वो दोस्त
वो दोस्त
आज भी उन तस्वीरों के सहारे मैं अपने अतीत में पहुंच जाता हूं। वो थे मेरे बचपन के दिन। पहले मैं अपनी अम्मी के साथ लक्ष्मीनगर रहा करता था। लेकिन उसके बाद जब मैं अपने घर वापस बिहार आया तो, शुरुआत में मेरा यहां कोई दोस्त नहीं था। लेकिन हां ,जब मेरे एक दोस्त बना तो उनके साथ मैं दिन-दिन भर घर से गायब रहता था। उसके साथ कभी खेतों में मिट्टी के खिलौने बनाते रहता था या फिर बगीचे में कबड्डी खेल रहा होता था। कई बार मुझे घर से डाँट सुननी भी पड़ती था। उसके साथ मैंने बहुत सारी बदमाशियां भी की है।
आज जब उन तस्वीरों को देखता हूं , जब उस आईने को देखता हूं: तो मेरा प्यारा सा दोस्त और मैं अक्सर अपने प्यारे से कुत्ते के साथ हुआ करते थे। वह दिन सच में बहुत ही खास थे। ना कुछ की चिंता और नहीं कुछ की परवाह। उस वक्त मैं स्कूल भी नहीं जाता था। कभी-कभी मैं उसके घर जाकर उसके साथ पढ़ाई भी किया करता था। तो कभी वह मेरे घर आकर मेरे साथ नानी से भूत-पिशाच वाली और देवी-देवताओं वाली कहानियां सुना करता था।
बहुत सारी तस्वीरों में वो भी दिख जाता है।मेरे वो दोस्त जो मेरे स्कूल के बदमाश थे । उनके कारण कितनी बार मैं शिक्षकों से डांट सुन चुका हूं। कितनी बार उनसे झगड़ा कर लिया करता था। लेकिन फिर कुछ घंटों बाद मैं खुद को उन्हीं के पास पाता था।
क्यों वह पल, वह मेरी दोस्ती, मासूमियत - अब यादों में ही रह गए हैं? तस्वीरों में छप के क्यों रह गए हैं? अगर कोई कहे मुझे कि- क्या तुम जाना चाहते हो अपने अतीत में, अपने बचपन में? तो मैं राजी हो जाऊंगा। बहुत ही आसानी से मैं उसे मुंह मांगी कीमत भी देने को तैयार हो जाऊंगा। बस मुझे मेरा बचपन चाहिए एक बार फिर से।