सिर्योझा - 10
सिर्योझा - 10
आसमान में और धरती पर हो रही घटनाएँ
लेखक: वेरा पनोवा
अनुवाद: आ. चारुमति रामदास
गर्मियों में तारे नहीं दिखाई देते. सिर्योझा चाहे कभी भी उठे, कभी भी सोए – आँगन में हमेशा उजाला ही रहता है. अगर बादल और बारिश भी हो, तब भी उजाला ही रहता है, क्योंकि बादलों के पीछे होता है सूरज. साफ़ आसमान में कभी कभी सूरज के अलावा, एक पारदर्शी, बेरंग धब्बा देखा जा सकता है, जो काँच के टुकड़े जैसा लगता है. यह चाँद है, दिन का चांद, बेज़रूरत, वह लटका रहता है और सूरज की चमक में पिघलता रहता है, पिघलता रहता है और ग़ायब हो जाता है – पूरी तरह पिघल गया; नीले, विशाल आसमान में सिर्फ सूरज ही राज करता है.
सर्दियों में दिन छोटे होते हैं; अंधेरा जल्दी हो जाता है; रात के खाने से काफ़ी पहले दाल्न्याया रास्ते पर, उसके बर्फ से ढँके बगीचों और सफ़ेद छतों पर तारे नज़र आने लगते हैं. वे हज़ारों, या हो सकता है, लाखों भी हों. बड़े तारे होते हैं, छोटे भी होते हैं. और बहुत बहुत छोटे तारों की रेत दूध जैसे चमकदार धब्बों में मिली हुई. बड़े तारों से नीली, सफ़ेद, सुनहरी रोशनी निकलती है; सीरिउस तारे की किरणें तो बरौनियों जैसी होती हैं; आसमान के बीच में तारे – छोटे और बड़े, और तारों की रेत – सब कुछ बर्फीले-चमकते घने कोहरे में घुल जाता है, एक आश्चर्यजनक – टेढ़ामेढ़ा पट्टा बनाते हुए, जो सड़क पर एक पुल की तरह फैला होता है – इस पुल को कहते हैं : आकाश गंगा!
पहले सिर्योझा सितारों पर ध्यान नहीं देता था, उसे उनमें दिलचस्पी नहीं थी, क्योंकि वह नहीं जानता था कि उनके भी नाम होते हैं. मगर मम्मा ने उसे आकाश गंगा दिखाई. और सीरिउस भी. और बड़ा भालू. और लाल मंगल. हर तारे का एक नाम होता है, मम्मा ने कहा था, उनका भी जो रेत के कण से बड़े नहीं होते. मगर वे सिर्फ दूर से ही रेत के कणों जैसे दिखाई देते हैं, वे बहुत बड़े बड़े होते हैं, मम्मा ने कहा था. मंगल पर, हो सकता है कि लोग रहते हों.
सिर्योझा सारे नाम जानना चाहता था, मगर मम्मा को याद नहीं थे; वह जानती तो थी, मगर भूल गई थी. मगर उसने उसे चांद के पहाड़ दिखाए थे.
क़रीब क़रीब हर रोज़ बर्फ़ गिरती है. लोग रास्ते साफ़ करते हैं, उस पर पैर रखते हैं और गंदे निशान छोड़ देते हैं – मगर वह फिर से गिरती है और सब कुछ ऊँचे ऊँचे परों के तकियों से ढँक जाता है. फ़ेंसिंग के खंभों पर सफ़ेद टोपियाँ. टहनियों पर मोटी मोटी सफ़ेद बत्तख़ें. टहनियों के बीच बीच की जगह पर गोल गोल बर्फ़ के गोले.
सिर्योझा बर्फ़ पर खेलता है, वह घर बनाता है, लड़ाई लड़ाई खेलता है, स्लेज पर घूमता है. लकड़ियों के गोदाम के पीछे लाल-गुलाबी दिन ढलता है. शाम हो जाती है. स्लेज को रस्सी से खींचते हुए सिर्योझा घर लौटता है. कुछ देर ठहरता है, सिर पीछे को करता है और अचरज से परिचित तारों की ओर देखता है. बड़ा भालू आसमान के क़रीब क़रीब बीच में उतरा है, बेशर्मी से अपनी पूँछ फैलाए हुए. मंगल अपनी लाल आँख मिचका रहा है.
‘अगर ये मंगल इतना तंदुरुस्त है कि हो सकता है, कि उस पर लोग रहते हों,’ सिर्योझा के दिल में ख़याल आता है, ‘तो यह भी काफ़ी हद तक संभव है कि इस समय वहाँ भी ऐसा ही बच्चा खड़ा हो, ऐसी ही स्लेज लिए, ये भी काफ़ी संभव है कि उसका नाम भी सिर्योझा हो...’ यह ख़याल उसे चौंका देता है, किसी से यह ख़याल बांटने का जी करता है. मगर हरेक के साथ तो बांट नहीं सकते – नहीं समझेंगे; वे अक्सर नहीं समझते हैं; मज़ाक उड़ाएँगे, और ऐसे मौकों पर सिर्योझा को ये मज़ाक भारी पड़ते हैं और अपमानजनक लगते हैं. वह करस्तिल्योव से कहता है, यह देखकर कि आसपास कोई नहीं है – करस्तिल्योव मज़ाक नहीं उड़ाता. इस बार भी वह नहीं हँसा, मगर, कुछ देर सोचकर बोला : “हुँ, संभव तो है.”
और इसके बाद उसने न जाने क्यों सिर्योझा के कंधे पकड़ कर उसकी आँखों में ध्यान से, और कुछ भय से भी देखा.
.... शाम को जी भर कर खेलने के बाद, ठंड से कुड़कुड़ाते हुए घर वापस लौटते हो, और वहाँ भट्टियाँ गरमाई हुई होती हैं, गर्मी से धधकती हुई. नाक से सूँ, सूँ करते हुए गरमाते हो, तब तक पाशा बुआ पास पड़ी बेंच पर तुम्हारी पतलून और फ़ेल्ट बूट सुखाने के लिए फ़ैला देती है. फिर सबके साथ किचन में मेज़ पर बैठते हो, गरम गरम दूध पीते हो, उनकी बातचीत सुनते हो और इस बारे में सोचते हो कि आज बनाए गए बर्फ़ के किले का घेरा डालने के लिए कल किस तरह अपने साथियों के साथ जाना है...बड़ी अच्छी चीज़ है – सर्दियाँ.
बढ़िया चीज़ है – सर्दियाँ, मगर वे बड़ी लंबी होती हैं: भारी भरकम कपड़ों से बेज़ार हो जाते हो और बहुत ठंडी हवाएँ, घर से शॉर्ट्स और चप्पल पहन कर बाहर भागने को जी चाहता है, नदी में डुबकियाँ लगाने को, घास पर लोटने को, मछलियाँ पकड़ने को – ये बात और है कि तुम्हारी बन्सी में एक भी नहीं अटकती, कोई परवाह नहीं, मगर दोस्तों के साथ इकट्ठा होना कितना अच्छा लगता है, ज़मीन खोद खोद कर केंचुओं को निकालना, बन्सी लेकर बैठना, चिल्लाना, “शूरिक, मेरा ख़याल है कि तेरी बन्सी में लग रहा है!”
छिः छिः, फिर से बर्फ़ीला तूफ़ान और कल तो बर्फ़ पिघलने लगी थी! किस क़दर बेज़ार कर दिया है इन घिनौनी सर्दियों ने!
....खिड़कियों पर टेढ़े मेढ़े आँसू बहते हैं, रास्ते पर बर्फ़ की जगह गाढ़ा काला कीचड़ पैरों के निशानों समेत: बसंत! नदी पर जमी बर्फ़ अपनी जगह से चल पड़ी. सिर्योझा बच्चों के साथ यह देखने के लिए गया कि हिमखण्ड कैसे चलता है. पहले तो बड़े बड़े गन्दे टुकड़े बहने लगे, फिर कोई एक भूरी भूरी, बर्फ़ की गाढ़ी गाढ़ी, खीर जैसी, चीज़ बहने लगी. फिर नदी दोनों ओर से फ़ैलने लगी. उस किनारे पर खड़े सरकण्डे के पेड़ कमर तक पानी में डूब गए. सब कुछ नीला नीला था, पानी और आकाश; भूरे और सफ़ॆद बादल आसमान पर और पानी पर तैर रहे थे.
....और कब, आखिर कब, सिर्योझा की नज़र ही नहीं पड़ी, ‘दाल्न्याया’ रास्ते के पीछे इतने ऊँचे, इतने घने पौधे आ गए? कब रई की फ़सल में बालियाँ आईं, कब उनमें फूल आए, कब फूल मुरझा गये? अपनी ज़िन्दगी में मगन सिर्योझा ने ध्यान ही नहीं दिया, और अब वह भर गई है, पक रही है, जब रास्ते पर चलते हो, तो सिर के ऊपर शोर मचाते हुए डोल रही है. पंछियों ने अंडों में से पिल्ले बाहर निकाले, घास काटने की मशीन चरागाहों पर घूम रही थी – फूलों को रौंदते हुए, जिनके कारण उस किनारे पर इतना सुन्दर और रंगबिरंगा था. बच्चों की छुट्टियाँ हैं, गर्मी पूरे ज़ोर पर है, बर्फ़ और तारों के बारे में सोचना भूल गया सिर्योझा...
करस्तिल्योव उसे अपने पास बुलाता है और घुटनों के बीच पकड़ता है.
“ चलो, एक सवाल पर बहस करें,” वह कहता है. “तुम्हारा क्या ख़याल है, हमें अपने परिवार में और किसे लाना चाहिए – लड़के को या लड़की को?”
“लड़के को!” सिर्योझा ने फ़ौरन जवाब दिया.
“यहाँ, बात ऐसी है : बेशक, एक लड़के के मुक़ाबले में दो लड़के बेहतर ही हैं; मगर, दूसरी ओर से देखें तो, लड़का तो हमारे यहाँ है ही, तो, इस बार लड़की लाएँ, हाँ?”
“ऊँ, जैसा तुम चाहो,” बगैर किसी उत्सुकता के सिर्योझा ने सहमति दिखाई. “लड़की भी चलेगी. मगर, जानते हो, लड़कों के साथ खेलना मुझे ज़्यादा अच्छा लगता है.”
“तुम उसका ध्यान रखोगे और हिफ़ाज़त करोगे, बड़े भाई की तरह. इस बात का ध्यान रखोगे कि लड़के उसकी चोटियाँ न खींचे.”
“लड़कियाँ भी तो खींचती हैं,” सिर्योझा टिप्पणी करता है. “और वो भी कैसे!” वह वर्णन करके बता सकता था कि कैसे ख़ुद उसको अभी हाल ही में लीदा ने बाल पकड़कर खींचा था; मगर उसे चुगली करना अच्छा नहीं लगता. “और खींचती भी ऐसे हैं कि लड़के कराहने लगते हैं.”
“मगर हमारी वाली तो छो s s टी सी होगी,” करस्तिल्योव कहता है. “वह नहीं खींचेगी.”
“नहीं, मगर, फिर भी, लड़का ही लाएँगे,” सिर्योझा कुछ सोचने के बाद कहता है. “लड़का ज़्यादा अच्छा है.”
“तुम ऐसा सोचते हो?”
“लड़के चिढ़ाते नहीं हैं. और वे तो बस, चिढ़ाना ही जानती हैं.”
“हाँ?...हुँ. इस बारे में सोचना पड़ेगा. हम एक बार फिर इस पर सोच विचार करेंगे, ठीक है?”
“ठीक है, करेंगे सोच विचार.”
मम्मा मुस्कुराते हुए सुन रही है, वह वहीं पर अपनी सिलाई लिए बैठी है. उसने अपने लिए एक चौड़ा – बहुत बहुत चौड़ा हाउस-कोट सिया – सिर्योझा को बहुत आश्चर्य हुआ, इतना चौड़ा किसलिए – मगर वह खूब मोटी भी हो गई थी. इस समय उसके हाथों में कोई छोटी सी चीज़ थी, वह इस छोटी सी चीज़ पर चारों ओर से लेस लगा रही थी.
“ये तुम क्या सी रही हो?” सिर्योझा पूछता है.
“छोटी सी टोपी,” मम्मा जवाब देती है. “लड़के के लिए या लड़की के लिए, जिसे भी तुम लोग लाना चाहोगे.”
“उसका क्या ऐसा सिर होगा?” खिलौने जैसी चीज़ की ओर देखते हुए सिर्योझा पूछता है. (‘ओह, ये लो, और सुनो! अगर ऐसे सिर के बाल पकड़ कर ज़ोर से खींचे जाएँ, तो सिर ही उखड़ सकता है!’)
“पहले ऐसा होता है,” मम्मा जवाब देती है, “फिर बड़ा होगा. तुम तो देख ही रहे हो कि विक्टर कैसे बड़ा हो रहा है. और तुम ख़ुद कैसे बड़े हो रहे हो. वह भी इसी तरह से बड़ा होगा.”
वह अपने हाथ पर टोपी रखकर उसकी ओर देखती है; उसके चेहरे पर समाधान है, शांति है. करस्तिल्योव सावधानी से उसका माथा चूमता है, उस जगह पर जहाँ उसके नर्म, चमकीले बाल शुरू होते हैं...
वे इस बात को बड़ी गंभीरता से ले रहे थे – लड़का या लड़की: उन्होंने छोटी सी कॉट और रज़ाई ख़रीदी. मगर लड़का या लड़की नहाएगा तो सिर्योझा के ही टब में. वह टब अब सिर्योझा के लिए छोटा हो गया है, वह कई दिनों से उसमें बैठकर अपने पैर नहीं फैला सकता; मगर ऐसे इन्सान के लिए, जिसका सिर इतनी छोटी सी टोपी में समा जाए, ये टब बिल्कुल ठीक है.
बच्चे कहाँ से लाए जाते हैं ये सब को मालूम है: उन्हें अस्पताल में ख़रीदते हैं. अस्पताल बच्चों का व्यापार करता है, एक औरत ने तो एकदम दो ख़रीद लिए. न जाने क्यों उसने दोनों बिल्कुल एक जैसे ख़रीदे – कहते हैं कि वह उन्हें जन्म के निशान से पहचानती है: एक की गर्दन पर निशान है, और दूसरे की नहीं है. समझ में नहीं आता कि उसे एक जैसे बच्चों की क्या ज़रूरत पड़ गई. इससे तो अच्छा होता कि अलग अलग तरह के ख़रीदती.
मगर न जाने क्यों करस्तिल्योव और मम्मा बेकार ही में इस काम में देर कर रहे हैं, जिसे इतनी गंभीरता से शुरू किया था: कॉट खड़ी है, मगर न तो लड़के का कहीं पता है, न ही लड़की का.
“तुम किसी को ख़रीदती क्यों नहीं हो?” सिर्योझा मम्मा से पूछता है.
मम्मा हँसती है – ओय, कितनी मोटी हो गई है.
“अभी इस समय उनके पास नहीं है. वादा किया है कि जल्दी ही आएँगे.”
ऐसा होता है : किसी चीज़ की ज़रूरत होती है, मगर उनके पास वह चीज़ होती ही नहीं है. क्या करें, इंतज़ार करना पड़ेगा; सिर्योझा को ऐसी कोई जल्दी नहीं है.
छोटे बच्चे धीरे धीरे बड़े होते हैं, मम्मा चाहे कुछ भी कहे. विक्टर को देखकर तो ऐसा ही लगता है. कितने दिनों से विक्टर इस दुनिया में रह रहा है, मगर अभी वह सिर्फ एक साल और छह महीने का ही है. कब वह बड़ा होकर बच्चों के साथ खेलेगा! और नया लड़का, या लड़की, सिर्योझा के साथ इतने दूर के भविष्य में खेलने के क़ाबिल होगा, जिसके बारे में, सच कहें तो, सोचना भी बेकार है. तब तक उसकी हिफ़ाज़त करनी पड़ेगी, उसे संभालना पड़ेगा. यह एक अच्छा काम है, सिर्योझा समझता है कि अच्छा काम है; मगर फिर भी दिल बहलाने वाला तो नहीं है, जैसा कि करस्तिल्योव को लगता है. लीदा को कितनी मुश्किल होती है विक्टर को बड़ा करने में : उसको उठाओ, उसका दिल बहलाओ और डाँटो भी. कुछ ही दिन पहले माँ और पापा शादी में गए थे, मगर लीदा घर में बैठकर रो रही थी. अगर विक्टर न होता, तो वे उसे भी शादी में ले जाते. मगर उसके कारण ऐसे रहना पड़ता है, जैसे जेल में हो, उसने कहा था.
अच्छा – चलो, जाने दो : सिर्योझा तैयार है करस्तिल्योव और मम्मा की मदद करने के लिए. उन्हें आराम से काम पर जाने दो, पाशा बुआ को खाना पकाने दो, सिर्योझा इस गुड़िया जैसे सिर वाले, असहाय जीव का ज़रूर ख़याल रखेगा, जो बिना देखभाल के ख़त्म ही हो जाएगा. वह उसे पॉरिज खिलाएगा, सुलाएगा. वह और लीदा बच्चे उठाए उठाए एक दूसरे के घर जाते आते रहेंगे: दोनों का मिलकर देखभाल करना आसान होगा – जब तक वे सोएँगे, हम लोग खेल भी सकते हैं.
एक दिन सुबह वह उठा – उसे बताया गया कि मम्मा बच्चा लाने अस्पताल गई है.
चाहे उसने अपने आप को कितना ही तैयार क्यों न किया था, फिर भी दिल धड़क रहा था : चाहे जो भी हो, यह एक बड़ी घटना है...
वह पल पल मम्मा के लौटने की राह देख रहा था; गेट के पीछे खड़ा रहा, इस बात का इंतज़ार करते हुए कि वह अभी नुक्कड़ पर लड़के या लड़की को लिए दिखेगी, और वह भागकर उनसे मिलने जाएगा...पाशा बुआ ने उसे पुकारा :
“करस्तिल्योव तुझे टेलिफोन पर बुला रहा है.”
वह घर के भीतर भागा, उसने काला चोंगा पकड़ा जो मेज़ पर पड़ा था.
“मैं सुन रहा हूँ!” वह चिल्लाया. करस्तिल्योव की हँसती हुई, उत्तेजित आवाज़ ने कहा:
“सिर्योझ्का! तेरा अब एक भाई है! सुन रहे हो! भाई! नीली आँखों वाला! वज़न है चार किलो, बढ़िया है न, हाँ? तुम ख़ुश हो?”
“हाँ!...हाँ...” घबरा कर और रुक रुक कर सिर्योझा चिल्लाया. चोंगा ख़ामोश हो गया.
पाशा बुआ ने एप्रन से आँखें पोंछते हुए कहा, “नीली आँखों वाला! – मतलब, पापा जैसा! तेरी बड़ी कृपा है, भगवान! गुड लक!!”
“वे जल्दी आ जाएँगे?” सिर्योझा ने पूछा, और उसे यह जानकर दुख और अचरज हुआ कि जल्दी नहीं आएँगे, शायद सात दिन बाद, या उससे भी ज़्यादा – और क्यों, तो इसलिए कि बच्चे को मम्मा की आदत होनी चाहिए, अस्पताल में उसे मम्मा के पास जाना, उसके पास रहना सिखाएँगे.
करस्तिल्योव हर रोज़ अस्पताल जाता था. मम्मा के पास उसे जाने नहीं देते थे, मगर वह उसे चिट्ठियाँ लिखती थी. हमारा लड़का बहुत ख़ूबसूरत है. और असाधारण रूप से होशियार है. आख़िर में उसने उसके लिए नाम भी सोच लिया – अलेक्सेई, और उसको पुकारा करेंगे ‘ल्योन्या’ के नाम से. उसे वहाँ बहुत उदास लगता है, उकताहट होती है, घर जाने के लिए वह तड़प रही है. और सबको अपनी बाँहों में लेती है और चूमती है, ख़ासकर सिर्योझा को.
...सात दिन, या उससे भी ज़्यादा गुज़र गए. करस्तिल्योव ने घर से निकलते हुए सिर्योझा से कहा, “मेरी राह देखना, आज मम्मा को और ल्योन्या को लाने जाएँगे.”
वह ‘गाज़िक’ में तोस्या बुआ और गुलदस्ते के साथ लौटा. वे उसी अस्पताल में गए, जहाँ परदादी मर गई थी. गेट से पहली बिल्डिंग की ओर चले, और अचानक मम्मा ने उन्हें पुकारा:
“मीत्या! सिर्योझा!”
वह खुली खिड़की से देख र्ही थी और हाथ हिला रही थी. सिर्योझा चिल्लाया, “मम्मा!” उसने एक बार फिर हाथ हिलाया और खिड़की से हट गई. करस्तिल्योव ने कहा कि वह अभी बाहर आएगी. मगर वह जल्दी नहीं आई – वे रास्ते पर घूम फिर रहे थे और स्प्रिंग पर लटके, चरमराते दरवाज़े की ओर देख लेते, और एक छोटे से पारदर्शी, बेसाया पेड़ के नीचे पड़ी बेंच पर बैठ जाते. करस्तिल्योव बेचैन होने लगा, उसने कहा कि उसके आने तक फूल मुरझा जाएँगे. तोस्या बुआ गाड़ी को गेट के बाहर छोड़ कर उनके पास आ गई और करस्तिल्योव को समझाने लगी कि हमेशा इतनी ही देर लगती है.
आख़िरकार द्रवाज़ा चरमराया और मम्मा हाथों में नीला पैकेट लिए दिखाई दी. वे उसकी ओर लपके, उसने कहा, “संभल के, संभल के!”
करस्तिल्योव ने उसे गुलदस्ता दिया और उसने वह पैकेट ले लिया, उसका लेस वाला कोना खोला और सिर्योझा को उसने छोटा सा चेहरा दिखाया: गहरा लाल और अकडू, और बन्द आँखों वाला : ल्योन्या, भाई...एक आँख ज़रा सी खुली, कोई हल्की-नीली चीज़ बाहर झाँकी – झिरी में, चेहरा टेढ़ा हो गया; करस्तिल्योव ने धीमी आवाज़ में कहा: “आह, तू – तू...” और उसे चूम लिया.
“ये क्या है, मीत्या!” मम्मा ने कड़ाई से कहा.
“क्या, नहीं करना चाहिए?” करस्तिल्योव ने पूछा.
“उसे किसी भी तरह का इन्फेक्शन हो सकता है,” मम्मा ने कहा. “वहाँ उसके पास जाली वाला मास्क पहन कर आते हैं. प्लीज़, मीत्या.”
“ठीक है, नहीं करूँगा, नहीं करूंगा!” करस्तिल्योव ने कहा.
घर में ल्योन्या को मम्मा के पलंग पर रखा गया, उसके कपड़े हटाए गए, और तब सिर्योझा ने उसे पूरा देखा. मम्मा के दिमाग में ये कहाँ से आ गया कि वह सुन्दर है? उसका पेट फूला हुआ था, और उसके हाथ और पैर इतने पतले, इतने छोटे कि कोई सोच भी नहीं सकता कि ये इन्सान के हाथ-पैर हैं, और वे बेमतलब हिल रहे थे. गर्दन तो बिल्कुल थी ही नहीं. किसी भी बात से ये अंदाज़ नहीं लगाया जा सकता था कि वह होशियार है. उसने अपना पोपला, नंगे मसूड़ों वाला छोटा सा मुँह खोला और बड़ी अजीब, दयनीय आवाज़ में चीख़ने लगा. आवाज़ हालाँकि कमज़ोर थी, मगर वह ज़िद्दीपन से, बिना थके, एक सुर में चिल्लाए जा रहा था.
“नन्हा-मुन्ना मेरा!” मम्मा ने उसे शांत किया. “तुझे भूख लगी है! तेरा खाने का टाइम हो गया! भूख लगी है मेरे नन्हे को! अभी ले, अभी, अभी, ले!”
वह ज़ोर से बोल रही थी, जल्दी जल्दी हलचल कर रही थी, और बिल्कुल भी मोटी नहीं थी – अस्पताल में वह दुबली हो गई थी. करस्तिल्योव और पाशा बुआ उसकी मदद करने की कोशिश कर रहे थे, और फ़ौरन उसके सारे हुक्म मानने के लिए दौड़ रहे थे. ल्योन्या के लंगोट गीले थे. मम्मा ने उसे सूखे लंगोट में लपेटा, उसके साथ कुर्सी पर बैठी, अपने ड्रेस की बटन खोली, अपनी छाती बाहर निकाली और ल्योन्या के मुँह के पास लाई. ल्योन्या आख़िरी बार चीख़ा, उसने होठों से छाती पकड़ ली और लालच के साथ, घुटती हुई साँस से उसे चूसने लगा.
‘छिः, कैसा है!’ सिर्योझा ने सोचा.
करस्तिल्योव उसके ख़यालों को भाँप गया. उसने हौले से कहा : “आज उसे नौंवा ही तो दिन है, समझ रहे हो? नौंवा दिन, बस इतना ही; उससे किस बात की उम्मीद कर सकते हो, ठीक है ना?”
“हुँ, हुँ,” परेशानी से सिर्योझा सहमत हुआ.
“आगे चलकर वह ज़रूर अच्छा आदमी बनेगा. देखोगे तुम.”
सिर्योझा सोचने लगा : ये कब होगा! और उसका ध्यान रखो भी तो कैसे, जब वह पतली पतली जैली जैसा है – मम्मा भी बड़ी सावधानी से उसे लेती है.
पेट भरने के बाद ल्योन्या मम्मा के पलंग पर सो गया. बड़े लोग डाईनिंग हॉल में उसके बारे में बातें कर रहे थे.
“एक आया रखनी होगी,” पाशा बुआ ने कहा, “मैं संभाल नहीं पाऊँगी.”
“किसी की ज़रूरत नहीं है,” मम्मा ने कहा. “जब तक मेरी छुट्टियाँ हैं, मैं उसके साथ रहूँगी, और उसके बाद शिशु-गृह में रखेंगे, वहाँ सचमुच की आया होती है, ट्रेंड, और सही तरह से देखभाल की जाती है.”
’हाँ, ये ठीक है, जाए शिशु-गृह में,’ सिर्योझा ने सोचा; उसे काफ़ी राहत महसूस हो रही थी. लीदा हमेशा इस बात का सपना देखा करती थी कि विक्टर को शिशु-गृह में भेजा गया है...सिर्योझा पलंग पर चढ़ गया और ल्योन्या के पास बैठ गया. जब तक वह चिल्लाता नहीं और मुँह टेढ़ा नहीं करता, वह उसे अच्छी तरह देखना चाहता था. पता चला कि ल्योन्या की बरौनियाँ तो हैं, मगर वे बहुत छोटी छोटी हैं. गहरे लाल चेहरे की त्वचा मुलायम, मखमली थी; सिर्योझा ने छूकर महसूस करने के इरादे से उसकी ओर उँगली बढ़ाई...
“ये तुम क्या कर रहे हो!” मम्मा भीतर आते हुए चहकी.
अचानक हुए इस हमले से वह थरथराया और उसने अपना हाथ पीछे खींच लिया...
“फ़ौरन नीचे उतरो! कहीं गंदी उँगलियों से उसे कोई छूता है!”
“मेरी साफ़ हैं,” सिर्योझा ने भयभीत होकर पलंग से नीचे उतरते हुए कहा.
“और वैसे भी, सिर्योझेन्का,” मम्मा ने कहा, “जब तक वह छोटा है, उससे दूर ही रहना अच्छा है. तुम अनजाने में उसे धक्का दे सकते हो...कुछ भी हो सकता है. और, प्लीज़, बच्चों को यहाँ मत लाना, वर्ना और किसी बीमारी का संसर्ग हो स्कता है...चलो, बेहतर है, हम ही उनके पास जाएँ!” प्यार से और आदेश देने के सुर में मम्मा ने अपनी बात पूरी की.
सिर्योझा उसकी बात मानकर बाहर निकल गया. वह सोच में पड़ गया था. ये सब वैसा नहीं है, जैसी उसने उम्मीद की थी...मम्मा ने खिड़की पर शॉल लटकाई, जिससे ल्योन्या को रोशनी तंग न करे, वह सिर्योझा के पीछे पीछे बाहर निकली और उसने दरवाज़ा उड़का लिया.