही नहीं मालूम था कि वह उसके कॉलेज के प्रोफेसर है।उन्होंने अपना परिचय दिया । आवाज इतनी अच्छी कि अमीन सयानी जी के टक्कर की। अरे आप अमीन सयानी जी को नहीं जानते अरे वह बिनाका गीतमाला वाले। नेहल ही नहीं उस जमाने में कोई भी ऐसा नहीं था जो अमीन सायानी जी की आवाज का दीवाना ना हो l पर अब यह सर की आवाज . . . जब पढ़ाना शुरू किया तो लगा ही नहीं कि पढ़ा रहे हैं। लगा जैसे कोई निर्माण कर रहे हो । एक एक शब्द दिमाग में जमता जा रहा था करीने से। वह तो मंत्रमुग्ध सी थी । उनके पढ़ाने का ढंग इतना अच्छा था, छोटी-छोटी कहानी और लोकोक्तियों मुहावरों को रिलेट ( सम्बंधित) करके अकाउंट जैसे नीरस विषय को भी मनोरंजक बना दे रहें थे।
तीन साल तो पता ही नहीं चला कब हंसते खेलते निकल गए । नेहल पढ़ने में अच्छी थी । तो कभी सवाल पूछने, कभी स्टूडेंट काउंसिल के काम से अक्सर उनसे मिलती रहती । उनका अंदाज भी अलग वह विद्यार्थियों के हर गुण को निखारने का प्रयास करते थे। नेहल अंतर्मुखी थी, सिर्फ पढ़ाई में अच्छी थी। पर उन्होंने उसे स्टूडेंट काउंसिल में लिया, काम सौंपे और उन्हें करने का रास्ता भी बताया। नेहल के मन में उनके लिए प्यार के साथ-साथ असीमित आदर का भाव भी सम्मिलित हो गया था । मंदिर वह अब भी आते थे। पर अब नेहल खड़ी नहीं रहती थी । अब उसे अपने कमरे में बैठे-बैठे भी उनकी काइनेटिक के आने की आवाज सुनाई पड़ जाती थी। उसने उन्हें एक दो बार घर पर भी बुलाया था। नाम के अनुरूप उनका व्यक्तित्व सूरज जैसा ही था, विशाल । प्यार शायद मैं अब भी करती थी पर अब यह राधा वाला नहीं मीरा वाला प्यार था, भक्ति से भरा हुआ ।
कुछ घटनाएं जब तक आपके साथ नहीं घटती आप उन पर विश्वास नहीं कर सकते। सच में आप विश्वास नहीं करोगे कि एक बार की बात है । नेहल नौकरी के इंटरव्यू के लिए जा रही थी। लिखित परीक्षा उसने पास कर ली थी। घर से निकलते वक्त वह सोच रही थी काश आज मुझे सर दिख जायें। इसके लिए वह घर से थोड़ा पहले निकल कर कॉलेज भी गई कि वह अपने हीरो अपने लकी चार्म को एक बार देख सके। पर वह वहाँ से आज थोड़ा जल्दी निकल गए थे l अब उनका घर तो उसे मालूम नहीं था । मन ही मन बोलते हुए कि "सर प्लीज दिख जाओ, प्लीज सर दिख जाओ", वह स्टेशन पर पहुँचीं तो बस ट्रेन छूटने का समय ही हो रहा था । तो वह महिला डिब्बे में ना चढ़ कर जो डिब्बा सामने था उसमें ही चढ़ गई। पापा को बाय बोला। हाँ, उसके पापा सर के प्रति उसके पागलपन को जानते थे। अंदर जाकर एक सीट खाली दिखी तो वह उस और बढ़ी । सीट पर बैठी तो देखा सामने ही सर बैठे थे। वह भी कुछ काम से शहर जा रहे थे । पहली बार विश्वास हुआ सच्चे दिल से मांगो तो जरूर मिलता है। बताने की जरूरत नहीं है कि उन्होंने नेहल को इंटरव्यू के लिए कुछ टिप्स दिए और वह नौकरी उसे ही मिली।
एक और घटना बात नेहल की शादी के समय की है। कार्ड देने अपनी सहेली संग वह सर के घर गई थी । तो पता चला कि सर अपनी बहन के घर गए हैं । शायद अमुक तारीख मतलब उसकी शादी के दो दिन बाद आएंगे l उसका मन तो कर रहा था कि शादी ही रद्द कर दूँ कि उसके इतने बड़े शुभ दिन पर उसका हीरो उसके साथ नहीं होगा, उसने उन्हें नहीं देखा तो . ..? पापा ने कहा, "तुम पागलपन मत करो। सर की फोटो देख लेना । मैं फोन नंबर ले लेता हूँ। फोन पर तुम्हारी बात करवा दूंगा" । पापा ने प्रॉमिस तो किया था पर शादी की भाग दौड में भूल गए । सर का फोटो उसने पर्स में रखा । मन ही मन आशीर्वाद मांगा। फिर शादी की रस्में शुरू हो गई। सर के आने की कोई उम्मीद नहीं थी तो उसका ध्यान भी नहीं था। जैसे ही शादी पूरी होने के बाद वह आशीर्वाद लेने के लिए स्टेज से उतरकर नीचे बाबा दादी के पास पहुँची तो पापा वहां सर के साथ खड़े थे। नेहल तो भावुक होकर उनके सीने से चिपक गई, एक बहन, एक बेटी की तरह उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया। वह अब निश्चिंत थी अब उसका जीवन सुखमय बीतने वाला है । आखिर उसके हीरो का आशीर्वाद उसके साथ हैं l
आज बरसों हो गए हैं। अब तो नेहल मायके भी नहीं जा पाती है। मिलना तो दूर की बात है, फोन पर बात करते वक्त समझ ही नहीं आता क्या बोलूं ? क्या पूछूं ? और सच्ची बोलू तो आज जानबूझकर नेहल उनसे मिलना और बात करना नहीं चाहती है।उसके ख्यालों में वह आज भी उतने ही स्मार्ट उतने ही हैंडसम उतने ही यंग हैं। उसकी हिम्मत ही नहीं पड़ती कि वह उनकी कांपती आवाज सुनें या उनको बुढ़ा देखे। पर मेरे नेहल के हीरो नेहल का लकी चार्म आज भी नेहल के साथ है ।उसके मोबाइल में उसकी डीपी पिक्चर की जगह और आपको मालूम है उसके मोबाइल की रिंगटोन, डायल टोन क्या है . . "सर सर ओ सर वी लव यू"।
कुछ सच्चे रिश्ते जो दिल से बनते है वो बिना किसी नाम के दिल के साथ बने रहते है। भले ही वह नेहल के लिए पहली नज़र का आकर्षण थे पर नेहल के दिल के हीरो थे।
