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Ravi Kumar

Children Stories Fantasy

5.0  

Ravi Kumar

Children Stories Fantasy

फरिश्ता…

फरिश्ता…

14 mins
600



“मैं राहुल नागर अपने पूरे होशोवास में ये सुसाइड नोट लिख रहा हूं । मैं ये आत्महत्या अपनी मर्जी से कर रहा हूं इसलिए मेरी अंतिम प्रार्थना है कि मेरी मौत के लिए मेरी माँ-बहन को बिल्कुल भी परेशान न किया जाए और ना ही उन पर कोई दवाब बनाया जाए । मैं ये आत्महत्या क्यों कर रहा हूं, इस सवाल का जवाब मैं सही तरीके से नहीं लिख सकता । मैं बस इतना जानता हूं कि मैं अपनी जिंदगी से हार चुका हूं । मेरी जिंदगी मुझ पर अब बोझ लग रही है जिससे मैं अब आज़ाद होना चाहता हूं “। 

राहुल नागर


पसीने से भीगा हुआ राहुल का चेहरा ऊपर उठा । 18 साल का राहुल आज अपने जीवन को स्वयं खत्म करने वाला था । राहुल से बड़ी सावधानी से सुसाइड नोट को अपनी कमीज़ की जेब में मोड़ कर रखा । उसके हाथ कांपते हुए से प्रतीत हुए और उसका दिल अंतिम क्षणो में पूरी ज़ोर से धड़कता रहा । उसकी आंखे लाल हो चुकी थी, ऐसा लग रहा था जैसे वो कई बार रो चुका हो । आत्महत्या का ये फैसला उसके लिए आसान नहीं था पर उसका दिमाग अब पूरी तरह से इसके लिए तैयार हो चुका था ।


“ मम्मी, राहुल पंखे से लटक गया”

कुछ मिनटों बाद राहुल की बड़ी बहन राखी ने अपनी पूरी ताकत से चीखकर कहा । उसके चेहरे से आंसुओ की धारा थमने का नाम ही नही ले रही थी । उसकी सांसे यूं फूली हुई थी मानो अभी उसे कोई दौरा आ जाएगा। ये सुनकर राहुल की मां का दिल तो जैसे थम सा गया, गला एकदम जाम सा हो गया था उनका, आवाज़ तक नही निकल रही थी । कुछ ही देर में आस-पास के लोग चीखने-चिल्लाने वाली दर्दनाक आवाज़े सुनकर मदद के लिए दौड़ पड़े । पांच-छह लोगो के साथ राखी सिसकते हुए छत पर आई और ऊपर बने कमरे की बाहर वाली खिड़की से अंदर कमरे का भयानक नज़ारा सबको दिखाया । पंखे पर लटका हुआ राहुल का बेजान शरीर सबको दिखा । उसके सिकुड़े हुए पैर, झूलते हुए निर्जीव हाथ और झुका हुआ सिर सबके सामने अपनी गवाही दे रहे थे कि राहुल ने आत्महत्या कर ली है । दरवाजा अंदर से बंद था इसलिए अंदर घुसने के लिए लोगो को काफी मशक्कत करनी पड़ी । आस-पास के घरो की छत चिलचिलाती धूप में भी लोगों से भरी पड़ी थी । सबकी निगाहें उस कमरे पर टिकी थी जहां कोई दम तोड़ रहा था । राहुल की बहन और मां का रो-रोकर बुरा हाल था। ऐसा लग रहा था आज इस घर से दो और लाशे उठने वाली है ।


एक दिन बाद...


सुबह की शीतल हवा मंद गति से चारो तरफ दौड़ रही थी और कमरे की आधी खुली हुई खिड़की के बीच से गुजरते हुए बेड पर लेटे हुए राहुल को झकझोर दिया । उसकी आहिस्ते से दोनो आंखे खुली और उसे चारो तरफ अनजाना नजारा दिखा । राहुल हैरान था, वो इस वक्त कहां था ?

“ आखिर होश आ गया तुम्हें “ इस अनजानी आवाज़ को सुनकर राहुल चौंका । उसने बाएं तरफ बने दरवाजे की तरफ देखा । वहां उसे सफेद शर्ट व काली पेंट पहने और हाथ में सफेद कोट थामे एक व्यक्ति दिखा जो युवा व आकर्षक लगा । उस व्यक्ति के चेहरे पर हल्की मुस्कान छाई हुई थी । राहुल को तभी अपने हाथ में पतली पाइप लगी दिखी जो ऊपर टंगी हुए दो छोटी बोतलों से जुड़ी थी । यह सब देखते ही उसे पता चल गया कि वो कहां है ! यह वो जगह नहीं थी जहां इंसान मरने के बाद पहुंचता है । ये तो वो जगह थी जहां इंसान को मौत के मुंह से खींचकर बाहर लाया जाता है । राहुल के चेहरे पर मौत न मिलने का ग़म दिख रहा था । वो निराश था, वो रोना चाहता था पर शायद आंसु भी बहते-बहते थक चुके थे । वो अनजाना व्यक्ति मुस्कुराता हुआ राहुल के पास आया और बोला,” मेरा नाम शशांक गुप्ता है । मैंने ही तुम्हारा इलाज किया है । तुम कल शाम से ही बेहोश थे । अब कैसा महसूस कर रहे हो ?” । राहुल को इस वक्त वो डॉक्टर कोई फरिश्ता नहीं बल्कि दुश्मन की तरह लग रहा था जिसने उसकी अंतिम इच्छा को भी पूरा नही होने दिया । राहुल ने अपनी नज़रें फेर ली । शशांक उसकी इस प्रतिक्रिया से थोड़ा सा हैरान हुआ । शशांक बोला, “ आज पहली बार एक मरीज को अपने डॉक्टर से नफरत करते हुए देख रहा हूं।" राहुल ने कुछ नहीं कहा । उसकी नज़रें अभी भी कोसो दूर, कहीं गुमराह सी भटक रही थी । ऐसा लगा जैसे उसने कुछ सुना ही नही । शशांक ने कहा,

“ मैं दस सालो से इस प्रोफेशन से जुड़ा हूं और उसमे मैंने कई लोगों की जाने बचाई है पर मेरे इस लंबे कैरियर में कल मुझे मेरा काम बोझ लग रहा था ,पता है, क्यों ? ”

राहुल अभी भी अपनी नज़रे फेरे बेड पर लेटा रहा । ऐसा लग रहा था जैसे शशांक किसी मूर्ति से बात कर रहा हो पर राहुल की बेरुखी शशांक को रोक नही पाई, उसने अपनी बात जारी रखते हुए कहा,” क्योंकि मैं कल एक ऐसे इंसान की जिंदगी बचा रहा था जो जीना ही नहीं चाहता था”।और अचानक तभी

“ तो फिर मुझे क्यूँ बचाया तुमने ?"

राहुल ने चिल्लाते हुए पूछा । उसकी सारी झल्लाहट इस सवाल पर उतर गई । राहुल की सुर्ख लाल आंखे शशांक के चेहरे पर टिक गई । शशांक उसके अंदर के गुस्से को उसकी आंखो में झलकता हुआ देख सकता था । शशांक ने जवाब देते हुए कहा, “ मैं भी ये सवाल खुद से पूछ रहा था और तब मुझे बाहर खड़ी उस औरत का चेहरा याद आया जो पूरी तरह आंसुओ से भीगा हुआ था, जिसने कल से कुछ नहीं खाया था और उस लड़की का ध्यान आया जो तुम्हारे इलाज के बाद से ही हर आधे घंटे में मुझसे पूछती रहती है कि उसके भाई को होश आया कि नहीं । मैंने तुम्हे उनकी खातिर बचाया । पिछले 18 घंटो में मैंने जो उनकी हालत देखी है उससे मुझे ये अंदाजा लगाने में कोई दिक्कत नही हुई कि तुम्हारी जिंदगी उनकी सांसो के लिए कितनी जरुरी है और तुम उनकी परवाह किए बगैर मौत को गले लगाने जा रहे थे “।

राहुल का चेहरा गंभीर होता दिखा । निश्चित ही उसके मन में विचारो का तूफान उमड़ रहा था जहां वो अब स्वयं के फैसले पर उलझा हुआ महससूस कर रहा था । 


शशांक ने अपनी शर्ट की जेब से एक मोड़ा हुआ कागज़ का टुकड़ा निकाला और उसे खोलकर एक नज़र देखने के बाद राहुल से बोला, “ ये सब तुम्हीं ने लिखा है न ? तुम जानते भी हो कि तुमने इसमे क्या लिखा है ? ज़रा देखो खुद को, ऐसा कौन सा पहाड़ टूट गया तुम पर की 18 साल की उम्र में तुम्हे तुम्हारी जिंदगी बोझ लगने लगी । अभी तो तुमने अपनी जिंदगी की सही मायने में शुरुआत भी नही की और तुमने उसे खत्म करने की तैयारी भी कर ली“ ।

शशांक ने वो सुसाइड नोट राहुल को दिखाया । वो कागज़ का टुकड़ा राहुल के चेहरे के आगे झूलता दिखा । उस पर लिखा हर एक शब्द उसकी आत्महत्या की गवाही दे रहे थे । राहुल उस कागज़ के टुकड़े से अपनी नज़रें भी ठीक से मिला न सका और उसने निगाहें झुका ली । उसे शर्मिंदा देख शशांक ने उस कागज़ के टुकड़े को उसके चेहरे से हटा लिया । शशांक ने कहा, “ जिंदगी की कीमत क्या होती है, ये मैं जानता हूं क्योंकि मैं हर रोज़ लोगो को इसके लिए लड़ते हुए देखता हूं, राहुल “ । शशांक भावुक होते हुए उससे पूछ पड़ा, “ आखिर ऐसा क्या हो गया था जिसके कारण तुम्हारे पास आत्महत्या के अलावा कोई दूसरा रास्ता नही बचा ? “। इस सवाल पर राहुल शांत रहा । ये साफ जाहिर था कि राहुल इस बारे में बात नही करना चाहता था इसलिए शशांक बोला, “ शायद मैं इस सवाल का जवाब जानने का हकदार नही हूँ । तुम आराम करो, थोड़ी देर में नर्स आ जाएगी । जहां तक मेरा ख्याल है, तुम परसो तक डिस्चार्ज कर दिए जाओगे “। इतना कहकर शशांक जाने के लिए मुड़ा ही था कि राहुल बोल पड़ा,

” तो मैं क्या करता, डॉक्टर ? मेरे पास कोई रास्ता बचा ही नहीं था” । शशांक उसकी आवाज़ सुनकर झट से मुड़ा । राहुल की आंखो में आंसु छलक उठे । उसके गालों पर आंसुओं की कई लकीरें खिंचती चली गईं । उसके आंसु देखकर शशांक उसके करीब आया और उसके माथे को सहलाने लगा । राहुल की सिसकियों में उसका दर्द स्पष्ट रुप से झलक रहा था । शशांक शांत निगाहो से राहुल को देखता रहा । जब राहुल का दिल रोते-रोते हल्का हुआ तब उसके आंसु भी थमते हुए दिखे ।तब शशांक धीमे स्वर में बोला,

” एक हफ्ते पहले बारहवीं कक्षा के रिजल्ट आउट हुए थे । कहीं तुम्हारी आत्महत्या की वजह इससे जुड़ी हुई तो नहीं है ?”। राहुल ने पलको को बंद करते हुए हल्के से अपना सिर ‘हां’ के संकेत में हिलाया ।

शशांक ने पूछा,” क्या तुम फेल हो गए?"राहुल ने सिसकते हुए कहा,” नहीं ”। शशांक ने हैरानी से पूछा,” तो फिर ?”। राहुल ने जवाब दिया,” मैं 53% वाले नंबरो का क्या करुंगा ? इससे अच्छा होता कि मैं फेल हो जाता”। शशांक ने कहा,” तो तुमने ये सब इसलिए किया क्योंकि तुम 53% नबंरो से पास हुए । ये तो अच्छे नबंर है, राहुल ”। राहुल ने तपाक से कहा,” आप सच्चाई जानकर भी अनजान बन रहे हैं । इतने नबंरो से मुझे किसी भी यूनिवर्सिटी में एडमिशन नहीं मिलेगा”। शशांक ने कहा,” पर इस वजह के लिए तुम्हारा आत्महत्या करने का फैसला कहां तक ठीक था ? क्या ऐसा कर देने से तुम्हारे नंबर बढ़ जाते या फिर तुम्हें एडमिशन मिल जाता ?”। राहुल ने थकी आवाज़ में कहा,” पर इतने कम नंबरो से मैं कर भी क्या सकता हूँ ? मुझे पता है कि मुझे एडमिशन नही मिलेगा और घर में मेरी वजह से जो भी उम्मीदें थी वो अब खत्म हो गईं । सोचा था, ग्रजुएशन करके अच्छी नौकरी पाकर घर की मुश्किलों को दूर कर दूंगा । आखिर कब तक मम्मी और दीदी कपड़े प्रेस करके घर को चलाएंगे ? पापा के जाने के बाद मैं उनकी आखिरी उम्मीद था लेकिन जब उन्हे पता चलेगा कि मैं भी उन पर अब बोझ बनकर घर में बैठने वाला हूं तो उन्हे कैसा लगता ? इससे बेहतर यही था कि मैं आत्महत्या कर लूं और उन पर बोझ न बनूं पर.. ये भी न हो सका !"इतना कहकर राहुल ने अपनी नज़रे फेर लीं । शशांक उसकी बातें सुनकर न जाने क्यों मुस्कुरा उठा और बोला,” तुम्हारी बातें सुनकर मुझे एक बात तो पता चल गई कि तुम्हारी मां और दीदी जितना तुम्हें चाहती हैं उससे कई गुना ज्यादा तुम उन्हें चाहते हो । तुमने खुद से एक वादा किया था कि, हां मैं एक दिन अपने घर की सारी मुश्किलो को खत्म कर दूंगा पर जब तुम्हारा लड़ने का वक्त आया तब तुम कायरो की तरह पीठ दिखाकर मैदान छोड़कर भागने लगे । तुमने खुद से ही हार मान ली ”।

राहुल की निगाहे तेज़ी से मुड़कर शशांक के चेहरे पर टिक गईं । राहुल बोला,” मैं डरा नही था । मैं लड़ना चाहता था लेकिन…”। शशांक बीच में बोल पड़ा,” पर तुम्हें वो हथियार नहीं मिले जो तुम चाहते थे । यही बात है न ? ” । इस सवाल पर राहुल ने चुप्पी साध ली पर वो शशांक की बात से सहमत था । शशांक ने कहा ,” देखो, जिंदगी में ऐसी कई घटनाएं होती है जिनके बारे में हमने कभी सोचा भी नहीं होता और हम उन्हे रोक भी नहीं सकते । हम जो चाहते है हमे ठीक वैसी ही चीजे मिले, ऐसा जिंदगी में बहुत कम होता है । जैसा कि ठीक तुम्हारे साथ हुआ । तुमने जो चाहा, वो तुम्हे नहीं मिला पर ऐसा तो कही नहीं लिखा कि तुम दोबारा कोशिश नहीं कर सकते । तुम जितना चाहो अपनी इस स्थिति के लिए अपने नंबरो को कोस सकते हो, अपनी फूटी किस्मत पर रो सकते हो पर सच्चाई नहीं बदलेगी । तुम सिर्फ अपना वक्त बर्बाद करोगे जो तुम्हारी अगली भूल होगी”।


राहुल ने बड़े गौर से उसकी बातो को सुना । शशांक ने गंभीर स्वर में कहा,” पता है, इंसान को जिंदगी में तब तक मौके मिलते है जब तक की वो हार नहीं मानता । झूठ कहते हैं वो लोग जो ये बोलते हैं कि इंसान को जिंदगी में कामयाब होने का मौका सिर्फ एक बार मिलता है । असल में जो ऐसा कहते हैं वो खुद से ही हार मान चुके होते है, राहुल” । राहुल ने पूछा,” तो फिर अब मुझे क्या करना चाहिए ?”। शशांक ने कहा,” तुम्हें दोबारा कोशिश करनी चाहिए । जिन विषयो में तुम्हारे कम नंबर हैं , उनकी दोबारा तैयारी करो । तुम इम्प्रूवमेंट इक्साम देकर फिर से कामयाब हो सकते हो । पर ये सब सिर्फ तुम्हारी मेहनत पर निर्भर करता है । मंजिल का रास्ता खुला हुआ है तुम्हारे सामने पर क्या तुम चलने के लिए तैयार हो ? ”। ये पल शशांक के लिए महत्त्वपूर्ण था । वो जानना चाहता था कि राहुल का जवाब क्या होगा ? राहुल नज़रें झुकाए अपनी सोच में डूबा हुआ दिखा । दोनो की खामोशी में कमरे की छत पर लगे पंखे की सरसराहट पूरे कमरे में गूंजने लगी । राहुल ने खामोशी को तोड़ते हुए कहा,” क्या आप इसमें मेरी मदद करेंगे ? ”। शशांक ने मुस्कुराते हुए कहा,” मैं हमेशा तुम्हारी मदद के लिए तैयार रहुंगा, राहुल ”। इतना कहकर शशांक कमरे के अंतिम छोर पर लगी खिड़की की तरफ बढ़ गया ।

राहुल की निगाहो ने उसका पीछा किया । खिड़की आधी खुली हुई थी और शशांक ने हाथ बढ़ाकर उस खिड़की के दोनो पटो को खोल दिया । कमरे में खिली धूप की किरणें फैलती दिखी और शशांक उस धूप के बीच दमकता हुआ खिल उठा । राहुल उसे देखता रह गया । राहुल ने कहा,” पर डिस्चार्ज होने के बाद मैं आपसे बात कैसे करुंगा ? ”। धूप के बीच चमकते हुए शशांक ने मुस्कुराते हुए कहा,” तुम बस मुझे याद कर लेना और मेरी मदद तुम्हारे पास पहुंच जाएंगी ”। राहुल ये सुनकर हैरान रह गया । क्या शशांक ने उससे कोई मज़ाक किया था ? 

 

राहुल उसकी बात के अर्थ को समझ ही रहा था कि अचानक ”ठक्क” करके दरवाजे पर आवाज़ आई । कोई दरवाजे को बाहर से खोल रहा था । जैसे ही दरवाजा खुला, राहुल की निगाहें झट से दरवाजे पर गईं और वो चौंक उठा । उसकी आंखे खुली की खुली रह गई । दरवाजे पर तो शशांक खड़ा था और उसके साथ एक नर्स भी थी । राहुल को खुद की आंखो पर यकीन नहीं हुआ । राहुल की नज़रें फौरन खिड़की की ओर तेज़ी से मुड़ी । पर ये क्या ? वहां तो कोई नही था । खिड़की को दोनो पट खुले हुए पड़े थे, धूप अभी भी फैली हुई थी पर वहां वो नहीं था जिसे राहुल की निगाहें ढूंढ रही थीं । 


नर्स के साथ बढ़ते हुए शशांक, राहुल के पास आया और बोला,” कैसा महसूस कर रहे हो, तुम ? ”। राहुल अपनी चौड़ी आंखो से उसे देखता रह गया ।

”नर्स, नाम क्या है मरीज का ? ” शशांक ने नर्स से पूछा । अपने हाथ में थामे हुए पेपर-बोर्ड की ओर देखते हुए नर्स ने कहा,” राहुल नागर”।

शशांक ने राहुल से कहा,” तो राहुल कैसा लग रहा है अब तुम्हे ? कोई दिक्कत तो नहीं हो रही सांस लेने में ?”। राहुल ने कहा,” नहीं ”। वो भले ही शशांक की तरह दिखता था पर राहुल समझ गया था कि वो शख्स कोई और था । शशांक ने कहा,” नर्स इंजेक्शन देना ”। इतना कहते ही शशांक की नज़रे खिड़की की तरफ गई और वो बोला,” ये किस बेवकूफ ने खिड़की खुली छोड़ दी ? ”। ये सुनकर राहुल मुस्कुरा उठा । खुद के चेहरे पर मुस्कान पाकर, राहुल ने खुद को हैरान पाया ।


 वो अनजान फरिश्ता कौन था जो उसे जिंदगी का पाठ पढ़ा गया, उसे दोबारा मुस्कुराना सिखा गया । क्या वो कोई ईश्वर था या किसी दैवीय शक्ति का कोई रुप ? राहुल चाहकर भी उस फरिश्ते को कोई नाम नहीं दे पाया पर उसे इतना यकीन तो हो चला था कि अब वो अकेला नहीं है । कोई है जो उसकी रक्षा जीवन के हर कदम पर करेगा, जो हमेशा उसकी मदद के लिए तैयार रहेगा । राहुल के बाएं हाथ पर सुई चुभोई गई पर उसके चेहरे से मुस्कान नहीं हटी । उसकी मुस्कुराहट उसके अंदर जगे हुए एक नए आत्मविश्वास का संकेत थी ।                    


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