हम चलते रहे
हम चलते रहे
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हम चलते रहे
वक़्त गुजरता रहा ।
जाने कितने मौसम
जीवन करवट बदलता रहा ।
अंगड़ाइयाँ, रुसवाईयाँ
कभी धूप, कभी धुँधली परछाइयाँ ।
अंधेरों में भी तपता रहा
नासमझ कभी गिरता, कभी सँभालता रहा ।
हम चलते रहे
वक़्त गुज़रता रहा ।
थम जाऐ वक़्त भी
तो क्या मज़ा है ।
ज़िन्दगी बिन सफ़र के
बेमौत ही सज़ा है ।
हर तज़ुर्बे को
ज़िन्दगी के धागों में पिरोता रहा ।
हम चलते रहे
वक़्त गुजरता रहा ।