व्यक्तिगत विभिन्नता - अपनों ने नकारा जिसे
व्यक्तिगत विभिन्नता - अपनों ने नकारा जिसे


शाम के 6 बजे विनोद जी अपने 8 साल के बेटे आलोक को बाहर टहलाने के लिए निकले थे। विनोद जी आलोक को बगल के गार्डन में घुमाने लेकर चले गए। यहाँ पर उन्हें उनके अन्य पड़ोसी भी मिल गये। सभी रविवार की संध्या का लुत्फ़ उठा रहे थे। बगल वाले मनोज जी अपने बेटे को उसकी साइकिल पर घूमा रहे थे।
तभी आलोक ने बोला पापा साइकिल पर विनोद जी ने बेटे को चुप करा दिया। उस दिन आलोक ने कुछ नही बोला। थोड़ा रोया पर फिर मां ने शांत करा दिया।
हफ्ते भर बाद ही कॉलोनी के दूसरे पड़ोसी का बेटा अपनी नई साइकिल से निकला इतना देखना ही था कि आलोक चिल्लाता हुआ अंदर भागा और मां से साइकिल की जिद्द करने लगा। मां ने समझाने की कोशिश की कि बेटा साइकिल महंगी आती है पापा अभी नहीं दिला सकते नहीं तो वो आपको कभी मना नहीं करते। पर आज आलोक नही माना।
शाम में विनोद जी के घर आते मां ने आलोक का हाल पति को सुनाया। बेटे को रोता देख विनोद को अच्छा तो नहीं लग रहा था पर फिर भी उनके पास कोई रास्ता नही था। उन्होंने भी समझाने की कोशिश की पर आलोक की जिद्द देख के आलोक पर विनोद जी चिल्ला पड़े कि तुम लोग को समझ नही आता मेरे पास और लोग जितना पैसा नहीं है। मैं भी 8 घंटे तुम लोग के लिए ही खटता हूं, हां पर मेरे पास मनोज, मेहरा, गुप्ता जी जितनी कमाई नहीं है। और तुम उनके बेटे नहीं हो मेरे हो। इसलिए याद रखना हमेशा की मेरे और उन लोगों में अंतर है जरूरी नही है कि मैं तुम्हारी सारी ख़्वाहिशें पूरी कर सकूँ। उतना ही पैर फैलाओ जितनी चादर हो।
उस दिन के बाद विनोद की डांट से आलोक सहम सा गया। उसने अपनी बातें किसी से कहना बंद कर दी । यहां तक कि उसके बाद उसने कुछ मांगना ही बंद कर दिया।
10 साल बीत गये। आज इंटरमीडिएट के परिणाम आने वाले थे। सभी बच्चे अपने लिए परेशान थे। शाम में विनोद घर आये घर आते ही आलोक ने बताया पापा मेरे 80% नंबर आये हैं। पिता ने कॉलोनी में आते ही सुन लिया था कि पड़ोस के गुप्ता जी के बेटे का 89% नंबर है बस आलोक का रिजल्ट सुनते ही विनोद ने बोला गुप्ता जी के बेटे का 89 % है, कुछ सीखो उससे। पढ़ लिख लो थोड़ा। इस पर आलोक बहुत दुखी हुआ पर कुछ नहीं बोला। कुछ ही दिनों में आई. आई. टी. के परिणाम आने थे। उस बार पड़ोस वाले मेहरा जी के बेटे का IIT में सेलेक्शन हो गया। और आलोक कुछ नंबर से पीछे रह गया।
इस बार तो विनोद जी ने आलोक को बहुत कुछ सुना दिया फिर आधी रात गए आलोक ने अपने जीवन के खिलाफ एक अनुचित कदम उठा लिया और एक पत्र लिख कर छोड़ गया जिसमें लिखा था - "पापा बचपन में मैंने आपसे साइकिल के लिए कुछ बार जिद्द की थी तो आपने मुझे बताया था कि हर इंसान अलग होता है। आपकी कमाई और लोगों की कमाई में अंतर है। मैं आपका बेटा हूँ गुप्ता जी का नहीं कि आप मेरी सारी ख़्वाहिशें पूरी कर पाए। पापा आज मैं भी कुछ कहना चाहता हूं, मेरे और सारे लड़कों में भी फर्क है और मैं आपका बेटा हूँ जरूरी नहीं कि मेहरा जी, गुप्ता जी के बेटे जैसा ही मैं भी कर पाऊं। पापा मुझे पता है मेरा कदम गलत है पर मैं 8 साल में समझ गया कि मेरे पापा और सबके पापा एक जैसे नहीं हैं वो सब कुछ दूसरे के जैसा नहीं कर सकते। पर आप 52 साल में भी ये नहीं समझ पाए कि आपके बेटे और दूसरे के बेटों में भी फर्क है। "
पिता की आंखों में आँसू थे, पिता लाचार थे पर बेटे को खो कर आज विनोद को ये समझ में आया कि बेटे की खूबी कभी ढूंढी ही नहीं। पूरा जीवन लोगो से कंपैरिजन कर बुराइयां ही देखी।
इतनी देर न कीजिए व्यक्तिगत विभिन्नता को समझने की कोशिश कीजिए।