समाज क्या कहेगा
समाज क्या कहेगा
रामकिशन शहर के नामी वकील थे। लोगों की सोच यह है कि उनके हाथ में गया हुआ केस कभी हार नहीं सकता है। इसलिए वे हमेशा व्यस्त रहते थे। उनके बारह बच्चे थे। जी उस समय भगवान की देन कहते हुए बच्चों को पैदा किया जाता था और यह भी कहा जाता था कि जिसने ज़िंदगी दी है वह पाल भी लेगा। बस इसी सोच के साथ रामकिशन जी भी बारह बच्चों के पिता बन गए थे। पेशे से वकील और नाम होने के कारण बच्चों को पालने में उन्हें कोई दिक़्क़त नहीं हुई थी। सुलोचना बारह बच्चों की माँ वकील साहब की पत्नी बच्चों को पालते हुए असमय ही बुढ़ापे की दहलीज़ पर पहुँच गई थी।
रामकिशन जी ने अपने सभी बच्चों को चाहे वह लड़की हो या लड़का पढ़ाया लिखाया और काबिल बनाया था। उनकी छह लड़कियाँ थीं और छह लड़के थे। चार लड़के वकील ही बने और दो लड़के सॉफ़्टवेयर इंजीनियर बन गए। लड़कियों में बड़ी वाली ने सिर्फ़ ग्रेजुएशन किया बाकी दो डॉक्टर और दो वकील बन गई एक ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर रही थी।
रामकिशन जी को तो यह भी नहीं मालूम था कि उनके बच्चे क्या पढ़ रहे हैं। वह तो सुलोचना जी थी जिन्होंने अपने बच्चों को काबिल बनाया था। धीरे-धीरे सभी लड़कियों और लड़कों की शादी भी हो गई थी। सुलोचना जी को थोड़ी सी फ़ुरसत मिली थी दीन दुनिया की तरफ़ देखने की अब तक वे इतनी व्यस्त थीं कि उन्होंने कभी मेन डोर की तरफ़ नज़र उठाकर कर भी देखा नहीं था ऐसा लोगों का कहना है। ईश्वर की कुछ और ही मंशा थी इसीलिए एक रात जब सुलोचना सोई तो फिर जागी ही नहीं ऐसी सुकून की नींद में सोई जैसे इतने सालों के बाद फ़ुरसत से लेटी हुई है।
सुलोचना जी की मृत्यु के बाद रामकिशन अकेले रह गए थे। अब तक उन्हें भी एहसास नहीं होता था कि घर कैसे चल रहा है सिर्फ़ पैसे कमाकर सुलोचना जी के हाथ में थमाकर अपने हाथ साफ़ कर लेते थे परंतु आज उनकी कमी बहुत ज़्यादा खल रही थी।
कुछ दिन ऐसे ही चला पर फिर उन्होंने एक निर्णय लिया और अपनी जायदाद को अपने बारह बच्चों में बाँट दिया और खुद के लिए भी एक हिस्सा रख लिया था। बच्चों ने कहा था कि आप इतनी जल्दी वसीयत क्यों लिख रहे हैं पर उन्होंने किसी की भी बात नहीं सुनी थी। रामकिशन इतने बड़े घर में भी अकेले हो गए थे। जब जीवन संगिनी थी तब ज़िम्मेदारियों के बोझ तले दबे हुए थे और आज जब फ़ुरसत मिली थी तो जीवन संगिनी को ही खो दिया था।
बच्चे सब अब अपनी ज़िम्मेदारी को निभाने में व्यस्त थे किसी को भी फ़ुरसत नहीं थी अपने पिता का हाल-चाल पूछने की। दोस्तों ने और रिश्तेदारों ने भी ज़ोर दिया था कि दूसरी शादी कर लो ताकि तुम्हें भी कोई साथी मिल जाएगा परंतु रामकिशन ने कहा अब मैं पचहत्तर साल का हो गया हूँ अब शादी करूँगा तो लोग क्या कहेंगे? यह उम्र शादी की है क्या ?
दिन बीत रहे थे एक दिन रामकिशन अपने दोस्त के घर गए थे। वहाँ पहली बार उनके परिवार के सदस्यों से मिले। रामेश्वर ने सबका परिचय कराते हुए अंत में अपनी बहन मालती से भी मिलाया वह पचपन साल की थी। रामेश्वर का कहना है कि माता-पिता हर रिश्ते में कोई न कोई ऐब निकालते थे जिसके चलते वे तो चले गए पर मालती बिन ब्याही रह गई थी। वह अकेली ही घर का काम करती थी
रामकिशन घर पहुँच कर सोचते हैं कि मैं अगर मालती से शादी कर लूँ तो मेरा सूनापन भी दूर हो जाएगा और मालती की भी शादी हो जाएगी। अब उन्होंने यह भी सोचा कि मैं एक वकील हूँ और दूसरों के बारे में क्यों सोचूँ यह ख़याल मन में आते ही उन्होंने अपने सभी बच्चों को एक जगह इकट्ठा किया और अपने दिल की बात कह दी। यह भी कहा कि मैंने अपनी वसीयत लिख दी है। जिसको इस घर में रहना है रह सकते हैं। जिन्हें नहीं रहना है वे बेझिझक जा सकते हैं। यह घर मेरा है तो मैं यहीं रहूँगा। वैसे भी सब की रसोई भी अलग है तो किसी को फ़िक्र करने की ज़रूरत भी नहीं है। जितने मुँह उतनी बातें। यह उम्र है क्या शादी करने की लोग क्या कहेंगे पोते पोतियों की शादियों को कराने का वक़्त है और खुद दूल्हा बनना चाहते हैं।
बच्चों ने कहा ठीक है पापा आपकी जैसी मर्ज़ी है वैसा ही कीजिए। हमें कोई एतराज़ नहीं है। बड़ी बहू ने कहा कि आप हम सब से नाराज़ हैं क्या ?हमने आपकी देख-रेख में कोई कमी रखी है क्या ?
रामकिशन ने कहा नहीं बहू आप सब बहुत अच्छे हैं पर अपने जीवन में व्यस्त हैं। मुझे एक साथी की ज़रूरत है जो मेरे सुख दुख में मेरे साथ रहे बस और कुछ नहीं। सबकी सम्मति से रामकिशन और मालती ने शादी कर ली थी। लोगों ने यहाँ तक कह दिया था कि वाह रे रामकिशन की क़िस्मत पचहत्तर साल की उम्र में भी कुंवारी लड़की ही मिली है। लोगों का क्या है कुछ भी कहते हैं पर आज वे दोनों सुखद जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
दोस्तों बच्चे अगर अपने माता-पिता के दिल की बात समझ लें तो उनकी बहुत सारी समस्याओं का समाधान अपने आप हो जाता है। लोगों का क्या है उनका काम ही है कहना आज रामकिशन तो कल कोई और ?
