पैसों का पेड़
पैसों का पेड़
निखिल अभी सात वर्ष का ही था पर बहुत समझदार था। वह अपनी दादी व दादा जी से बहुत प्यार करता था। उसकी दादी उसे रोज कहानियाँ सुनाया करती थी। वह बड़े ध्यान से सुनता था। एक बार दादी ने बताया कि मिट्टी धन देती है। यह बात निखिल के मन बैठ गई। उसे लगा कि मिट्टी में पैसे बोने पर पैसे के पेड़ निकलते हैं। फिर क्या था जल्दी से निखिल ने अपनी गुल्लक फोड़ दी। सभी पैसों को एक छोटे से थैले में भर कर बाहर बगीचे की तरफ चल दिया। कोने में जगह ढूंढ कर एक लकड़ी से उसकी खुदाई की। अब सबसे छिप कर सारे पैसे अलग-अलग स्थान पर बो दिए। ऊपर में अच्छी तरह मिट्टी से ढक दिया। मग में पानी लेकर थोड़ा पानी भी डाल दिया। निखिल मन ही मन बहुत खुश हो रहा था कि अब जल्दी ही ढेर सारे बड़े-बड़े पैसों के पेड़ निकलेगें। वह उन्हें तोड़कर ढ़ेर सारे खिलौने व आइस्क्रीम खरीदेगा।
दादी ने देखा आजकल निखिल बहुत खुश रहता है। जिद्द भी नहीं करता है। प्रतिदिन बिना कहे ही बगीचे में पेड़ पौधों को पानी भी देता है। बीस दिन हो गए पर पैसे के पेड़ नहीं निकले तब निखिल उदास हो गया। उसने पानी देना भी छोड़ दिया।
एक रात जब दादी कहानी सुना रही थी तब उसने दादी से पूछा- दादी, मिट्टी क्या सबके घर में धन देती है ?
दादी बोली- हाँ बेटा ! जो भी बीज बोएगा। मिट्टी उसे अवश्य धन देगी। दादी पेड़ कितने दिन में निकलते हैं ? लगभग सात दिन में पौधे मिट्टी का सीना चीर कर बाहर आ जाते हैं। फिर प्यार और रख रखाव से धीरे-धीरे बड़े होने लगते हैं। फिर एक दिन धन देते हैं। निखिल को लगा कि शायद उसने ठीक ढंग से पैसों को नहीं बोया है। इसलिए पेड़ नहीं निकले।
एक दिन निखिल मिट्टी खोद कर पैसे निकाल रहा था। दादी छिप कर उसे देख रहीं थी। निखिल की टूटी हुई गुल्लक वह पहले ही देख चुकी थी। अब सब बात दादी की समझ में आ गई।
उन्होंने निखिल के सो जाने पर उसी जगह पर कुछ स्ट्रॉबेरी के बीज बो दिए। पांच-सात दिन में ही उस जगह पर छोटे-छोटे पौधे निकल आये। जब निखिल ने पौधे देखे तो वह बहुत खुश हुआ। वह बड़े प्यार से उनकी देखभाल करने लगा। दादी मन ही मन बहुत खुश हो रही थी। धीरे-धीरे पौधे थोड़े और बड़े हुए। अब उनमें छोटे-छोटे फूल निकल आए और कुछ ही दिनों सभी पेड़ों में फल निकलने लगे। लाल-लाल स्ट्रॉबेरी के फल।
निखिल बहुत अचरज में था कि पैसे की जगह यह स्ट्रॉबेरी कैसे ?
पैसे कब निकलेगें। उसे पूरी उम्मीद थी कि पैसे जरूर निकलेगें क्योंकि दादी कभी झूठ नहीं बोलती है। वह पैसे का इंतजार कर रहा था। उधर दिन दिन पेड़ फलों से भरते जा रहे थे। निखिल को मीठे फल खा कर बहुत अच्छा लगा। उन पेड़ों पर इतने अधिक फल निकल रहे थे कि दादी को भी अचरज हो रहा था। पास-पड़ोस के मित्रों को भी फल बाँटे गए। फलों के अधिक होने के कारण दादी ने सोचा क्यों न इन्हें बाजार बेच कर निखिल को पैसों के पेड़ का रहस्य बताया जाये ।
दादी ने एक टोकरी में स्ट्रॉबेरी के ढेर सारे लाल-लाल फल रखे और निखिल के साथ बाजार जाकर एक फल वाले को पाँच सौ रूपए में बेच दिए।
दादी ने वह पाँच सौ रूपए निखिल को देते हुए कहा- लो यह हैं तुम्हारे पैसों के पेड़ के पैसे। यह धरती हमें धन के रूप में फल, अनाज, सब्जी सब कुछ देती है। बस हमें मेहनत करनी चाहिए। मेहनत ही सच्चा धन है।
अब निखिल को सब बात समझ में आ गई और वह अपनी पैसे बोने की गलती पर हँसने लगा।