मां का दिल
मां का दिल
हंसती-मुस्कुराती, इठलाती हुई *छनिया* अपनी ही धुन में
गुनगुनाती हुई बढ़ती चली जा रही थी।
वो पंख लगाकर अपनी मां के पास पहुंच जाना चाहती थी। पर नन्हें-नन्हें कदम अपनी, गति के अनुसार ही बढ़ पा रहे थे।
शाम का समय बीतने को था, अंधेरा भी गिर रहा था।
बुधिया अपनी ड्योढ़ी पर टकटकी लगाए हुए, छनिया का इंतजार कर रही थी।
बुधिया मन ही मन बोले जा रही थी कि, ये छनिया भी, कभी किसी की सुनती ही नहीं हैं, , अपनी ही धुन में जीती है, पर है तो बच्ची ही, उसका भी मन करता है, उछलने-कूदने का, उसके जिया को आस होती है कि वो कुछ अच्छा खाये, उसका मन चंचल है, सूखी रोटी उसके गले के पार नहीं जाती। चाहे वो मुख से कुछ ना बोले, पर आंखों की कशिश बयां कर जाती है।
बुधिया अपनी विचारमाला गूंथने में मग्न खड़ी थी कि, देखती है सामने मोड़ से छनिया मटकती हुई चलती चली आ रही है। बुधिया के पास पहुंचते ही छनिया बुधिया के गले लग जाती है, ,
बुधिया कहती हैं कि कहां रह गई थी, कब से तेरा इंतज़ार कर रही हूं, ,आज का फिर से दीदी ने रोक लिया था, कोनूं एक्स्ट्रा काम कराने लगी थी क्या ?
छनिया चहकती हुई, नहीं मां, दीदी ने नहीं रोका था, , वो तो मैं खुद ही बैठ गई थीं।
चीनू गुड़िया, बोल रही थी, कि वो, अपनी मम्मी, मतलब दीदी के लिए, , एक बहुत बड़ा सा कोई कारड (( कार्ड)) बना रही हैं, , पर वो दीदी को नहीं दिखाना चाहती थी, वो कह रही थी कि कल ऐतवार को कोई **मम्मी-दिवस** है, बस इसीलिए वो चीनू अपनी मम्मी को देने के कार्ड बना रहीं थीं।
और दीदी भी बोल रही , कि उसे कल की तैयारी करनी है, उन्हें चीनू गुड़िया के लिए मठरी, चाकलेट कैक, व शीरा पाक भी बनाना है।
और दीदी बोलि हैं कि कल सुबहा मुझे, थोड़ी जल्दी जाना होगा पर कल शाम को 1 घंटा पहले ही छुट्टी दे देंगी।
बुधिया बोलती है, अरे छोरी, जरा ध्यान से आवे-जाया कर, जब तक तू आ नहीं जाती ना , मोहे चैन ना पड़े हैं, तू नन्हीं सी जान, मुझे डर सताता रहता है,
शहर मा ये जो वायरस फैल रियो है ना, बिटिया तू
किसी चीज को हाथ ना लगाया कर, ये तो अब मेरो, आखिरी समय चल रियो है तासे ही तेरे को जानो पडत है,
नाहिं तो काहे तोहे अकेलो भेजूं,
छनिया, बुधिया को पकड़ कर चूमती हुई, अरे म्हारी मेय्या तू काहे परेशान हो रही है, तू बस, मारे भय्यू का ध्यान रख, बाकी काम की चिंता ना कर।
बुधिया हंसती हुई, पर छोरी, भय्यू ही क्यूं?? थारी बहना भी तो हो सकत है ना। छनिया, पर नहीं मैय्या मुझे तो, भाई ही चाहिए।
दीदी बहुत अच्छी है, सारा काम मेरे साथ खड़े होकर
कराती है, और साथ-साथ खुद भी करती जाती है, और कभी थोड़ा गुस्सा भी करती है, पर प्यार भी बहुत करती है, दीदी बोल रही थीं कि कल मोहे भी उपहार देंगी।
हां छोरी जै बात तो है, कि दीदी, बड़े नरम दिल वाली हैं, हमेशा मदद को तैयार रहती है।
छनिया, अच्छा मां बता ना, खाने में क्या बनाया है,
बुधिया अरे छोरी, अभी तक कहां कछु पकायो है, कोनू
सब्जी भी तो ना रखी है, और दो तीन-चार दिना से सब्जी भी आ ही नहीं, रही।
बापू, बोल रहे थे कि मंडी में ही सब्जी ना उतर रही, तो फुटकर वालों को कहां से मिलेगी। पिछले कितने दिनों से बापू भी ठेला यूं ही खाली ले जात है और खाली ही ले आत है।
अभी ये जहरीली बिमारी, और का-का दिन दिखायेंगी। अच्छा चल आज तो चावल की खिचड़ी ही बना देती हूं,
छनिया मां! फिर से खिचड़ी, मुझे नहीं खानी।
बुधिया छनिया को प्यार से मनाती हैं तो छनिया मान जाती है, , पर कहती हैं कि, मां कल कोई बहाना नहीं चलेगा।
कल तो तुझे, मोहे, मालपुए बना कर खिलाने ही होंगे।
छनिया, सुबहा उठकर जल्दी-जल्दी से जाने की करती है, और मां को बोल के जाती है कि मां ध्यान रखना, चीनू गुड़िया ने बताया था कि आज मां दिवस है, आज के दिन, मां अपने बच्चों को उनके मनपसंद पकवान पका कर खिलाती हैं, तो आज तो मुझे, मालपुए ही खाने हैं।
कह कर छनिया चली जाती है।
दीदी के घर पहुंच कर, छनिया देखती है कि, सब अपने-अपने, काम में लगे थे, सब कुछ रोज सा ही था,
कुछ भी अलग नहीं था, फिर चीनू गुड़िया क्यूं कह रही थी कि आज बहुत खास दिन है।
चीनू गुड़िया, तो रोज की तरहां ही, अपने किताब लेके पड़ने बैठ गई हैं, दीदी भी अपने काम में लगी हुई है।
मुझे तो कुछ भी अलग नहीं लग रहा।
दोपहर का काम निपटा कर दीदी, किचिन में मठरी व कैक बनाने में व्यस्त हो गई थीं, बीच-बीच में वो बार-बार मुझ से ये सामान निकाल वो सामान निकाल बोलें जा रही हैं,
अब चीनू गुड़िया, अपने दादा-दादी के साथ बैठी खेल रही हैं,
दीदी और मैंने मिलकर बहुत सारा काम निपटा लिया है, , मैनै दीदी से पूछा कि दीदी, आज कुछ खास है क्या??
आज चीनू गुड़िया का जन्मदिन है क्या जो आप, केक बना रहे हो, पर चीनू गुड़िया का जन्मदिन तो, तीन-चार महीना पहले ही ठंडी में हो चुका, तो आज किसका जन्मदिन है।
दीदी, बोलीं, अरे नहीं रे, आज तो बस मेरा मन था इसलिए, ऐसे ही बनाया है, चीनू भी खायेगी।
दादा-दादी भी घर पे बैठे रहते हैं तो भूख लगती ही रहती है, बस इसलिए ही,
और तेरा भी तो कितने दिनो से मन कर रहा था ना कि,
कुछ अच्छा खाना है।
छनिया खुश होती हुई बोलती है कि दीदी, बहुत मन कर रहा था मालपुए खाने का, मां से कितनी बार बोला, पर वो कहती हैं कि कुछ दिन बाद- कुछ दिन बाद।
और मां तो अब कुछ ज्यादा काम भी नहीं कर पाती, तभी तो मुझे आना पड़ता है आपके यहां।
दीदी, हां बेटा, बस, इसीलिए आज मेरा भी मन हो गया, सुन ऊपर से प्लास्टिक वाले तीन चार डब्बे उतार ला, तेरे लिए भी तो पैक करना है ना, और सुन सिर्फ तू ही मत खाइयो, अपनी मां को भी खिलाना, उसको भी अभी अच्छी खुराक की आवश्यकता होगी ही।
अब छनिया के जाने का समय हो रहा था तो, छनिया का मन किया कि, वह चीनू गुड़िया से पूछे कि मां दिवस हो गया क्या???
यही सोचकर छनिया चीनू गुड़िया के पास जाकर, पूछती है कि कि चीनू गुड़िया अपने, कारड बना लिया क्या???
चीनू गुड़िया, हां वो तो मैंने कल रात ही बना लिया
छनिया, तो दिखाओ, फिर मुझे भी।
चीनू गुड़िया ने कार्ड निकाल कर दिखाया तो उसमें एक सुंदर पेंटिंग दिखी, जिसमें वो अपनी मम्मी-पापा ( दीदी व अंकल जी) व दादा-दादी सबके साथ मिलकर कर हंस रही थी।
बहुत सुंदर पेंटिंग लग रही थी, मैंने कहा चीनू दीदी, मुझे भी एक पेंटिंग बना के दो ना तो, चीनू गुड़िया बोल पड़ी, मुझे मालूम था कि तुम यहीं बोलोगी।
इसलिए मैंने तुम्हारे लिए भी एक पेंटिंग बना दी है,
पर उसमें सिर्फ तुम और तुम्हारी मम्मी ही हैं, तुम्हारे पापा को तो मैंने नहीं देखा, पर तुम खुद अपने पापा का फोटो बना लेना। और चीनू गुड़िया ने वह पेंटिंग छनिया को दे दी।
पर चीनू गुड़िया आपने तो अपनी मम्मी को अपनी पेंटिंग अभी तक नहीं दी, और आप बोल रही थीं कि आज मम्मी दिवस है,
चीनू गुड़िया, हां तो है ना, तभी तो मैंने ये बनाई है, ओर मम्मी ने मेरे लिए केक बनाया है। अब पापा आयेंगे फिर हम सब मिलकर केक काटेंगे, फिर सब मिलकर खायेंगे, और ये पेंटिंग मैं मम्मी को दे दूंगी।।
और मैं ने तो सुबहा ही, मम्मी को, विश भी कर दिया,
मदर्स डे।
तूने अपनी मम्मी को नहीं किया क्या।
छनिया नहीं मैंने तो नहीं किया।
चीनू गुड़िया तो अब घर जाकर तू भी कर देना मम्मी को।
छनिया पेंटिंग लेकर जाने लगती है तो दीदी, भरे हुए डिब्बे, छनिया को देती है, और एक नयी फ्राॅक व एक पैकेट देती हैं तो छनिया पूछती है कि पैकेट में क्या है, तो दीदी बताती हैं कि इसमें कुछ किताबें हैं, और ये किताबें केवल मेरे लिए ही हैं, अब मुझे इन किताबों से पढ़ना होगा, तो क्या हो गया जो अब स्कूल नहीं खुलते, इन किताबों से मैं अपना पढ़ना अब भी जारी रख सकती हूं,
कुछ पैसे भी देती है और कहती है कि सुन ये, पैसे अपनी मम्मी को देना और कहना कि अब तुझे मालपुआ, बना कर खिलाये, ।
और सुन आज घर जाकर अपनी मां से मम्मी दिवस की बधाई देना और, आज हक से अपनी मां से कहना कि
जो तेरी चाहत हो वही बना के खिलाये,
आखिर तू बिना थके, इतनी सी उम्र में ही अपनी मां का सारा काम संभाल कर बैठी है, और अब तू कुछ अपनी पढ़ाई के लिए भी बोल अपनी मां से।
कल, तेरे भाई बहन, आ जायेंगे तो उनमें व्यस्त हो जायेगी, तेरी मां, पर तू अपना हक मांग, आखिर कर्तव्य भी तो हसी- खुशी निभा रही हैं।
छनिया घर पहुंचकर खूब खुश होती हुई सारी बातें अपनी मां से बताती है,
तो बुधिया बोलती है, जुग-जुग जिये जीजी और उसका परिवार, ।
चीनू गुड़िया ही उनकी बेटी- बेटा दोनों है,
कुदरत भी कैसा इंसाफ करती है, दीदी हर रुप से सम्पन्न हैं, पर चाहकर भी, दूसरी औलाद नहीं कर सकती, और एक हम हैं, ,कि जिनका औलाद बिना गुज़ारा नहीं, ।
पर मां कि दिल तो मां का ही दिल है।
आज बुधिया, , भी, छनिया को सब्जी-दाल-रोटी,
बना कर खिलाती है और कल ही मालपुए बनाने का वादा भी करती है।
इधर छनिया-बुधिया एक दूसरे को गले लगा के हंसती हैं, और उधर,
चीनू गुड़िया, भी अपनी मम्मी को पेंटिंग गिफ्ट करते हुए, केक काटती है मिलकर सबके साथ।
आखिर मां ओ को तो बहाना चाहिए ना, बच्चों का दिल खुश करने का, और प्रेम की बरखा तो मां- बच्चों के बीच हरदम ही है।।