लेखक : राजगुरू द. आगरकर अनुवाद : आ. चारुमति रामदास। लेखक : राजगुरू द. आगरकर अनुवाद : आ. चारुमति रामदास।
"जिये जाने की बस रस्म अदा किये जा रहे हैं.........और यह रस्म है कि खत्म ही नहीं होती." "जिये जाने की बस रस्म अदा किये जा रहे हैं.........और यह रस्म है कि खत्म ही नहीं ...