यह ख्वाहिशें
यह ख्वाहिशें
मन में उठती है जैसे सागर में लहरें
आती है, जाती है, कुछ पल को है यह ठहरे
इक पल को टकराती अपने साहिल से
कुछ पल के लिए गुफ्तगू करती है इस दिल से
बेचैन करती है यह
ख्वाहिशें
पूरी भी नहीं, अधूरी भी नहीं
करीब भी नहीं और दूरी भी नहीं
लगता है जैसे जब बादल घिर आते है
मन में बारिश की उमीदें जगाते हैं
फिर बिन बरसे ही जो चले जाते हैं
वो तड़प देती है यह
ख्वाहिशें
सब कुछ करीब है , फिर भी है दूरी
सब कुछ पा लिया , फिर भी हर हसरत जैसे है अधूरी
हर पल इक जिद, थामे कोई बैठा हो
हठ कोई जैसे यह दिल कर बैठा हो
खुद को तकलीफ खुद ही यह देता है
खुद ही हंसाती है , खुद ही रुलाती है
झूठे सपने भी खूब दिखाती है यह