Sheikh Shahzad Usmani

Children Stories

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Sheikh Shahzad Usmani

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विषाणु से कबड्डी (लघुकथा)

विषाणु से कबड्डी (लघुकथा)

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"कोविड-डी... कोविड-डी...कोविड-डी... कोविड-डी...!"

"गो कोरोना गो हो...गो कोरोना गो हो...गो कोरोना गो हो!"

"हू तू तू तू... हट तू... हट तू... हू तू तू तू तू....!"

यही स्वर गूँज रहे थे। दरअसल, अनलॉक-2 होने पर सोसाइटी के पार्क में आज जी भरकर कबड्डी खेली गई और खो-खो भी, लेकिन सोशल डिस्टेंसिंग का कुछ हद तक ख़्याल रखते हुए! चुनमुन, मुनमुन और गुनगुन ने भी ख़ूब आनंद लिया। जब थक गये तो झूलों में बैठ कर जी भरकर बतियाते क्या रहे, अपना ज्ञान बघारते रहे। ऑनलाइन कक्षाओं में टीचरों ने कोबिड-19 के बारे में जो समझाईश दी थी, वह सब साझा कर रहे थे।

चुनमुन गहरी नींद में यह सब सपने में देख रहा था! उस सपने में तभी उसे सुरीली आवाज़ सुनाई दी :

"जीवन चलने का नाम... चलते रहो सुबहो-शाम... ये रस्ता कट जायेगा मितरां... कोरोना हार जायेगा मितरां!"

"कौन!... कौन हो तुम!" चुनमुन ने पूछा।

"मैं... मैं हूँ तुम्हारी और तुम सबकी 'इम्यूनिटी !' ... कैसा लग रहा है चुनमुन आज कबड्डी और खो-खो खेलकर!"

"टीचर ने कहा था घर का पौष्टिक खाना खाओ और ख़ूब खेलो, योगा करो ! अनलॉक हुआ... सो आज खेल लिए आउटडोर गेम भी!" चुनमुन मुस्कराता हुआ बोला, "तुम्हें पता है ... हमारी सोसाइटी में योग प्रतियोगिता में मैं और गुनगुन जीते हैं! मुनमुन तो मन का फास्ट-फूड और जंकफूड खा-खा कर और कोल्डड्रिंक पी-पीकर मुटिया गई है... अब उससे कुछ भी नहीं हो पाता... डरती है कोरोना से!"

"चलो तुम दोनों जैसे बच्चे... कम से कम मेरा ख़्याल तो रखते हैं!" इम्यूनिटी ने ख़ुश होकर कहा, "दरअसल, सब दिल और दिमाग़ का खेल है ये जीवन! संतुलन हर जगह ज़रूरी है! छोटी सी बीमारी हो, या कोबिड-19 जैसी महामारी... मैं ही सबके काम आती हूँ न! मैं ही दवा हूँ; मैं ही भगवान की लैब में तुम्हारी बनाई हुई वैक्सीन हूँ चुनमुन!"

"मैं टीचर, पेरेंट्स और दादा-दादी के बातें मानकर ही चुन-चुन कर सही काम करता हूँ और गुनगुन हर बात को सुन और गुन-गुन कर सही रुटीन पर चलती है... इम्यूनिटी... तुम हमसे दोस्ती करोगी!" चुनमुन ने इम्यूनिटी की तरफ़ हाथ बढ़ाते हुए कहा।

"मैं तुम जैसे उन सब के साथ ही रहती हूँ, उन सब की दोस्त बन जाती हूँ जो दिमाग़ पर दिल को हावी नहीं होने देते मेरे अच्छे चुनमुन! दृढ़ इच्छा से ही की जीवन की रस्सी पर बैलेंस बना कर चला जा सकता है दोस्त!" इतना कहकर इम्यूनिटी फ़िर गुनगुनाने लगी:

"जीवन चलने का नाम... मेरे संग चलते रहो सुबहो-शाम... हँसते-खेलते-पढ़ते रहो सब करते काम... ये रस्ता कट जायेगा मितरां... विषाणु हर हार जायेगा मितरां!"

तभी अलार्म बज उठा। चुनमुन ने फ़ुर्ती से बिस्तर छोड़कर अपनी दिनचर्या शुरू कर दी।



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