गमे जिन्दगी
गमे जिन्दगी
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गमे जिन्दगी को अब
दर्दे दिल रास न आया।
बिछड़ के उनसे मेरे,
फिर कोई पास न आया।
छोड़ दी उनकी चाहत
और पाने की तमन्ना।
आज दीवाने दिल को,
बेदर्दों की महफिल में ले आया
गमे जिन्दगी को अब
दर्दे दिल रास न आया।
बैठा रहा जब आश में,
फिर क्यों न पास वो आया?