"ख"
"ख"
"ख" से कुछ याद करो तो "ख़्वाब" आँखों में आते हैं |
"ख" को सोचूँ तो "खाली" कमरे मुझे अकेलेपन को ले जाते हैं ||
"ख" से "खालीपन" है मेरा,
"ख" से है "ख़ामोशी" ||
"ख" से ही तो है इच्छाओं की "खानाबदोशी" ||
"ख" से कुछ याद करो तो "खेत" मुझे नज़र आते हैं |
अपने "खलिहानों " को देख जब किसान "ख़ुशी " से झूम जाते हैं ||
"ख " से सोचूँ तो "खरगोश " की कहानी ,
जब मेहनत ना कर हम "खाली " हाथ मॉल रह जाते हैं |
"ख" से ही बनी वो "खंजर" जो पीठ में घोंपे जाते हैं ||
"ख" से ही होती हैं वो "ख़ुशियाँ" जिन्हें पाने को मेहनतकश कुछ भी कर जाते हैं ||
"ख" से ही वो खुला आसमान, इंतेज़ार तुम्हारा करता है ...
समेटने को "ख़ुद" को तुम में, वो "ख़्याल" यही संजोया करता है ||