Charumati Ramdas

Children Stories Thriller

4  

Charumati Ramdas

Children Stories Thriller

सदोवाया स्ट्रीट पर बहुत ट्रैफ़िक है

सदोवाया स्ट्रीट पर बहुत ट्रैफ़िक है

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वान्का दीखोव के पास एक साइकिल थी। बहुत पुरानी थी, मगर ठीक ही थी। पहले ये वान्का के पापा की साइकिल थी, मगर, जब साइकिल टूट गई, तो वान्का के पापा ने कहा:

 “वान्का, पूरे दिन क्यों रेस लगाता रहे, ये ले तेरे लिए गाड़ी, इसे दुरुस्त कर ले, और तेरे पास तेरी अपनी साइकिल होगी। ये, अभी तक ठीक ही है। मैंने इसे कभीS कबाड़ी की दुकान से खरीदा था, लगभग नई ही थी।

साइकिल पाकर वान्का इतना ख़ुश हो गया कि बताना मुश्किल है।

वह उसे कम्पाऊण्ड के दूसरे छोर पे ले गया और उसने रेस लगाना पूरी तरह बन्द कर दिया – उल्टे वो पूरे-पूरे दिन अपनी साइकिल पे लगा रहता, ठोंकता, पीटता, स्क्रू खोलता और स्क्रू लगाता। गाड़ियों के तेल से हमारा वान्का पूरा गन्दा हो गया, उसकी ऊँगलियों पर भी खरोंचें आ गईं थीं, क्योंकि जब वो काम करता, तो उसका निशाना अक्सर चूक जाता और हथौड़ा उसकी ऊँगलियों पर ही पड़ता। मगर उसका काम बढ़िया हो गया, क्योंकि पाँचवीं क्लास में उन्हें ‘फिटर’ का काम सिखाया जाता है, और वान्का तो मेहनत के काम में हमेशा ‘ए’ ग्रेड लाता था। गाड़ी रिपेयर करने में मैं भी वान्का की मदद कर रहा था, और वो हर दिन मुझसे कहता:

 “थोड़ा ठहर जा, डेनिस्का, जब हम इसे रिपेयर कर लेंगे, तो मैं तुझे इस पर घुमाऊँगा। तू पीछे कैरियर पे बैठेगा, और हम दोनों पूरा मॉस्को घूमेंगे!”

और, इसलिए कि वो मुझसे इतनी दोस्ती रखता है, हालाँकि मैं सिर्फ दूसरी क्लास में हूँ, मैं उसकी और ज़्यादा मदद करने लगा। मैं, ख़ासकर, ये कोशिश करता कि कैरियर ख़ूबसूरत बन जाए। मैंने उसे चार बार काले पेंट से रंगा, क्योंकि वो मेरा अपना कैरियर था। और वो कैरियर इतना चमकने लगा, जैसे नई-नई ‘वोल्गा’ कार चमकती है। मैं ये सोचकर ख़ुश होता कि मैं उस पे बैठा करूँगा, वान्का की बेल्ट पकड़े रहूँगा, और हम पूरी दुनिया घूमेंगे।

और एक दिन वान्का ने अपनी साइकिल ज़मीन से उठाई, पहियों में हवा भरी, उसे कपड़े पोंछा, ख़ुद ड्रम से पानी लेकर नहाया और पतलून में नीचे की ओर क्लिप्स लगाईं। मैं समझ गया कि अब हमारा फ़ेस्टिवल नज़दीक आ रहा है।      

वान्का गाड़ी पे बैठा और चल पड़ा। पहले उसने बिना जल्दबाज़ी किए कम्पाऊण्ड का चक्कर लगाया, गाड़ी स्मूथ-स्मूथ चल रही थी, और सुनाई दे रहा था, कि ज़मीन से घिसते हुए टायर कितनी मीठी-मीठी आवाज़ कर रहे हैं। फिर वान्का ने स्पीड बढ़ाई, और कमानियाँ चमकने लगीं, और वान्का करतब दिखाने लगा, वो लूप बनाने लगा, आठ का अंक बनाने लगा, और पूरी ताक़त से गाड़ी चलाने लगा, और अचानक ज़ोर से ब्रेक लगा दिया, और उसके नीचे गाड़ी ऐसे खड़ी हो गई, जैसे ज़मीन में गड़ गई हो। उसने हर तरह से गाड़ी की जाँच कर ली, जैसे कोई ट्रेनी-पाइलट करता है, और मैं खड़ा था और देख रहा था, उस मेकैनिक जैसा, जो नीचे खड़े होकर अपने पाइलट के करतब देखता है। मुझे बहुत अच्छा लग रहा था, कि वान्का इतनी अच्छी तरह चला रहा है, हालाँकि मैं उससे भी अच्छा चला सकता हूँ, कम से कम उससे बुरा तो चला ही नहीं सकता। मगर साइकिल मेरी नहीं थी, साइकिल वान्का की थी, और इस बारे में ज़्यादा बात करने की ज़रूरत नहीं थी, अपनी साइकिल पे वो जो चाहे वो करे। ये देखकर भी अच्छा लग रहा था कि गाड़ी पेंट के कारण बढ़िया चमक रही है, और ये सोचना भी नामुमकिन था कि वो पुरानी है। वो किसी भी नई गाड़ी से बेहतर थी। ख़ासकर कैरियर। बहुत ही प्यारा लग रहा था उसकी तरफ़ देखने से दिल ख़ुश हो रहा था।

इस गाड़ी पे वान्का क़रीब आधे घण्टे घूमता रहा, और मैं तो डरने भी लगा कि वो मेरे बारे में बिल्कुल भूल गया है। मगर नहीं, मैं वान्का के बारे में बेकार ही ऐसा सोच रहा था। वो मेरे पास आया, पैर को फ़ेन्सिंग पे टिकाया और बोला:

 “चल, चढ़ जा।”

मैंने चढ़ते-चढ़ते पूछा:

 “कहाँ जाएँगे ?”

वान्का ने कहा:

 “कहीं भी? पूरी दुनिया में !”

और मेरा मूड एकदम ऐसा हो गया, जैसे हमारी पूरी दुनिया में सिर्फ प्रसन्न लोग ही रहते हैं और वो सिर्फ इसी बात का इंतज़ार करते हैं कि कब मैं और वान्का उनके घर जाएँगे। और जब जाएँगे – वान्का हैण्डल पे, और मैं कैरियर पे, - तो फ़ौरन एक बड़ा समारोह शुरू हो जाएगा, और झण्डे फ़हराने लगेंगे, और गुब्बारे उड़ने लगेंगे, और गाने, और डंडी पे एस्किमो आइस्क्रीम, ऑर्केस्ट्रा गरजने लगेगा, और जोकर्स सिर के बल चलने लगेंगे।

इतना अचरजभरा मूड था मेरा, और मैं अपने करियर पे जम गया और वान्का के बेल्ट को पकड़ लिया। वान्का ने पैडल्स घुमाए, और।बाय-बाय पापा! बाय-बाय मम्मा! बाय-बाय पुराने कम्पाऊण्ड, और कबूतरों, फिर मिलेंगे! हम दुनिया की सैर पे जा रहे हैं!

वान्का कम्पाऊण्ड से बाहर निकला, फिर नुक्कड़ के पार, और हम अलग-अलग गलियों में गए, जहाँ पहले मैं सिर्फ पैदल जाता था। अब हर चीज़ बिल्कुल अलग थी, कुछ अनजानी-सी, वान्का हर पल घण्टी बजा रहा था, जिससे कि किसी को साइकिल के नीचे दबा न दे: ज़्ज़्ज़! ज़्ज़्ज़! ज़्ज़्ज़!।।

पैदल चलने वाले उछलकर दूर हट रहे थे, जैसे मुर्गियाँ उछलती हैं, और हम अभूतपूर्व रफ़्तार से जा रहे थे, मुझे खूब ख़ुशी हो रही थी, दिल में आज़ादी का अनुभव हो रहा था, और कुछ बदहवास सी आवाज़ निकालने को जी चाह रहा था। मैंने निकाला ‘आ’। इस तरह से: आआआआआआआआआआआआ! जब वान्का एक पुरानी गली में घुसा, जिसमें रस्ता कच्चा था, जैसे सम्राट ‘दाल’ (रूसी लोककथाओं का एक पात्र – अनु।)  के ज़माने का हो, तब तो बहुत मज़ा आया। गाड़ी हिचकोले खाने लगी, और मेरी ‘आ-गरज’ बीच बीच में टूटने लगी, जैसे उसके मुँह से बाहर उड़ते ही किसी ने उसे तेज़ कैंची से काट दिया हो और हवा में फेंक दिया हो। अब मुँह से निकल रहा था: आ! आ! आ! आ! आ!

हम और भी बड़ी देर तक गलियों में घूमते रहे और आख़िरकार थक गए। वान्का रुक गया, और मैं अपने कैरियर से कूद गया। वान्का ने कहा:

 “तो?”

 “फ़न्टास्टिक!” मैंने कहा।

 “तू आराम से तो बैठा था ?”

 “वॉव, जैसे दीवान पे बैठा था,” मैंने कहा, “उससे भी ज़्यादा आराम से। क्या गाड़ी है! एकदम एक्स्ट्रा-क्लास!”

वह हँसने लगा और उसने अपने बिखरे बालों को ठीक किया। उसका चेहरा गन्दा, धूल भरा हो गया था, सिर्फ आँखें ही चमक रही थीं – नीली आँखें, किचन की दीवार पे टंगे कप्स के समान। और दाँत तो ख़ूब चमक रहे थे।

तभी हमारे पास ये लड़का आया। वो बहुत लम्बा था और उसका एक दाँत सुनहरा था। उसने लम्बी आस्तीनों की धारियों वाली कमीज़ पहनी थी, और उसके हाथों में कई तरह की तस्वीरें, पोर्ट्रेट्स और लैण्डस्केप्स थे। उसके पीछे इतना झबरा कुत्ता डोल रहा था, तरह तरह के ऊनों से बनाया हुआ। काले ऊन के टुकड़े थे, सफ़ेद, भूरे और एक हरा टुकड़ा भी दिखाई दे रहा था।उसकी पूँछ गाँठ वाले नमकीन बिस्कुट जैसी थी, एक पैर दबा हुआ था। इस लड़के ने पूछा:

 “तुम कहाँ से आए हो, लड़कों?”

हमने जवाब दिया:

 “त्र्योखप्रूद्नी से।”

उसने कहा:

 “वॉव! शाबाश! कहाँ से चला के लाए हो? क्या ये तेरी गाड़ी है ?”

वान्का ने कहा:

 “मेरी। पहले पापा की थी, अब मेरी है। मैंने ख़ुद उसे रिपेयर किया है। और ये”, वान्का ने मेरी तरफ़ इशारा किया, “इसने, मेरी मदद की है।”

इस लड़के ने कहा:

 “हाँ।देखो। ऐसे साधारण बच्चे हैं, और ठेठ चेमिकल-मेकैनिकल इंजीनियर।”

मैंने पूछा:

 “क्या ये कुत्ता आपका है ?”

लड़के ने सिर हिला दिया:

 “हँ। मेरा। ये बहुत कीमती कुत्ता है। ऊँची नस्ल का है। स्पेनिश बैसेट (कम ऊँचाई का लम्बा कुत्ता – अनु।)।

वान्का ने कहा:

 “क्या कह रहे हैं! ये कहाँ से बैसेट होने लगा? बैसेट पतले और लम्बे होते हैं।”

 “जब जानते नहीं हो, तो चुप बैठो!” इस लड़के ने कहा। “मॉस्को या र्‍य़ाज़ान का बैसेट – लम्बा होता है, क्योंकि वो पूरे टाईम अलमारी के नीचे बैठा रहता है और इसलिए लम्बाई में बढ़ता है, मगर ये दूसरी टाइप का कुत्ता है, कीमती वाला। ये वफ़ादार दोस्त है। नाम है – बदमाश।”

वो कुछ देर चुप रहा, फिर उसने तीन बार गहरी साँस ली और कहा:

 “फ़ायदा क्या है? हालाँकि वफ़ादार कुत्ता है, फिर भी, है तो कुत्ता। मुसीबत में मेरी मदद नहीं कर सकता।”

उसकी आँखों में आँसू आ गए। मेरा दिल बैठ गया। उसे क्या हुआ है?

वान्का ने डरते हुए पूछा:

 “क्या मुसीबत आई है आप पे ?”

 “दादी मर रही है,” उसने कहा और बार-बार होठों से हवा लेते हुए हिचकियाँ लेने लगा। “मर रही है, प्यारी दादी।उसे डबल अपेंडिसाइटिस है।” उसने कनखियों से हमारी तरफ़ देखा और आगे बोला: “डबल अपेंडिसाइटिस, और मीज़ल्स भी।”

अब वो बिसूरने लगा और मुट्ठी से आँसू पोंछने लगा। मेरा दिल ज़ोर से धक्-धक् करने लगा। लड़का दीवार से टिककर आराम से खड़ा हो गया और खूब ज़ोर से चिल्लाने लगा। उसका कुत्ता भी, उसकी ओर देखते हुए, चिल्लाने लगा, ये सब बहुत दुख भरा था। इस चीख से वान्का का चेहरा अपनी धूल के नीचे ही सफ़ेद पड़ गया। उसने इस लड़के के कंधे पे हाथ रखा और कांपती हुई आवाज़ में बोला:

 “चिल्लाइए नहीं, प्लीज़! आप ऐसे क्यों चिल्ला रहे हैं?”

 “कैसे ना चिल्लाऊँ,” इस लड़के ने कहा और सिर हिलाने लगा, “कैसे ना चिल्लाऊँ, जब कि मेरे पास दवा की दुकान तक जाने की भी ताक़त नहीं है! तीन दिनों से खाया नहीं है!।आय-उय-उय-युय!।”

और, वो और भी बुरी तरह से चिल्लाने लगा। कीमती कुत्ता बैसेट भी और ज़ोर से चिल्लाने लगा। आस- पास कोई भी नहीं था। मैं समझ नहीं पा रहा था कि क्या करना चाहिए।

मगर वान्का ज़रा भी परेशान नहीं हुआ।

 “क्या आपके पास प्रेस्क्रिप्शन है?” वो चिल्लाया। “अगर है, तो फ़ौरन दीजिए, मैं अभी गाड़ी पे उड़ता हुआ मेडिकल शॉप जाता हूँ और दवा ले आता हूँ। मैं फ़ुर्ती से उडूँगा!”

मैं ख़ुशी से बस उछलने ही वाला था। शाबाश, वान्का! ऐसे दोस्त के साथ तुम्हें कोई ख़तरा नहीं है, वो हमेशा जानता है कि क्या करना चाहिए।

हम दोनों इस लड़के के लिए दवाई लाएँगे और उसकी दादी को मरने से बचाएँगे। मैं चीख़ा;

 “प्रेस्क्रिप्शन दीजिए! एक मिनट भी नहीं खोना चाहिए !”

मगर ये लड़का तो और भी बुरी तरह से हिचकियाँ लेने लगा, हमारी तरफ़ देखकर हाथ हिलाए, चिल्लाना बन्द कर दिया और गरजा:

 “नहीं! कहाँ जाओगे! तुम्हारा दिमाग़ तो ठीक है? मैं दो छोटे बच्चों को सादोवाया पे कैसे जाने दे सकता हूँ? आँ? वो भी साइकिल पे? तुम लोग कह क्या रहे हो? क्या तुम्हें मालूम है कि सादोवाया पे कैसी ट्रैफ़िक होती है? आ? आधे सेकण्ड में ही तुम्हारे चीथड़े हो जाएँगे।हाथ कहाँ, पैर कहाँ, सिर अलग-थलग!।वहाँ होती हैं लॉरियाँ- पाँच टन वाली! येS बड़ी-बड़ी क्रेन्स चलती हैं!। तुम्हारा क्या, तुम तो दब जाओगे, मगर मुझे तुम्हारे लिए जवाब देना पड़ेगा! मैं तुम्हें नहीं जाने दूँगा, चाहे मुझे मार ही क्यों न डालो! इससे अच्छा तो दादी को मर ही जाने दो, बेचारी मेरी फ़ेव्रोन्या पलिकार्पोव्ना!।”

और अपनी मोटी आवाज़ में वो फिर से रोने लगा। कीमती कुत्ता बैसेट तो बिना रुके रोता ही जा रहा था। मुझसे बर्दाश्त नहीं हुआ – कि ये इतना अच्छा लड़का है और अपनी दादी की जान भी जोखिम में डालने के लिए तैयार है – सिर्फ इसलिए कि कहीं हमारे साथ कुछ न हो जाए। इस सबसे मेरे होंठ विभिन्न दिशाओं में टेढ़े होने लगे, और मैं समझ गया कि बस कुछ ही देर में मैं भी कीमती कुत्ते जैसा ही बिसूरने लगूँगा। वान्का की आँखें भी नम हो गईं थीं, और वो भी नाक से सुड़सुड़ कर रहा था:

 “हमें क्या करना चाहिए?”

 “बिल्कुल आसान बात है,” इस लड़के ने कामकाजी भाव से कहा। “सिर्फ एक ही रास्ता है। तुम्हारी साइकिल दो, मैं उस पर जाऊँगा। फ़ौरन लौट आऊँगा। माँ कसम!।” और उसने अपने गले पे हाथ रखा।

ये, शायद, उसने सबसे भयानक क़सम खाई थी। उसने गाड़ी की तरफ़ हाथ बढ़ाया। मगर वान्का ने उसे कस के पकड़ रखा था। इस लड़के ने उसे खींचा, फिर छोड़ दिया और फिर से हिचकियाँ लेने लगा:

 “ओय-ओय-ओय! मेरी दादी मर रही है, तम्बाकू की वजह से नहीं, दस-बीस रूबल्स की वजह से नहीं।ओय-ऊयूयू।।”

और, वो अपने सिर के बाल नोचने लगा। बालों को कस के पकड़ लिया और दोनों हाथों से उखाड़ने लगा। ऐसा ख़ौफ़नाक नज़ारा मैं बर्दाश्त नहीं कर सका। मैं रो पड़ा और वान्का से बोला:

 “उसे साइकिल दे दे, उसकी दादी मर रही है! अगर तेरे साथ ऐसा होता तो ?”

मगर वान्का साइकिल पकड़े खड़ा है और हिचकियाँ लेते हुए कहता है:

 “बेहतर है, कि मैं ख़ुद ही जाऊँ।”

अब उस लड़के ने पगलाई आँख़ों से वान्का की ओर देखा और पागल की तरह भर्राने लगा:

 “ मुझ पर भरोसा नहीं है, हाँ? भरोसा नहीं है? एक मिनट के लिए अपनी कबाड़ा गाड़ी देने में अफ़सोस हो रहा है? बुढ़िया चाहे मर ही क्यों न जाए? हाँ? बेचारी बुढ़िया, सफ़ेद स्कार्फ़ पहने, चाहे मीज़ल्स से मर जाए? मरने दो, हाँ? मगर इस लाल-टाई वाले पायनियर को अपने कबाड़े का अफ़सोस हो रहा है? ऐह, तुम भी! इन्सानों के हत्यारे! स्वार्थी!।”

उसने कमीज़ से बटन खींच कर निकाल ली और उसे पैरों से मसलने लगा। हम हिले तक नहीं। मैं और वान्का उसके ताने सुनते रहे। तब इस लड़के ने अचानक बे बात के अपने कीमती कुत्ते बैसेट को उठाया और उसे कभी मेरे, तो कभी वान्का के हाथों में ठूँसने लगा:

 “चल! अपने दोस्त को तुम्हारे पास बंधक रखता हूँ! वफ़ादार दोस्त को दे रहा हूँ! अब तो विश्वास करोगे? विश्वास करते हो या नहीं?! कीमती कुत्ता बंधक रख रहा हूँ, कीमती कुत्ता बैसेट!”

और उसने वान्का के हाथों में उस कुत्ते को घुसेड़ ही दिया, और तभी मेरी समझ में आ गया।

मैंने कहा:

 “वान्का, वो तो कुत्ते को हमारे पास गिरवी रख रहा है। अब वो कोई चाल नहीं चल सकता, ये तो उसका दोस्त है, और ऊपर से कीमती भी है। गाड़ी दे दे, डर मत।”

अब वान्का ने इस लड़के के हाथ में हैण्डिल दे दिया और पूछा:

 “क्या पन्द्रह मिनट काफ़ी हैं?”

 “ओय, बहुत ज़्यादा,” लड़का बोला, “इतने थोड़ी लगेंगे! सब मिलाकर सिर्फ पाँच! मेरा यहीं पे इंतज़ार करना। जगह से हिलना नहीं!”

और वह फुर्ती से उछल के गाड़ी पे बैठ गया, सफ़ाई से बैठा और सीधे सादोवाया की तरफ़ मुड़ गया। जैसे ही वो नुक्कड़ पे मुड़ा, कीमती कुत्ता बैसेट अचानक वान्का के हाथों से उछला और बिजली की तरह उसके पीछे लपका।

वान्का ने चिल्लाकर मुझसे कहा:

 “पकड़!” 

 मगर मैंने कहा:

 “कहाँ से, उसे पकड़ना मुश्किल है। वो अपने मालिक के पीछे भाग गया, उसके बगैर उसे अच्छा नहीं लगेगा! ऐसा होता है वफ़ादार दोस्त। मुझे भी ऐसा।”

मगर वान्का ने दबी ज़ुबान से सवाल किया:

 “मगर वो तो बंधक है, ना ?”

 “कोई बात नहीं,” मैंने कहा, “वो जल्दी ही वापस आ जाएँगे।”

और हमने पाँच मिनट उनका इंतज़ार किया।

 “ये आ क्यों नहीं रहा है।” वान्का ने कहा।

 “शायद लम्बा क्यू लगा हो,” मैंने कहा।

इसके बाद और दो घण्टे बीत गए। वो लड़का आया ही नहीं। और कीमती कुत्ता भी नहीं आया। जब अंधेरा होने लगा, तो वान्का ने मेरा हाथ पकड़ा।

 “सब समझ में आ गया,” उसने कहा। “चल, घर चलें।”

 “क्या समझ में आ गया, वान्का?” मैंने पूछा।

 “बेवकूफ़ हूँ मैं, बेवकूफ़,” वान्का ने कहा। “वो कभी नहीं लौटेगा, ये टाइप, और साइकिल भी नहीं आएगी। और कीमती कुत्ता बैसेट भी!”

इसके बाद वान्का ने एक भी शब्द नहीं कहा। वो, शायद, नहीं चाहता था, कि मैं डरावनी बातों के बारे में सोचूँ। मगर मैं इसी के बारे में सोचता रहा।

आख़िर, सादोवाया पे बेहद ट्रैफ़िक है।।


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