मर्यादा
मर्यादा
दरवाजे पर घंटी बजने पर कल्पना बिस्तर से उठ दरवाजा खोलने के लिए अपने कमरे से बाहर निकली, सामने अमित को देख कुछ सकपका सी गई "तुम इतनी सुबह, सब ठीक तो है ना"?,'अरे मुझे अंदर तो आने दो या सब यही दरवाजे पर ही कह सुन लोगी" , अमित ने हल्की मुस्कान देते हुए कहा। अच्छा आओ अंदर , "मैं जरा मुहं हाथ धो कर आती हूं तुम बैठो, चाहो तो टीवी चला लो" कह कर कल्पना बाथरूम की तरफ चली गई. अमित सोफे पर आंखे बंद सोच रहा था कि उसका और कल्पना का रिश्ता इतना मजबूत है कि दोनों एक दूसरे से कुछ भी कह सुन लेते है और दिल हल्का कर सकून महसूस करते है. कालेज के समय की दोस्ती आज भी वैसे ही बरकरार है।कल्पना दिल्ली पढने आई थी ,नौकरी भी यही मिल गई. तब से यहीं अकले रह रही थी। परिवार और आस पड़ोस के कई लोग कई तरह की बाते भी करते है मगर दोनों ने कभी परवाह नहीं की. विश्वास और स्नेह से भरा दोस्ती का रिश्ता , लिंग भेद से ऊपर हट कर.
"सो गए क्या ? कल्पना ने अमित को झंझोडते हुए कहा, क्या खाओगे नाश्ते में ?" "जो तुम खिला दो ". कल्पना किचन में जा नाश्ता बनाने लगी। अमित सोफे से उठ किचन में आ गया, "मैं कुछ मदद करूँ?"। "नहीं आमलेट ही बना रही हूं साथ में चाय और ब्रेड , कुछ खास काम नहीं है. तुम कहो, क्या हुआ ? कोई परेशानी है क्या ?"
"नहीं, मा पापा ने मेरे लिए एक लड़की देखी है , समझ नहीं पा रहा हां करू या नहीं. क्या वो तुम्हारे और मेरे रिश्ते को समझ पाएगी ? मुझे संशय है." कल्पना ने अमित की तरफ देखा और मुस्कार दी। "चलो नाश्ता करे , सब तैयार है."
"अमित क्या आदमी और औरत के बीच एक ही रिश्ता होता है, हम दोस्त हैं। हर रिश्ते की अपनी सीमा होती है , हमें किसी को कुछ प्रमाण देने की जरूरत नहीं। तुम अपनी होने वाली बीवी से मुझे पहले मिलवा देना, ये हमारा दायित्व है की वो हमारे रिश्ते से असुरक्षित महसूस ना करे। मैं दोस्त हूं तुम्हारी मगर वो जीवन संगनी , तुम्हे उससे उसकी जगह और मान बनाए रखना होगा , मुझे नहीं लगता कोई भी समझदार औरत हमारी दोस्ती पर एतराज करेगी। यही बात तुम्हे भी समझने होगी। बताओ फिर कब मिलवा रहे हो अपनी संगनी से ," कल्पना खिलखिला उठी। "अब हम तीन होने जा रहे हैं। मैं उसे भी अपना दोस्त बना लूंगी, देखना कंही तुम असुरक्षित महसूस ना करने लगो". अमित भी हंस पड़ा।
कल्पना और अमित जानते थे कि समाज की सोच संकीर्ण है मगर उन्हे अपनी दोस्ती पर अटूट विश्वास और मर्यादा के दायरे की पहचान थी। हर रिश्ते की नीव विश्वास और स्नेह पर आधारित होती है, जिसके चारो तरफ मर्यादा का दायरा होता है। अमित कल्पना से बात कर हल्का महसूस करने लगा। चलो नाश्ता हो गया , "अब मैं चलता हूं। जल्द ही तुम्हे अपनी संगनी से मिलवाऊंगा।"
"बाय, कल्पना ने मीठी सी मुस्कान के साथ अमित को विदा किया."