“ऐसा क्यों है के भारत में एक ओर ख़ुशहाली है?”
“ऐसा क्यों है के भारत में एक ओर ख़ुशहाली है?”
ऐसा क्यों है के भारत में एक ओर ख़ुशहाली है?
भारत माँ के हाथ हैं दो पर एक हाथ क्यों खाली है?
क्यों भारत माँ के कुछ बेटे भूखे ही सो जाते हैं?
क्यों कुछ अपने हाथों से अपना अस्तित्व मिटाते हैं?
क्यों गरीब के बच्चों को इन्साफ नहीं मिल पाता है?
क्यों उनको शौचालय भी साफ़ नहीं मिल पाता है?
कौन गरीबों को उनका अधिकार नहीं मिलने देता?
कौन गरीबों की बगिया में फूल नहीं खिलने देता?
क्यों इस क्रूर व्यवस्था में वो रोज़ सती हो जाता है?
क्यों गरीब का इन्द्रासन भी बासमती हो जाता है?
मैं गरीब के दिल की पीड़ा गलियों गलियों गाऊँगा
मैं गरीब की इस पीड़ा को दिल्ली तक ले जाऊँगा
क्यों गरीब के बच्चे अब तक विद्यालय को तरस रहे?
क्यों सुविधाओं के सब बादल झीलों पर ही बरस रहे?
क्यों सरकारी कालेज की सब सीटें फुल हो जाती हैं?
क्यों सरकारी हास्पिटल की बत्ती गुल हो जाती है?
क्यों गरीब के राशन में चावल से ज्यादा कंकड़ है?
देश में सावन आया है पर उनके घर क्यों पतझड़ है?
क्यों गरीब का भारत में कोई अधिकार नहीं होता?
क्यों गरीब की बस्ती में कोई त्यौहार नहीं होता?
क्यों सुन्दर तन पर भारत के उभर रहा नासूर है?
क्या आहें भी नहीं पहुँचती दिल्ली इतनी दूर है?
अँधेरी गलियों में मैं एक दीप जलाकर जाऊँगा
मैं गरीब की इस पीड़ा को दिल्ली तक ले जाऊँगा
क्यों ग़रीब की हर ख़्वाहिश रोटी से हारी जाती है?
क्यों गरीब की बेटी ही ससुराल में मारी जाती है?
क्यों गरीब का बेटा ही चोरी में पकड़ा जाता है?
क्यों गरीब ही कानूनी फन्दों में जकड़ा जाता है?
क्यों गरीब का छप्पर भी अबतक बारिश में चूता है?
क्यों गरीब नंगे पैरों सिलता अमीर का जूता है?
क्यों गरीब का जीवन ही पूरा ख़ुशियों से खाली है?
जिस दिन खाना मिल जाऐ वो दिन होली दीवाली है
क्यों गरीब का तन केवल हड्डी पसली का ढाँचा है?
ये भारत की राजनीति के मुँह पर एक तमाचा है
सरकारों की नाकामी को मैं दर्पण दिखलाऊँगा
मैं गरीब की इस पीड़ा को दिल्ली तक ले जाऊँगा