प्रार्थना में शक्ति है
प्रार्थना में शक्ति है
साल 1999, मैं अपने दोनों बच्चों के साथ इंग्लैंड जा रही थी। एयर इंडिया की फ्लाइट थी और मुंबई से दस घंटे के आसपास का समय लगना था। मैं बहुत खुश थी क्योंकि यह मेरी पहली विदेश यात्रा थी । छोटा बेटा ढाई साल के आसपास और बड़ा उससे सात साल बड़ा था, पर पूरा ध्यान रखता था। हस्बैंड उन दिनों इंग्लैंड में कार्यरत्त थे।
यद्यपि दोनों बच्चों के साथ अकेले यह सफर कर रही थी पर कहीं किसी तरह की कोई परेशानी नहीं हुई थी। सफर बहुत लंबा था लेकिन फ्लाइट में कहीं किसी तरह की खाने पीने की किसी भी चीज की चिंता नहीं थी। बच्चे जो फरमाइश कर रहे थे उनको वह सब मिलता जा रहा था। पाँच घंटे तो इस तरह से बीत गए और उसके बाद अचानक से बड़े बेटे के दिमाग में क्या आया कि उसने मुझसे एक प्रश्न पूछा," माँ आपको इंग्लैंड में कोई जानता है ? अगर पापा ना आए तो?" मुंबई से निकलने से लेकर अब तक के रास्ते के बीच में यह प्रश्न मेरे मन में नहीं आया था कि अपनी धरती छोड़कर दूसरी जगह जा रही हूँ, अगर हस्बैंड ना आए तो! कोई भी कारण हो सकता, कुछ भी, ना आए तो! यह बात तो मन में आई नहीं थी । प्रश्न बच्चे ने किया था कुछ ना कुछ तो जवाब देना था। मैंने उससे कहा ," ऐसा कैसे हो सकता कि पापा ना आए जब हम जा रहे हैं तो वह मैं लेने जरूर आएँगे।" लेकिन फिर भी उसके प्रश्न ने मन में अजीब सा डर बैठा दिया । उसको तो कुछ कह ना सकी, ना मन कहीं से भी यह मानने को तैयार था कि हस्बैंड नहीं आएँगे।क्योंकि हमें तो वहाँ का कुछ भी पता ही नहीं था, क्या करना है, कैसे करना है, कहाँ जाना है, हम तो बस टिकट हस्बैंड ने भेजा था, फ्लाइट में बैठे और लंदन के लिए निकल पड़े थे ।अब क्योंकि बड़ा बेटा तो दस साल का था और वह सेटिस्फाइड नहीं था मेरे किसी भी उत्तर से। उसका एक ही प्रश्न था कि हम क्या करेंगे अगर पापा ना आए तो ? यद्यपि प्रशन बाल सुलभ था पर अंदर से मन को कहीं डरा गया । मैंने उसे भुलाने के लिए कहा कि बेटा बहुत देर हो गई तुम्हें बैठे हुए बातें करते अब थोड़ा सो जाओ । मैं सोचती हूँ हमें क्या करना है? उसको मेरी यह बात समझ आ गई और उसने भी आँखें बंद कर ली और सो गया । उसका यह प्रश्न मुझे अंदर तक कहीं ना कहीं घबराहट पैदा कर रहा था और थोड़ी देर के बाद ही सिर दर्द शुरू हो गया. माइग्रेन की पेशेंट थी हो जाता था टेंशन से ।जैसे ही वह सोया मैंने एक सैरीडान खाई और आँखें बंद करके बैठ गई। उसके बाद मेरी हर परेशानी का मेरे पास एक ही सहारा था "ओम नमः शिवाय" और आँखे बंद करके जो मैंने नमः शिवाय, नमः शिवाय पाठ करना शुरू किया ,तो करती ही रही। मेरी भी शायद आँख लगी तब तक बेटे ने फिर से हिला दिया," माँ पापा नहीं आए तो क्या करेंगे ? " मुझे नहीं मालूम कि मेरे मुँह से यह जवाब कैसे आया ! लेकिन एकदम से दिमाग के अंदर एक विचार आया जो मैंने उसे कहा और वह संतुष्ट हो गया । मैंने कहा ," बेटा अगर किसी भी वजह से पापा ना आप आप आए, पहली बात तो जरूर आएँगे, पर अगर किसी वजह से नहीं आ पाए तो हम लंदन एयरपोर्ट से बाहर ही नहीं जाएँगे। इस बात से उसको थोड़ी तसल्ली हो गई कि अब हम सुरक्षित हैं। "वापस कैसे जाएँगे ? "उसका जवाब भी अचानक मेरे दिमाग में कहाँ से आया मैं हैरान थी ,अब जब उस बात को याद करती हूँ। जब मुंबई हम निकले थे तो मेरे पास चार जगहों के टिकट थे ,लंदन पैरिस और स्विट्जरलैंड व आस्ट्रीया। मैंने उसे समझाया कि हम अपने सारे टिकट यहीं एयरपोर्ट पर वापिस दे कर यहीं से वापस इंडिया चले जाएँगे। मेरी इतनी सी बात से उसे तसल्ली हो गई कि अब कुछ भी गलत नहीं होगा और उसके चेहरे पर एक मुस्कुराहट आ गई। अब उसको सारी बातें याद है कि पापा ने क्या क्या समझाया था ,कैसे जाना है, बाहर क्या करना है। छोटा था पर बहुत समझदार, मतलब मुझे इस चीज की बहुत खुशी थी कि पूरे रास्ते में उसने अपने छोटे भाई हाथ नहीं छोड़ा। अपनी उम्र के हिसाब से जितना मेरा सहायक बन तक सकता था उससे ज्यादा वह बना हुआ था। उसके चेहरे की खुशी देखकर मुझे बड़ी तसल्ली हुई और कहीं ना कहीं अपने मन के कोने में मैंने भी इस बात को समझा लिया कि बदकिस्मती से अगर कुछ भी ऐसा हुआ तो बिल्कुल यही करेंगे जो मैंने अपने बेटे से कहा। अब मैं बिना जिस किसी डर के लंदन एयरपोर्ट पर उतरी। जैसा हस्बैंड ने समझाया था ,सिक्योरिटी चैक..... सब काम किया और हम बाहर की तरफ निकले।अभी हम गेट से बाहर नहीं निकले थे अंदर से जोर से बेटा चिल्लाया- मम्मी, पापा , पापा। देखा कि बाहर एयरपोर्ट के बाहर रेलिंग के उस तरफ हस्बैंड खड़े थे । उसके बाद तो उसकी खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था। मैंने मन ही मन प्रभु को धन्यवाद दिया और उनकी प्रार्थना से जो शक्ति पैदा हुई और मैं अपने बच्चे के प्रश्न का जवाब दे पाई । अंत भला सो सब भला। धन्यवाद प्रभु आपकी सब रहमतों के लिए। यह प्रभु का आशीर्वाद ही था कि वह मेरी पहली विदेश यात्रा एक नहीं बल्कि पाँच देशों की , हम खूब घूम कर सुंदर-सुंदर अनुभव लेकर आए। सच्चे मन से की गई प्रार्थना प्रभु तक अवश्य पहुँचती है और हम अपने हर कठिनाई को पार कर जाते हैं। वैसे भी समय तो किसी के रोके रुकता नहीं है, भक्ति की शक्ति ही मानव का सबसे बड़ा सहारा है।
