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yashwant kothari

Others

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yashwant kothari

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पुरुष पुरातन की वधू ...

पुरुष पुरातन की वधू ...

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शास्त्रों में लक्ष्मी का बड़ा महत्व है, और जीवन में गृहलक्ष्मी का। इन दो पाटन के बीच में साबुत बचा न कोय। वैसे लक्ष्मी को श्री, पदमा, कमला, नारायणी, तेजोमयी, देवी आदि अनको नामों से जाना गया है। और कालान्तर में ये सभी नाम गृहलक्ष्मियों को सुशेभित करने लगे।

  शास्त्रों के अनुसार लक्ष्मीजी क्षीरसागर नरेश विष्णुजी की पत्नी है और एक वरिष्ठ कवि के अनुसार पुरुष पुरातन की वधु क्यों न चंचला होय। मगर यह उक्ति गृहलक्ष्मियों पर ठीक नहीं उतरती क्योंकि भारतीय परिवेश में गृहलक्ष्मी डोली में बैठ कर आती है और अर्थी पर जाती है ।

  वैसे लक्ष्मी के कई प्रकार बताये गये हैं। धनलक्ष्मी, शस्यलक्ष्मी, कागजलक्ष्मी, कालीलक्ष्मी, सफेदलक्ष्मी, राजलक्ष्मी, राष्ट्रलक्ष्मी, लाटरीलक्ष्मी, सत्तालक्ष्मी, यशलक्ष्मी, सट्टालक्ष्मी, शेयरलक्ष्मी, प्रवासी अन्नपूर्णालक्ष्मी और न जाने कितने प्रकार की लक्ष्मी।

  वैसे क्या कभी आपने लक्ष्मीजी के चित्र को ध्यान से देखा है। बचपन में जब छोटा था तो मैं लक्ष्मी पूजा का बड़ी बेताबी से इंतजार करता था क्योंकि पूजन के बाद ही मिठाई मिलती थी तथा पटाखे छोड़ने की इजाजत थी। लक्ष्मीजी को मैंने सदैव कमल पर बिराजे हुए ही देखा है, मगर किसी भी गृहलक्ष्मी को कमल पर बैठते नहीं देखा, शायद इसका कारण कमल का नरमा नाजुक होना है मगर किसी भी गृहलक्ष्मी को आप उल्लू नहीं पायेंगे हां वे पति रुपी गृहलक्ष्मा को अवश्य उल्लू बनाती रहती हैं।

  कल्पना कीजिए लक्ष्मी और गृहलक्ष्मी दोनों साथ-साथ अवतरित हो जायें तो क्या हो ? मेरे ख्याल से यदि किसी के जीवन में ऐसा हो जाये तो शायद उसका पूरा जीवन अमावस्या की रात बन जाये। आज की लक्ष्मी गृहलक्ष्मी विष्णु अनुगामिनी नहीं है वो तो स्वयं आगे बढ़कर विष्णु की समस्याओं को हल करने में सहयोग देने वाली लक्ष्मी बन जाना चाहती है।

  आज की लक्ष्मी तो बस मत पूछिये। मेघवर्णा सुमध्यमें, कामिनी, कामोदरी, सुकेशी, सुकान्ता, सरस और फैशन की मारी है। वो तो कभी पद्मिनी, कभी हस्तिनी, कभी संखिनी है तो कभी गजगामिनी गजलक्ष्मी। मत पूछिये कभी दुर्गा है तो कभी कोमल शीतल। गृहलक्ष्मी का कमल कोमल नहीं है और गृहलक्ष्मी स्वयं भी घर के अर्थशास्त्र पर अपना ही हक समझती है। वैसे भी पतियों को उल्लू समझने, उल्लू बनाने में गृहलक्ष्मियों का जवाब नहीं।

  सामान्य गृहलक्ष्मी पति को पीर, बबर्ची, भिश्ती और खर समझती है। वे पति को गृहलक्ष्मा नहीं समझकर एक घरेलू नौकर भी समझे तो क्या आश्चर्य। वैसे भी शादी के बाद पति केवल गृहलक्ष्मी के द्वारा की गयी खरीददारी के डिब्बे उठाने का ही काम करता है।

  कभी-कभी कोई गृहलक्ष्मी अपने पतिदेव को विष्णु समझकर उनके पांव क्षीर सागर में शयन करने के वक्त दबा देती होगी। गृहलक्ष्मी की सर्वप्रिय वस्तु होती है पति की कमाई या मासिक वेतन। समझदार गृहलक्ष्मी वेतन डी.ए. बोनस, सब का ध्यान रखती है पति के पूरे वेतन को पहले सप्ताह में ही खर्च करने की हिम्मत रखती है और बेचारा पति फिर किसी काली लक्ष्मी की तलाश में दौड़ने लगता है वैसे सोतिया डाह की दृष्टि से देखें तो एक ही घर में दो महिलाएं एक लक्ष्मी और दूसरी गृहलक्ष्मी। मगर साहब, कोई एक तो गृहलक्ष्मी ढूंढ लाइये जो सहोदरियों में भी दुर्लभ है।

  परिचर्चाकारों को लक्ष्मी और गृहलक्ष्मी दोनों खड़े काके लागू पाय नुमा परिचर्चाओं का आयोजन करना चाहिए। दूरदर्शन आकाशवाणी को लक्ष्मी और गृहलक्ष्मी पर कार्यक्रम करने चाहिये। अखबारों को इन सौतनों पर लेख और परिशिष्ट निकालने चाहिए। आखिर ये दोनों तो वास्तव में आधुनिक युग रूपी गाड़ी के दो पहिये हैं।

  एक लक्ष्मी को लाती है दूसरी खुले दिल से इसे खर्च कर अपना जीवन सफल, सुखी और आनन्दमयी करती है। लक्ष्मी की पूजा तो एक दिन की उसके नाज, नखरे उसकी पूजा एक दिन की मगर गृहलक्ष्मी की सेवा तो बस चलती ही रहती है जो लक्ष्मी से बचे वे गृहलक्ष्मी में उलझे, जो गृहलक्ष्मी से बचे वे लक्ष्मी में उलझे क्योंकि लक्ष्मी के बिना सब सूना-सूना है बिना गृहलक्ष्मी के घर भूतों का डेरा है।

रहिमन लक्ष्मी राखिये ।बिन लक्ष्मी सब सून ।

गृहलक्ष्मी गये न उबरेमोती मानस चून ।।

  तो इस दिपावली पर लक्ष्मी और गृहलक्ष्मी दोनों की अर्चना कर अपना इहलोक और परलोक दानों सुधारिये। इति शुभम्।


     

     


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