देश के भविष्य
देश के भविष्य


बच्चे कल का भविष्य होते हैं, ऐसा सुनते सब बड़े हुए होंगे। आखिर हमारे परिवेश में कुछ बातें सामान्य हैं ही। इसी बात से कुछ याद आया तो शब्दों का सहारा ले कर पन्नों पर उतारने बैठी पर दिल में दर्द और मस्तिष्क पर आघात नहीं भरते।
बात थोड़ी पुरानी है, ऑटो का सफर था आँफिस से घर वापस रही थी। मेरी सामने वाली सीट पर एक बच्चा अपनी बड़ी मां जिनको हम ताई भी कहते हैं के साथ बैठा मूंग फली खा रहा था। बच्चे की बड़ी मां और वो बच्चा दोनों ही लगातार चलती ऑटो से छिलके को बाहर की तरफ फेंकते और छिलके सबके ऊपर तो कुछ रोड पर गिरते।
काफी देर बाद मैंने बच्चे से पूछा बेटा आप पढ़ते हो ? उसने उत्तर दिया हां। फिर मैंने पूछा किस क्लास में हो ? उसने बताया 5 वीं। तब मैंने उससे पूछा आपको स्कूल में बोलते होंगे न कि कूड़े को कूड़ेदान में ही डालते हैं फेंकते नहीं, तो उसने कुछ नहीं बोला। फिर मैंने बोला बेटा कूड़ा फ़ेखते हैं क्या तुरंत उसने बोला, हाँ।
फिर मैंने बोला ऐसे नहीं करते आप लिफाफे में रख लो छिलके, साथ ही यही कार्य उस बच्चे की बड़ी माँ भी कर रहीं थीं तो मुझ
े लगा वो भी समझ जाएँगी, पर वो बच्चे के जवाब पर मुस्कुरा रहीं थी, थोड़ी देर तक फिर उन्होंने छिलके को लिफाफे में रखा तो मुझे लगा ठीक है, जैसे भी पर वो समझ गईं।
पर इंतेहा तो तब हो गई जब मूंगफली ख़त्म होते ही उन्होंने चलती ऑटो से पूरा छिलकों वाला भरा लिफाफा जोकि बैंड भी नहीं था, बाहर की तरफ फेंक दिया और ऑटो से बाहर तक छिलके फैल गए।
मैंने उस दिन चाहते हुए भी अपने आप को असमर्थ पाया। क्या कर रहें हैं हम ? गंदगी किसी भी प्रकार की हो उसको फैलने और फैलाने से रोकना हमारा फ़र्ज़ है। किंतु विडम्बना ये है कि हम अपनों की गलतियों पर समर्थन और पर्दा डालने की आदतों से बाज नहीं आते।
इस बात से आज भी मुझ को लगता है कि बच्चे देश का भविष्य जरूर होते है किन्तु उस भविष्य से देश में उजाला होगा या अंधेरा ये उनके हाथ में है जो देश का वर्तमान हैं। कृपया सभी सोचे। ये मात्र कहानी नहीं है देश के लिए एक रवानी है।
ये हैं संस्कार, हम क्या सीखा रहे हैं बच्चों को एक बार जरूर विचार करना चाहिए।
हाँ, ये ही भविष्य हैं देश के।