समर्पण
समर्पण
आमतौर पे समर्पण के अनेक रूप हैं... कोई देशभक्ति में समर्पण करता है तो कोई परिवार के लिए तो कोई रिश्तेदारी निभाने लिए समर्पण करता है...
आज मैं लिखती रही मिटाती रही समर्पण की कहानी लिखे तो क्या लिखूं ये सोच में डूबी जा रही। समर्पण किसका समर्पण जो परिवार की बागडोर संभालने के लिए सुबह-शाम दौड़ भाग करते हैं बदले मैं क्या चाहता हैं के अपने हाले दिल परिवार से छुपाकर,
कभी मुस्कुराया बहुत, कभी आंसू बहाता रहा आदमी और अकेला हुआ ही नहीं कभी, उसके साथ जिम्मेदारी की फ़ौज चलती रही और वो मुस्करा कर समर्पण करता रहा और जिम्मेदारी के समुन्दर में खुद को डुबाता रहा, कभी किसी से किया था इज़हारे मोहब्बत, उस मुहब्बत को निभाने के लिए खुद समर्पण करता रहा.. आज घर में खुशी बिछाऊँगा ये उम्मीद लगाता रहा।
दुनिया जहान में मिल गया, दूर होकर अपनी मोहब्बत से, सुकून जिंदगी का भूलता रहा, और रात दिन कड़ी मेहनत करके रूपए कमाने लगा फिर भी ये ताने मिला के यकीन के लायक शायद कभी न थे आप, ये सुनकर भी....
समर्पण की भावना दिलों से लुटाता रहा,
न जाने फिर भी परिवार के दिल पर क्यों पहुंच नहीं पा रहा !
वक्त का दरिया रोके न रुका है किसी के, कह न सका ,पर हर रोज़ आदमी कमाई करने के लिए कितनी बार मरता है और कितनी बार जीता है...!!!
आज समर्पण के लिए लिखती रही मिटाती रही के मेरी कलम से किसी को अन्याय न हो जाये..
समर्पण की सच्चाई दिल से सुनाती रही...
आदमी समर्पण करके कभी मुस्कुराया बहुत, कभी आंसू बहाता रहा, अकेला हुआ ही नहीं कभी जिम्मेदारी के समुन्दर में खुद को डुबाता रहा और समर्पण करके भी बेखबर बनकर परिवार की खुशियों के लिए खुद टूटता रहा....।।।