तपस्या

तपस्या

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"अरे छोड़ मुझे यह क्या बालों का बनाए जा रही है तू ।लोग देखेंगे तो हसेंगे कि इस उम्र में मुझे क्या फैशन करने की सूझी हैं।"

"रुको ना मम्मी क्या हर बार बालों का बस वही एक सिंपल सा जूड़ा। आप देखना आपको मैं कैसे आशा पारीक स्टाइल में तैयार करती हूं। इस उम्र में भी इतनी अच्छी फिगर है आपकी। पता नहीं क्यों हमेशा बेरंग से फीके कपड़े पहन कर जाती हो ऑफिस स्टाफ की पार्टी में। आज ऐसे ही नहीं जाने दूंगी मैं आपको!"

 "बस कर क्या मुंह को पूरा पोत कर ही दम लेगी!"

 "हां ये खूबसूरती जो आपने छुपा रखी है। डर लगता है आपको नजर लगने से। तो लो काला टीका भी लगा दिया"!

 "तू नहीं मानेगी । हे राम यह क्या बना दिया तूने मुझे!"

 "कितनी सुंदर लग रही हो मम्मी आप। हमेशा ऐसे ही बन कर रहा करो।" कह ज्योति अपनी सासू मां के गले में झूल गई। 

एक बार को सुरेश जी ने भी खुद को आईने में देखा तो वह भी अपने आप को ना पहचान सकी ।अंदर ही अंदर वह भी खुश थी। अच्छा अब मुझे चलने दे लेट हो रही हूं ।

 "यह क्या मम्मी जी यह वाला पर्स लेकर जाओगी शादी में!"

 "तो अब इस पर्स में क्या कमी है!"

 'दिख नहीं रहा आपको इसकी सिलाई उधड़ रही है और इस साडी से मैचिंग में नहीं जा रहा है आजकल सिलिंग बैग का फैशन है। यह लो आप मेरे वाला।"

 "नहीं यह तो मैं बिल्कुल भी नहीं लेकर जाऊंगी।"

 "क्या मम्मी दीदी की आप हर बात मानते हो और मेरी नहीं! बहु हूं ना आपकी इसलिए ना !"

"अब तू रहने ही दे अपनी नौटंकी! बहू नहीं तू मेरी सासू मां है। बहुत इमोशनल अत्याचार करती है तु मुझ पर । इसको नहीं लेकर जाऊंगी। कोई क्लच है तो दे उसे ही लूंगी समझी ना।"

"चलो ठीक है ।"कह ज्योति ने जल्दी से एक क्लच अपनी सासू मां के हाथ में दे दिया और वह उसे लेकर नीचे उतर गई।

ज्योति की बातों को सोच सोच कर उसे अब हंसी आ रही थी और उस पर प्यार भी। शायद उसने कुछ अच्छे ही कर्म किए होंगे जो उसे बहू के रूप में भगवान ने एक बेटी और दे दी। दूसरी तरफ अपने पति के बारे में सोच उसका मन कसैला हो गया। कितना शौक था उसे चटक रंग पहनने और मेकअप करने का। शादी से पहले मां बाप ने उसे यह कहकर सजने संवरने नहीं दिया कि भले घर की बेटियां शादी से पहले साज सिंगार नहीं करती । शादी के बाद अपनी ससुराल में जाकर खूब सजना संवरना। जब उसकी शादी तय हुई, कितनी खुश थी वह कि चलो अब अपने मन मुताबिक कपड़े पहनेंगी और खूब अच्छे से मेकअप किया करेंगी।

शादी के तो 2- 4 दिन बाद ही उसके पति ने यह कहते हुए उसके अरमानों पर पानी फेर दिया कि "मुझे यह लीपापोती ज्यादा पसंद नहीं है और ना ही चटक कलर। ध्यान रखना बार-बार कहना ना पड़े।"

अपने पति की ऐसी रूखी बातें सुन। उसके सारे सपने टूट गए। उसे उदास देख उसकी सासु मां ने कहा भी "बहू तू ज्यादा दिल पर मत ले । मैं उसी समझाऊंगी । "

लेकिन इतनी उम्र हो गई, वह कभी ना समझे। हां सुदेश जी उनका स्वभाव समझ गई थी कि उनके पति शक्की स्वभाव के है। उन्हें पसंद नहीं था कि वह किसी से हंसे बोले, ज्यादा सजे संवरे।पहले तो उनका जी किया कि वह घर को छोड़कर भाग जाए लेकिन जाए कहां! वह घर भी तो जेल से कम नहीं था। कौन उसे समझेगा।फिर बच्चे और उनकी ममता के आगे उन्होंने सारे शौक त्याग दिए। घुट-घुट कर जीती रही।‌पति के अत्याचार सहती रही। आज भगवान ने उसकी तपस्या का फल , उसकी भावनाओं को समझने वाली बहू के रूप में दिया। उसने फिर से मन ही मन भगवान का शुक्रिया अदा किया।



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