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Bhavna Thaker

Others

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Bhavna Thaker

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जी लूँ बचपन फिर से

जी लूँ बचपन फिर से

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कहाँ गए बचपन के वो दिन 

मन करता है जी लूँ बचपन 

कितने सावन बीत गये छुई नहीं बरसात 

आह अब के मौसम में जमकर 

भीग जाना चाहती हूँ...


दिल में दबे सैंकड़ों एहसास आँखें करते नम

बारिश की बूँदों में करके छै छप्पा छै

कागज़ की कश्ती को पानी में बहाकर

अश्क छूपाना चाहती हूँ...


वापस जीना चाहती हूँ 

सालों से खुद के लिये जीना ही भूल गये 

उम्र की ऐसी तैसी कर कुछ 

लम्हें जीना चाहती हूँ...


चार दीवारें घोंट रही उमस उठी है वेदना 

उड़ गगन में पंछी बन 

बादल को छूना चाहती हूँ...


लाली देखे सुबह की कितनी उम्र बीत गई

भोर में तितली संग उड़कर 

कोहरे में नहाना चाहती हूँ...


नींद वाले सपनें देते है अक्सर मुझको धोखे

अब खुली आँखों वाले सपनें संग 

मुस्कुराना चाहती हूँ...


मिल जाये कुछ लफ़्ज उधार ज़िन्दगी की

तान से नाम कोई अपनी गज़ल कर 

गुनगुनाना चाहती हूँ॥ 


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