उजड़ा हुआ दयार-श्रृंखला(15)
उजड़ा हुआ दयार-श्रृंखला(15)
मीरा और श्रीवास्तव एक दूसरे के काफी निकट आ गये थे।लेकिन दिक्कत दोनों को थी।दोनों का एक होना तब तक नामुमकिन था जब तक वे अपने पति या पत्नी को कानूनन तलाक न दे दें।कानून ने हिन्दू विवाह अधिनियम में तलाक को इतना जटिल बना दिया है कि तलाक फाइनल होने में बरसों लग जाते हैं।हां, मुस्लिम परम्परा इससे एकदम अलग और फटाफट है।पति या पत्नी ने फटाफट तीन बार तलाक़ तलाक़ तलाक़ बोला कि बस तलाक़ हो गया!
सुना जाता है कि कुछ धर्म , कुछ सम्प्रदाय यह विश्वास करते हैं कि एक दिन क़यामत का आएगा और कब्रिस्तान में सो रही आत्माएं जीवित होकर पुनः नया जीवन पा जाएंगी।लेकिन पिछली अनेक पीढ़ियों का यह विश्वास फिलहाल सौ दो सौ साल में तो फलीभूत नहीं हो पाया है। यह भी तो हो सकता है कि यह ख़याली पुलाव मात्र हो।
समीर उस शाम उन सन्यासी से मिलकर बहुत हल्का महसूस करता रहा।सन्यासी ने उसको थोड़ी ही देर में उसकी वर्तमान स्थिति को मानो एक एक करके पढ़ लिया था।उन्होंने उसे यह भी बताया था कि उसके गुरुदेव त्रिकालदर्शी हैं।वर्तमान, भूत और भविष्य बताना उनके लिए चुटकी भर का खेल है।लेकिन उनका दर्शन पाना टेढ़ी खीर है।समीर को इसके लिए पहले यम और नियम का सख्त पालन करना होगा।यम नियम अर्थात सत्य, अहिंसा, अस्तेय, ब्रम्हचर्य , अपरिग्रह,शौच, संतोष, शाकाहार आदि... ।सब तो संभव था लेकिन शाकाहार और ब्रम्हचर्य का अनुशीलन लगभग असंभव।काम, क्रोध, मद,लोभ से भला कोई बच पाया है
? लेकिन उसने चुप रहकर उस अप्रत्याशित रुप से प्रगट हुए संयासी की बातें ग्रहण कर लीं।
घंटाघर की घड़ी ने रात के नौ बजने की बेचना दी तो दोनों वहां से अपने अपने गंतव्य स्थल चल दिये इस समझौते के साथ कि सन्यासी जी कल सुबह समीर को अपने क्रियायोग की साधना पद्धति बताएंगे और अगर संभव हुआ तो दीक्षा भी देंगे।
क्या सचमुच समीर का हृदय परिवर्तन होने जा रहा है?
(क्रमशः)