मेरी अधूरी कहानी
मेरी अधूरी कहानी
बात उन दिनों की है जब मैं उम्र के उस पड़ाव पर थी कि कहा जाता है कि शादी की उम्र है. ''तो मात्र 25 साल की उम्र में मेरी शादी एक अच्छा घराना देख कर कर दी गईं '''देखने में कुछ भी बुरा नहीं था। लड़का भी अच्छा ही था। एक अच्छी सरकारी नौकरी और सब बहुत अच्छा। ''तो फिर ऐसा क्यों और क्या था। जिससे मैं खुश नहीं थी। सबको तो मैं खुश ही दिखती हूँ। मेरा स्वभाव ही खुश मिजाज था तो '''कुछ मैं अभिनय की आदी ''' और ये रंगमंच तो मेरे लिये एक अभिशाप साबित हुआ।
एक किताबी कीड़ा कहीं जाने वाली लड़की अपने करिअर की फिक्र में दुनियादारी से अनजान ''जब घर पहुँचती है तो सभी बहने सफाई करने में लगी थी । कल लड़के वाले आने वाले थे। वो मनहूस दिन भी आ जाता है। मुझे यक़ीन नहीं होता अपने सीधापन पर। बिना किसी सवाल के ''उस लड़के को पसंद कर लिया जो मेरे जीवन का हकदार बन बैठा। आखिर क्यों? बिना किसी तार्किक सवाल के जब मैं राजी हो गयी उससे शादी के लिए तो ये कौन सा तरीका है एक शौहर का कि वो अपनी बीवी को अपनी जागीर समझ ले। वो जिसने 25 साल की उस मासूम लड़की से उसकी सारी खुशियाँ छीन ली। इसका एहसास शायद उस शख्स को ना हो ''और दुनिया की नजरों में वो बेकसूर हो। पर मैं उसे कभी माफ़ नहीं कर सकती। शादी के सुन्दर लिबास में सुन्दर सपनों के साथ जब ससुराल आई तो बड़ा सा घर बड़ा परिवार सब बहुत अच्छा।
पर किस्मत में तो अभी कुछ और लिखा था। पहले ही दिन पति देव का जोर से परिवार के लोगों से चिल्लाना कुछ अजीब लगा।. जब उसने पहली बार मेरा हाथ पकड़ा ''तो पहला वो" एहसास अजीब था। उसका मुझे देखना कुछ खास नहीं था। हाँ बस उसे जल्दी थी अपना काम निपटाने लूं उसका नशे की हालत में मुझे बोलना बहुत क्रम था मेरे लिए। मुझे एक बार फिर अपनी मूर्खता पर यकीन नहीं हुआ कि बिना किसी विरोध के सब कुछ समर्पित कर दिया उसको। काश मैं विरोध करती पर ये समाज में ''तवज्जोह ''और दिखावा भारी पड़ गया मुझे। आज मुझे 10 साल हो गये इस दिखावे में इस रिश्ते में और ना जाने क्या क्या नहीं करना पड़ा 'क्या नहीं सहा मैंने ''आखिर लड़कियां क्यूं इतनी कमजोर हो जाती है इस खोखले समाज में । आज पढ़ी लिखी हूँ सरकारी जॉब पर हूँ तो अपने माँ बाप के कारण वो हकदार नहीं बनते। तो ये कौन होता है मेरी जिंदगी का हकदार? मैं कभी नहीं भूल सकती वो जो मैं ना तो दुनिया को बताना चाहती नहीं कुछ लिख सकती जो मुझे पता है वो शब्दों में बयान नहीं हो सकता।