थप्पड़
थप्पड़
आकाश को आज पूरी क्लॉस के सामने थप्पड़ लगा। इसी घटना को वह लंच टाइम में अकेला बैठा बार-बार याद कर रहा है। तभी उसका दोस्त अंकुर आया और कहने लगा, "खाना खा ले, यार! मिथलेश सर का गुस्सा क्यों खाने पर निकाल रहा हैं? अगला पीरियड गेम्स का है , फुटबॉल खेलने से मन ठीक हो जाएगा, खाना खा ले, या फ़िर कैंटीन चलते हैं, वहीं कुछ खाएंगे"। अंकुर उसे उठाता हुआ बोला। "नहीं यार! मिथलेश सर ने अच्छा नहीं किया। मैं स्कूल का टॉपर हूँ। खेल में भी कई मैडल स्कूल को दिलवा चुका हूँ। मैं यह थप्पड़ डिज़र्वे नहीं करता। आकाश की आवाज़ में गुस्सा और अहंकार दोनों है। तू देख ! अब मैं क्या करता हूँ।" कहकर आकाश चुप हो गया। मगर उसका चेहरा साफ़ बता रहा है कि उसका मन अब भी अशांत है।
घंटी बजते ही सब बच्चे खेलने चले गए पर आकाश कान का दर्द बता स्कूल से जल्दी घर आ गया और कई दिन तक स्कूल नहीं गया। पर उसके माता-पिता स्कूल आ गए और मिथलेश सर को प्रिंसीपल ने अपने ऑफिस में बुला लिया। "मिथलेश आपने कुछ दिन पहले आकाश को थप्पड़ मारा था। अब काफी दिनों से उसके कान में दर्द हैं, आपको अच्छे से पता है कि नए नियम कानून के मुताबिक हम बच्चों पर हाथ नहीं उठा सकते और आकाश स्कूल का टॉपर हैं , उसने हमारे स्कूल को कई मैडल दिलवाये है। उसकी गलती को आपको अनदेखा कर देना चाहिए था।" प्रिंसिपल अरुण बजाज ने मिथलेश को नोटिस थमाते हुए कहा। "सर आप एक बार मेरी बात तो सुनिए, उस दिन दसवीं क्लास में मेरा अरेंजमेंट लगा हुआ था। मैं उन्हें बॉटनी लैब में ले गया। वहाँ मैं तरह-तरह के पौधों के बारे में बता रहा था, एक आकाश ही ऐसा था जो हर पौधे को नुकसान पहुँचा रहा था। पहले मैंने उसे समझाया और न मानने पर लैब से निकाल भी दिया। फिर थोड़ी देर बाद बिना मेरी अनुमति के लैब में आया और जानलेवा केमिकल मेरे पौधों पर डाला। जिससे पौधे ने वहीं दम तोड़ दिया। बस उसकी इसी हरकत पर मैंने उसे थप्पड़ लगा दिया। थप्पड़ इतना तेज़ नहीं था कि कान को कोई नुकसान हो।" मिथलेश सिर ने सफ़ाई दीं। "आप उसे मेरे पास ले आते, ऐसी क्या आफ़त आ गई थीं, वो पौधे ही तो थें।" प्रिंसिपल ने बड़ी ही बेपरवाही से ज़वाब दिया। सर, वो पौधे मामूली नहीं थें। बड़ी मुश्किल से उनके बीज़ मिलते हैं और हर पौधे को मैंने जतन से पाला हैं। हमें आज की पीढ़ी को यही बताना है कि जो हम जतन से बो रहे है, उसे हमें कैसे सहजना हैं। क़ानून उनकी हिफाज़त के लिए है न कि उनकी गलतियों को और बढ़ावा देने के लिए। अगर बच्चा स्कूल में अनुशासन नहीं सीख पाएंगा तो उसकी शिक्षा अधूरी रह जाएँगी।
मिथलेश सर की बातों का प्रिंसिपल पर कोई असर नहीं हुआ और उन्हें स्कूल छोड़ना पड़ा। कई छात्रों को उनके जाने से दुःख हुआ क्योंकि वही थे जिन्होंने उन्हें प्रकृति से प्रेम और उसका आदर करना सिखाया था। मगर आकाश खुश है कि कैसे उसने अपने घरवालों को अपनी तरफ़ कर सबको बेवकूफ़ बनाते हुए हुए सर को स्कूल से निकलवा दिया। इस घटना को छह महीने बीत गए। मिथलेश सर ने कोई और स्कूल के लिए आवेदन नहीं किया क्योंकि वह समझ चुके थें कि गुरु का काम केवल शिक्षा देना नहीं, परीक्षा देना भी हो गया हैं। उन्होंने अपनी पौधों की नर्सरी खोल ली। स्कूल में आकाश विज्ञान की एक प्रतियोगिता जीत गया और प्राइज के साथ लैब से सामान घर भी ले आया ताकि कुछ नया रासयनिक अविष्कार कर सकें। "देखो ! माँ इस केमिकल से मैं कुछ नया केमिकल बनाऊँगा। " "ध्यान रखना कहीं कोई नुकसान न हों जाए।" माँ ने समझाया। "नहीं माँ, यह खतरनाक केमिकल नहीं हैं, यह वही है जिसकी वजह से मुझे बॉटनी के सर ने थप्पड़ मारा था। " आकाश ने चिढ़कर कहा। तब उसकी माँ आकाश के सिर पर प्यार से हाथ फेर चली गई।
रात को आकाश के छोटे भाई अतुल की तबीयत ख़राब हो गई और उसे हॉस्पिटल ले जाना पड़ा। पाँच साल का मासूम दर्द से तड़प रहा है।
मगर डॉक्टर चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं। डॉक्टर ने बताया कि हमें ऑपरेशन करना पड़ेगा। ऑपरेशन के बाद डॉक्टर ने कहा," कोई ज़हरीला पदार्थ अतुल ने खा लिया था। जिसकी वज़ह से अब भी उसकी हालत नाज़ुक हैं। आकाश ने यह सुना और तुरंत घर आकर देखा कि उसकी केमिकल की शीशी आधी खाली है। वह सिर पकड़कर बैठ गया। उसने यह बात अपनी माँ को बताई तो वह आकाश को मारने को हुई। मगर पिता ने उसे बचा लिया। " तेरे सर ने तुझको सही चाटा मारा था " कहकर माँ रोने लगी।
अतुल बच गया, मगर उसका हाजमा काफ़ी कमज़ोर हो गया है। सिंगापुर में रह रहे चाचा ने उसे वहाँ के डॉक्टर को दिखाने की बात कही तो आकाश के माँ-बाप अतुल को वहाँ ले गए और आकाश अपने नाना-नानी के पास आ गया।
"आज पाँच सितम्बर टीचर्स डे हैं।" यह बात मिथलेश सिर अपने पौधों को बता रहें हैं। उनका मानना है कि पौधों से बात करने से उनकी उम्र बढ़ती हैं। उनके पिछले कई स्टूडेंट्स ने उन्हें कार्ड और गिफ़्ट भेजे। मगर उपहार में एक पौधा और लिफ़ाफ़ा देखकर वह चौंक गए। उन्होंने लिफ़ाफ़े में आये खत को पढ़ना शुरू किया-----
प्रिय मिथलेश सर
सादर नमस्कार !
मैं खुद को इस क़ाबिल नहीं समझता कि आपसे मिलकर आपको यह उपहार दे सकूँ। आपने सही कहा था कि शिक्षक सूर्य की भाँति होता है जो हमारे जीवन को अपने ज्ञान एवं स्नेह से प्रकाशित करता है। हो सकता है कि ऋतुएँ बदलने पर उसकी रोशनी तपिश सी लगे। मगर उसका प्रकाश हमारे लक्ष्य की ओर जाने वाले मार्ग को सदा आलोकित करता रहता है। देर से ही सही, मैं आपके उस थप्पड़ को समझ चुका हूँ। जब मेरे किसी अपने पर बीती तो मुझे समझ में आया कि उस दिन आप कैसे तड़पे होंगे, जब आपने अपने शिशु रूपी पौधे को मरते देखा होगा। अज्ञानता का अँधेरा हट चुका है सर। हो सके तो मुझे क्षमा करें और हमारे बारहवीं के फेयरवेल में मुख्य अतिथि के रूप में आना स्वीकार करें। सभी बच्चे आपको बहुत याद करते हैं। अगर आप आएंगे तो मैं समझूँगा कि आपका मन मेरी ओर से मैला नहीं हैं। जटिल बीजों को ढूँढ़कर वहीं पौधे लगाए हैं। उनमे से एक आपको भेट कर रहा हूँ। हैप्पी टीचर्स डे सर। आपका इंतज़ार रहेगा।
आकाश
सौम्य पब्लिक स्कूल
इस घटना को पूरे दो साल बीत चुके है। मगर यह लड़का आज माफ़ी माँग रहा हैं। इसकी वजह से मेरी शिक्षक की भूमिका ख़त्म हो गई। सर पौधों को देखकर बोले।
स्कूल का अंतिम दिन फेयरवेल का कार्यक्रम शुरू हों चुका हैं। आकाश की नज़रे दरवाज़े पर लगी हुई है। प्रिंसिपल ने आकाश को मंच पर स्पीच देने के लिए बुलाया। "सर, नहीं आएंगे। मैंने उनके साथ अच्छा भी नहीं किया था।" यह सोचकर वह उदास हो गया। तभी उसे मिथलेश सर हॉल में आते हुए नज़र आये और आकाश की आँखों में चमक आ गई। उसने अपनी स्पीच के अंत में कहा, "हमें प्रकृति से परोपकार करना सीखना चाहिए। वृक्ष को देखो! वे पत्थर खाकर भी फल देते हैं। " यह कहकर वह स्टेज से दौड़कर आया और सर के चरण स्पर्श कर उनसे गले लग गया और पूरा हॉल तालियो से गूँज उठा। मगर वह नम आँखों से सर को यही कह रहा था, "दो-चार थप्पड़ और मार लीजिये सर।" "हाँ , मारूंगा ! बिलकुल मारूंगा ! मिथलेश सर ने उसके आँसू पौछते हुए कहा।
