Kameshwari Karri

Others

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वो एक पल

वो एक पल

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बीस साल अध्यापिका की नौकरी करने के बाद मैं घर में बैठी थी क्योंकि पिछले महीने ही मेरा रिटायरमेंट हुआ था। हमेशा सोचती हूँ कि एक शिक्षक रिटायर होकर घर में कैसे बैठ सकता है। उसकी पूरी दुनिया बच्चों के आसपास ही होती है। मुझे बच्चों की शरारतें उन्हें डाँटना फटकारना फिर भी पीछे पीछे मेम कहते हुए उनका घूमना अंक कम आने पर अगली बार अच्छे से पढ़कर ज़्यादा अंक लाने के वादे माता-पिता के सामने शिकायत न करने की मिन्नतें सब याद आ रहीं थीं। घर में भी सब परेशान थे। पति ने कहा-अरे ! यार तुम्हारा वक़्त है अब आराम से जियो न पर मेरे कान पर जूँ तक नहीं रेंगी। ख़ैर अब कुछ हो नहीं सकता इसलिए अपना समय अपने दोस्तों से गपशप करना पुराने बिखरे हुए रिश्तों को समेटने में लगाने लगी क्योंकि तब समय नहीं था तो किसी से मुलाक़ात भी नहीं कर सकते थे अब तो समय ही समय है।  

स्कूल में हम पाँच सहेलियों का एक ग्रूप था। हम बहुत मस्ती करते थे साथ ही बीस साल एक ही जगह एक साथ रहने के कारण हमारे बीच प्यारा सा रिश्ता बन गया था। अब हम सब रिटायर हो गए थे। परंतु हमारी एक सखी शीला अभी भी दूसरे स्कूल में काम कर रही थी। इसी तरह दिन बीतते गए अब घर में भी अच्छा लगने लगा। पब्लिकेशन वालों के लिए पुस्तक समीक्षा करके देने लगी। एक साल कैसे बीत गया पता ही नहीं चला। आराम की आदत भी पड़ गई थी। अब घर में अच्छा लगने लगा। कल मेरी सखी शीला का फ़ोन आया था कि उनके स्कूल में हिंदी डिपार्टमेंट की हेड ने इस्तीफ़ा दे दिया था। वह मुझे आने के लिए कह रही थी कि हम दोनों साथ में रहेंगे आजा न। तुझे जब तक करना है कर ले खाली ही बैठी है न। मैंने सिर्फ़ एक साल करने का फ़ैसला किया और स्कूल में जॉइन हो गई। साल भर बाद बच्चों को देखते ही चेहरे पर मुस्कान आ गई थी। वही सुबह की प्रार्थना सभा बच्चों की किलकारियाँ और शरारतों ने पुरानी यादों को ताज़ा कर दिया था। दसवीं कक्षा को पढ़ाती थी इतने सालों तक एक बड़े नामी स्कूल के तजुर्बे के कारण बच्चे पढ़ाते समय बहुत ध्यान देते थे। मैं देखती थी कि कुछ टीचर की कही हर बात को अपने दिमाग़ में डाल लेते थे। जब उनकी कॉपियों की जाँच करती हूँ तब उदाहरण तक मेरी ही होती थी। कुछ बच्चे सुनकर अपने शब्दों में लिखा करते थे। मैं दो तीन दिन से देख रही थी कि महेश न टीचर की बात पर ध्यान देता था और न दूसरों को ध्यान देने देता था। अभी ही आई और एक दो दिन देखती हूँ सोचकर चुप रही। मैं क्लास ख़त्म करके स्टाफ़ रूम में आई देखा कि उस क्लास के क्लास टीचर को दूसरे विषयों के टीचर्स शिकायत कर रहे थे कि महेश शरारत करता है क्लास में किसी को सुनने नहीं देता ख़ुद भी नहीं सुनता है और जान बूझकर टीचर को डिसटर्ब करता है। क्लास टीचर कह रही थी कि आप लोग फ़िक्र मत कीजिए मैंने प्रिंसिपल मेम से उसकी शिकायत की है। उन्होंने बताया कि वह जब से स्कूल में आया है ऐसा ही है। आप लोग उसकी हरकतों पर ध्यान मत दीजिए। उसके माता-पिता को बुलाकर उनसे बात करते हैं।  

मेरे जॉइन होने के बाद क्लास का पहला टेस्ट हुआ। सभी छात्रों को पेपर्स दे रही थी कि अचानक महेश मेरे पैरों के पास आकर बैठ गया। मैंने उसे देखा पर कुछ कहा नहीं जैसे ही सबको पेपर्स देना हो गया तब उसकी तरफ़ देख कर कहा क्या बात है बेटा कुछ कहना है। उसकी आँखें भर आईं। मैं अगले टेस्ट में अच्छे अंक लाऊँगा। मैंने कहा बहुत बढ़िया मुझे अच्छा लगा कि आप पढ़ने में रुचि रखते हैं। महेश ने कहा मेम मैं आप से अकेले में बात करना चाहता हूँ। मैंने कहा ठीक है जब चाहे तब आ जाना मेरे पास हँसते हुए अपनी जगह पर जाकर बैठ गया। बाकी के बच्चे मेम आज पहली बार उसने एक टीचर से इस तरह बात की है। मुझे ख़ुशी हुई कि मेरा तजुर्बा बेकार नहीं गया। स्टाफ़ रूम में जाते ही क्लास टीचर ने कहा धन्यवाद मेम। मैंने कहा मैंने तो अभी कुछ किया ही नहीं है।  

दो दिन बाद महेश आया मेम हम बातें करें। मैंने कहा बिलकुल चलिए उसने जो बातें मुझे बताई उसे सुनकर मुझे लगा बच्चे कभी ग़लत नहीं होते। ग़लत हम बड़े होते हैं जो उन्हें समझ नहीं पाते। महेश बताने लगा मेम मैं अपने माता-पिता का अकेला बेटा था। लाड़ला उनकी आँखों का तारा। बिन माँगे सब मिल जाता था। मैं राजकुमार की तरह पल रहा था। मेम हम ज़्यादा अमीर नहीं हैं फिर भी मेरी हर ख़्वाहिश पूरी की जाती थी।  

थी!!!!’ मुझे लगा क्यों थी …अब क्या हुआ होगा। महेश ने आगे बताया कि मेम मेरी हर गलती को नज़रअंदाज़ किया जाता था। मेरी शरारतों को मासूमियत का नाम दिया जाता था। इसी लाड़ और दुलार में पलते हुए मैं छठी कक्षा में पहुँच गया था। अचानक एक दिन मैं स्कूल से घर आया तो देखा घर में मामा - मामी , नाना - नानी और भी लोग थे। मेरे घर में घुसते ही सबने कहा बधाई हो महेश अब तुम भैया बन गए हो। तुम्हारे साथ खेलने के लिए छोटा भाई पैदा हुआ है। यह क्या है ये सब क्या कह रहे हैं……मैं सदमे में था क्योंकि अब तक सब मुझे ही प्यार करते थे मेरे आसपास ही उनकी दुनिया थी पर आज कोई भी मेरी तरफ़ नहीं देख रहा था। सब उसके बारे में ही बात कर रहे थे। मुझे भी अस्पताल ले गए वहाँ सब उसे ही गोद में लेकर घूम रहे थे। मैं अकेला अलग से बैठा था किसी का भी ध्यान मुझ पर नहीं गया। माँ के साथ सब घर आ गए। पापा और माँ भी उस पर ही ज़्यादा ध्यान दे रहे थे। मैं हताश हो गया मुझे उस छोटे से बच्चे पर ग़ुस्सा आ रहा था जैसे मेरे ही साम्राज्य में आकर मुझे राजगद्दी से नीचे ज़मीन पर पटक दिया हो। अब धीरे-धीरे मैं अकेला रहने लगा। मैंने मन ही मन उस बच्चे पर नफ़रत पाल लिया। उसे बेवजह मारने लगा देखना चाहता था कि माँ पापा किसकी तरफ़दारी करते हैं। वह छोटा था तो वे लोग उसकी तरफ़दारी ही करते थे। मैं ग़ुस्से में उसे और मारता था। मुझे लगने लगा था कि छोटे भाई के आने से सबका मेरे प्रति प्यार कम हो गया है। अब माता-पिता भी मजबूरन मेरी शरारतों पर मुझे सज़ा देने लगे। मैं इस सबका ज़िम्मेदार अपने भाई को समझने लगा। मेम एक दिन तो मेरा ग़ुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया था। पिताजी रात को बाहर से आए और अपने साथ एक ही चॉकलेट लाए ।छोटा होने के कारण भाई को दे दिया। मुझे बहुत ग़ुस्सा आया पिताजी कारण बताने ही वाले थे कि एक ही चॉकलेट क्यों लाए मैंने उनकी बात सुने बिना ही छोटे भाई का सिर दीवार पर दे मारा। उसके सिर से खून बहने लगा। उसे तुरंत अस्पताल ले ज़ाया गया। मैं सहम गया और कोने में दुबक कर बैठ गया। भाई को अस्पताल से घर लाए पर उन्होंने एक फ़ैसला भी ले लिया कि मुझे होस्टल भेजना है। दोनों ही ना खुश थे पर मेरे बरताव से मजबूर हो गए थे। होस्टल जाते समय उनकी आँखों में आँसू देखकर मुझे भी पछतावा होने लगा क्योंकि उन्हें छोड़कर मैं भी कभी अलग नहीं रहा था। परंतु मेम मैं जब भी उस एक पल को याद करता हूँ तो मुझे अपने आप पर ग़ुस्सा आता है और अफ़सोस होता है कि मैंने ऐसा क्यों किया। मैंने अगर थोडी सी समझदारी से काम लिया होता तो मुझे अपनी ज़िंदगी के तीन साल माता-पिता से अलग नहीं रहना होता। होस्टल में रहकर मैं अपने काम ख़ुद करने लगा। आत्मनिर्भर हो गया पर ज़िद्दी और हठीला भी हो गया था। वापस घर आकर थोड़ा तो बदला हूँ पर अपनी मनमानी करने लगा हूँ। इसीलिए टीचर्स मुझे ग़लत समझते हैं मैं क्या करूँ बोलिए न। मैंने कहा ठीक है पर आप यह सब मुझे क्यों बता रहे हो बेटा!!!!मेम कल क्लास टीचर ने बताया था कि सारे टीचर्स मेरी बुराई कर रहे थे सिर्फ़ आपने कुछ नहीं कहा तब मुझे लगा कि मैं आपसे ही बात कर सकता हूँ। शायद ..आप ही हैं जो मुझे समझेंगी। मैंने उसे समझाया जो हो गया है। उसे ठीक तो नहीं कर सकते हैं पर अब अपने व्यवहार में बदलाव लाने की कोशिश कर सकते हो न। अपने भाई से भी प्यार करो वह तुम्हारा अपना है। अब इससे ज़्यादा मैं उसे क्या समझाती ? पर इतना कह सकती हूँ कि उस दिन से महेश में बदलाव ज़रूर आया है क्लास टीचर और दूसरे टीचर्स भी खुश थे कि वह पढ़ाई पर ध्यान दे रहा है।  

उस स्कूल में मेरा एक साल कैसे गुजर गया पता ही नहीं चला। आज भी सोचती हूँ तो ऐसा महसूस होता है कि बच्चे बहुत ही सच्चे होते हैं। सिर्फ़ उन्हें डाँटने के बदले में उन्हें समझने की ज़रूरत पड़ती है। मैं अपने आपको खुश क़िस्मत समझती हूँ कि मैं एक टीचर हूँ।  



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