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न मै कभी अन्याय सह पाया

न मै कभी अन्याय सह पाया

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न मै कभी अन्याय सह पाया 
न ही कभी चुप रह पाया
जो लगा गलत, उसे कहा गलत

भले डगर मंजिल तक पहुंचाए
राह अगर नापाक है तो, है उसपे चलना गलत
जब हम अपने साथियों को साथ ले चल सकते नहीं
तो किस तरह अपनी सोच को बता सकते सही ?
हर किसी की अपनी है सोच, और अपना है नजरिया
जो सोचे अपनी सोच को फरमान के तौर पर 
हर वो फरमान गलत

एकता न होने से ही हम गुलाम हुए 
एक हम थे नहीं, तो टुकड़े हज़ार हुए 
मौन होकर बाँटने दिया हमने, हर किसीको जिसका दिल हुआ 
वो लूटते रहे आबरू, और उनका ही रुतबा आयर हुआ 
कहा था भगत ने, आवाज़ उठाने की है कवायद आ गयी 
गैरों तक तो ठीक था, अब अपनों की आत्मा भी सो गयी ...
है अगर अपने भी तो, गलत को देख चुप रहना न ठीक है ...
है अगर कुछ गलत, तो हम उसे कहेंगे गलत 
हाँ हम भी ढीठ हैं
जो अन्याय, और खुदगर्जी से सनी हो
जो राहें, बस स्वार्थ से सनी हो 
है गलत, तो कहूँगा गलत


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