“सत्ता और अपराध का कैसा है गठजोड़”
“सत्ता और अपराध का कैसा है गठजोड़”
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सत्ता और अपराध का कैसा है गठजोड़
जनता की हड्डी रहे दोनों मिलकर तोड़
दोनों मिलकर तोड़ कहें क्या हाल हमारा
लगता है होगा नहीं अब और गुज़ारा
लूट डकैती हो रही अब तो सातों रोज
सत्ता को लेकिन नहीं है कोई अफ़सोस
है कोई अफ़सोस शर्म बेच के खा गऐ
लगता है हैम फिर अंधेर नगरी में आ गऐ
कहते हैं राजा वही जो रक्षा कर पाऐ
इनमें वो ख़ूबी नहीं जो राजा कहलाऐं