ज़िंदा हैट
ज़िंदा हैट


लेखक: निकलाय नोसव
अनुवाद: आ. चारुमति रामदास
बिल्ली का छोटा-सा बिलौटा (पिल्ला) वास्का फर्श पर अलमारी के पास बैठा था. अलमारी के ऊपर, बिल्कुल किनारे पर एक हैट रखी थी. अचानक हैट नीचे गिर गई और उसने वास्का को पूरी तरह ढाँक दिया.
कमरे में बैठे थे वलोद्या और वासिक.
उन्होंने देखा ही नहीं कि वास्का कैसे हैट के नीचे छिप गया.
वलोद्या मुड़ा और उसकी नज़र फर्श पर पड़ी हैट पर गई.
वह हैट उठाने के लिए आगे बढ़ा , मगर अचानक चीख़ने लगा, “ आय-आय-आय” – और भागकर परे हट गया.
”क्या हुआ?” वादिक ने पूछा.
”वो ज़ि-ज़ि-ज़िन्दा है!”
”कौन ज़िन्दा है?”
”है-है-हैट!”
”कैसे हो तुम! कहीं ज़िन्दा हैटें भी होती हैं?”
”ख़ुद ही देख लो!”
वादिक आगे बढ़ा और ग़ौर से हैट की ओर देखने लगा. अचानक हैट सीधे उसकी ओर सरकने लगी.
वह चिल्लाया, “आय!”- और उछल कर दीवान पर चढ़ गया.
उसके पीछे वलोद्या भी चढ़ गया.
हैट सरकते हुए कमरे के बीच में आई और रुक गई. उसकी ओर देखते बच्चे हुए डर से थरथर काँपने लगे.
“ये क्या है! ये कमरे में क्यों रेंग रही है?” वादिक ने कहा.
और हैट रेंगते हुए दीवान तक आई. बच्चे किचन में भागे. हैट भी रेंगते हुए किचन पहुँच गई.
किचन के बीचोंबीच पहुँची और उसने रेंगना बन्द कर दिया.
”ऐ , हैट !”
नहीं रेंगती.
”ओहो , डर गई!!” बच्चे ख़ुशी से चिल्लाए.
”चल, इस पर आलू मारते हैं” – वादिक ने कहा.
उन्होंने टोकरी से बहुत सारे आलू निकाले और हैट पर फेंकने लगे.
वादिक का निशाना लगा.
हैट उछलने लगी और “म्याँऊ, म्याँऊ” करने लगी.
और हैट के नीचे से काली पूँछ बाहर निकली.
“वास्का!” बच्चे चिल्लाए और उसे अपनी बाँहों में पकड़ने लगे.
”वास्का, प्यारे, तू हैट के नीचे कैसे आ गया?”
मगर वास्का ने कोई जवाब नहीं दिया. उसने बस फुरफुराते हुए रोशनी के कारण अपनी आँखें बन्द कर लीं.