वह पगली तो ना थी।
वह पगली तो ना थी।
आज पगली की शादी थी। उसके सौतेले पिता और उनके बच्चे बहुत खुश थे कि बिना दहेज के पगली की शादी हो जाएगी। सिर्फ गायत्री ही थी जो अपनी बेटी से चिपट कर आत्मग्लानि में डूबी ही जा रही थी लेकिन पगली ने मां को सांत्वना देते हुए कहा मां सच में यह मेरी ही इच्छा है। विजय जी मेरे दोस्त हैं और उन्हें मेरी बहुत जरूरत है। विदा करते हुए जहां सब खुश थे वहां मां की आंखों के आंसू थमने का ही नाम नहीं ले रहे थे।
छोटी उम्र में विधवा हो जाने के कारण बेटी को पालने के लिए गायत्री के पास 60 साल के वृद्ध नारायण जी के साथ शादी करने के अलावा और कोई चारा भी तो ना था उन्होंने उसे बेटी के साथ ही अपने घर में रखना स्वीकार लिया था। नारायण जी के 3 बड़े बेटे और भी थे। घर जाकर मां तो उनका घर का काम समेटने में ही व्यस्त हो गई थी। लेकिन छोटी सी उम्र में अकेले कमरे में डरते हुए सोने के कारण पता नहीं कब उसकी नन्ही सी जान रानी ने चींटियों को, रात को जगने वाले कुत्तों को और सुबह उठने वाले पक्षियों को अपना दोस्त बना लिया था। वह अपनी दुनिया में ही मगन थी।
वह मंदिर में जाकर परमात्मा से भी यही मांगती थी कि कहीं कोई बिल्ली कबूतर को ना खा जाए। सारा दिन खेतों में घूमते हुए वह एक पैकेट मैं शक्कर मिश्रित आटा लेकर घूमती थी और पेड़ के नीचे रहने वाली चींटियों को आटा डालती रहती थी। पक्षियों की आवाज सुनकर भागकर उसे पेड़ पर आए बंदर या चील को भगाते हुए उसे देखा जा सकता था।
रास्ते में भी कोई भी पशु पक्षी या किसी बीमार देखने के बाद वह असहज होकर स्कूल जाना भी भूल जाती थी और उनका ख्याल करना शुरू कर देती थी।और कई बार वह अपनी गुल्लक से पैसे निकालकर उस पशु को डॉक्टर के पास ले जाती थी और उसका इलाज करवाती थी। इसलिए सब उसे पगली ही कहते थे और उस पर हंसते थे। वह आठवीं तक भी मुश्किल से ही पढ़ पाई थी। स्कूल तक छोड़ने के लिए गली के कुत्ते उसके साथ ही चलते थे। वह घर में भी मां के काम में बहुत हाथ बंटवाती थी। रानी से ना तो कोई ज्यादा नाता रखना चाहता था और ना ही रानी किसी के साथ सहज हो पाती थी। सेवा ही उसका शौक था।
कुछ दिनों से वह पूरी दोपहर ही घर पर नहीं दिखती थी तो मां को बहुत चिंता हुई वैसे भी अब पगली बड़ी हो रही थी। नारायण जी ने गायत्री को वचन दे रखा था कि वह उसकी लड़की की शादी अच्छे घर में करवा देंगे। नारायण जी ने पड़ोस के गांव के समृद्ध घर के लड़के से उसकी विवाह की बात भी पक्की कर दी थी हालांकि उनके बेटों को यह बिल्कुल पसंद नहीं था कि दहेज में उनके पिता यूं ही पैसे लुटाएं लेकिन जब रानी ने मां को बताया कि वह विजय जी से शादी करना चाहती है और सारा दिन वह उनके ही घर में काम करती हैं तो गायत्री एकदम परेशान हो उठी।
विजय गांव के दूसरी तरफ रहने वाली विधवा कलावती जी का इकलौता बेटा था जो कि सेना में भर्ती था और कारगिल युद्ध में अपने दोनों पैर और एक हाथ गंवा बैठा था। रानी अपना सारा समय कलावती जी की सहायता करने और क्योंकि वह वृद्ध हो गई थी इसलिए वह अपने बेटे विजय की सेवा भी नहीं कर पाती थी । रानी अपने घर में अपनी मम्मी की सहायता करने के बाद खेत में जानवरों को संभालते हुए उनके घर चली जाती थी। कलावती भी रानी के बिना में अपने जीवन को सोच ही नहीं सकती थी। हालांकि उस घर में कलावती और विजय के प्रेम के कारण ही रानी भी अपने जीवन को सार्थक समझती थी। घर के सब लोग इसलिए खुश थे कि पगली वास्तव में ही पगली है और उससे बिना पैसों के ही उनका पिंड छूट जाएगा लेकिन पगली इसलिए खुश थी कि अब वह सिर्फ प्रेम के ही मंदिर में जाकर प्रेम को ही आधार बनाकर प्रेम से ही अपने घर की रानी बनेगी। रानी मुस्कुरा रही थी और उसकी मां गायत्री आंसुओं से भीगी हुई समझ नहीं पा रही थी कि अपनी बेटी को कैसे समझाएं कि विजय से शादी करके उसका जीवन कैसा होने वाला है? लेकिन ----------- पगली बहुत खुश थी।
