ढ़क्कन
ढ़क्कन
ढक्कन चीज़ बड़ी आम है
इसके बिना बड़े बड़े मर्तबान के घटते देखो दाम है
यह ढक्कन देखो भैया चीज़ बड़ी ही ख़ास है
न हो अगर कलम पे ढक्कन
वो बड़ा फिर देखो घटक बन जाता है
और ढक्कन बिना उसके खराब होने का खतरा बढ़ जाता है
पर अकेले ढक्कन को कोई मोल न देता
हर कोई उसको पैरों से रौंद देता
जो किसी मर्तबान पे न हो ढक्कन
तो अन्दर से साफ़ कैसे रहे भला बर्तन
सारी मिट्टी , साड़ी गर्द को वो अंदर जाने से रोके
तभी तो सब ऊपर से बर्तन रख देते हैं धोके ..
सब कुछ सहता है यह ढक्कन
पर कोई इस का ख्याल न रखता
सब खाते बस डिब्बे में रखा माखन।।।
अब इंसानों को भी कहाजाने लगा ढ़क्कन
कहते जिसको सीधी सादी बातें समझने में आती है अड़चन
उसको भी दुनिया वाले कह देते हैं ढक्कन
अब ढक्कन को मालूम नहीं कि अंदर की बातें क्या है
वो बेचारा सीधा सादा उसे ज़माने से मतलब क्या है
भाई नहीं है नासमझ जिसे कहते हैं सब ढक्कन
बस वो थोडा भोला भाला सा , नहीं पसंद उसे समाज के बंधन
इसीलिए थोडा अलग है वो जिसे कहते हैं सब ढक्कन