हद
हद
चुप होकर मरता हूँ , कहने से डरता हूँ,
मोहब्बत में फँसने फसाने की भी हद है।
ये इश्क ही है ये तेरा कि जिन्दा मैं अबतक,
अब मर के यूँ आशिक़ी बताने की भी हद है।
पी तो लूँ बेशक पर, बहकने की हद तक,
मेरे दोस्त, दोस्ती निभाने की भी हद है।
तू नाराज हैं कि आसमाँ से लाया ना चाँद ,
यार हो पर रूठने मनाने की भी हद है।
छत की जद्दोजहद में कब्र तो नसीब की,
खुदा का यूँ रहमत बरपाने की भी हद है।
लोगों नासमझ है, उठा लेने दो फायदा,
शरीफ़ हो, शराफ़त जताने की भी हद है.