शादी
शादी
शादी टूटी नहीं थी मेरी, तोड़ी थी मैंने,
जब सब साथ बैठे सोच रहे थे दहेज कितना देंगे उन्हें,
माँ से पूछा मैंने "आप भी तो खिलाफ हैं इसके,"
पर कहा उन्होंने "पैसे नहीं आते तेरे मिलन से आगे।"
चुभी थी मुझे यह बात गुस्से में कॉल किया मैंने उन्हें,
पूछा "क्यों बिकना चाहते हो रुपयों के लालच में,"
तो जवाब दिया उन्होंने
"मुझे अपने घर मे रखने की छोटी सी कीमत लगाई है यह उन्होंने,
आखिर कुछ खर्चा भी तो कराउंगी मैं उनका।
यह सुनकर चकित हो गयी थी मैं ,
पूछा उनसे प्यार का इज़हार करने से पहले कभी तुम्हारी सैलरी की बात की थी क्या मैंने?
मेरे परिवार वालो ने मुझे अकेले संभलने लायक बनाया है,
नहीं चाहिए तुम्हारे जैसा पति, कुछ कौड़ियों के भाव में,
क्योंकि दहेज है एक सामाजिक बुराई।