नीला रंग (शांत विश्वास, कल्पना
नीला रंग (शांत विश्वास, कल्पना
"मेरे बच्चे समय के साथ नहीं बदले", गुस्साते हुए भारती जी ने फोन काट दिया।
8 वर्ष पहले भारती जी अपने पति के साथ दिल्ली में रहती थी उनकी मृत्योपरांत भारती जी को अपने बेटे के साथ बंगलौर आना पड़ा। बंगलुरु जाते समय जैसा कि उन्होंने सुना था कि बच्चे दुर्व्यवहार करते हैं कुछ ऐसा ही सोचते हुए उन्होंने दिल्ली में अपना पूरा घर किराए पर देने के बाद एक कमरा अपने लिए रख लिया था कि जरूरत पड़ने पर वह अपने घर वापस आकर रह सके। बंगलुरु में प्रशांत बैंक में नौकरी करता था और बहू बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती थी। बंगलुरु में हेमा और ऋतु दादी का साथ पाकर निहाल हो उठी। इन सबके साथ 5 साल कैसे बीते पता ही नहीं चला। उन्हें कभी भी पराएपन का एहसास नहीं हुआ। वर्मा जी की पेंशन और मकान का किराया दोनों भारती जी के अकाउंट में ही आते थे। डेढ़ साल पहले बेटे की ट्रांसफर नैनीताल में हो गई। बेटे ने अपनी दोनों बेटियों को मैसूर के स्कूल और बड़ी बेटी को हैदराबाद के कॉलेज में दाखिल करवा दिया। वह दोनों अपने हॉस्टल में ही रहने लगीं। नैनीताल में पिछले साल ठंड में भारती जी की तबीयत खराब हो गई थी। ठंड में उनका अस्थमा भी काफी बढ़ गया था। बहू ने भी नजदीक स्कूल में नौकरी कर ली थी। इस साल ठंड होने से पहले ही प्रशांत भारती जी पर जोर डाल रहा था कि आप बंगलुरु में जाकर अपने फ्लैट में रहो, मैं कोशिश कर रहा हूं कि मेरी ट्रांसफर फिर से बैंगलोर में हो जाए। जब कभी लड़कियों की और बहु रानी की छुट्टियां होंगी तो वह आपसे मिलने आती रहेंगी ।भारती जी कभी भी अकेली नहीं रही थी। पति की मृत्यु के बाद प्रशांत उन्हें बंगलुरु ही ले आया था। उन्होंने जब इस बारे में अपनी अपनी देवरानी से बात करी तो वह छूटते ही बोली मैं हमेशा से कहती थी आजकल सब बच्चे अकेले और मस्त जिंदगी ही जीना चाहते हैं। तुम ही कहती थी ना कि मेरे बेटा बहू ऐसे नहीं है अब पता पड़ गया। इस तरह से बात शुरू होकर घर कुनबे में भारती जी अच्छी खासी बेचारी में तब्दील हो चुकी थी। उनकी भाभी ने भी समझाया कि आप अपने बेटे से पूछो मैं तुम्हारे साथ क्यों नहीं रह सकती?
प्रशांत से तो नहीं अपितु उन्होंने सीधा बहू से पूछा कि मैं यहां पर क्यों नहीं रह सकती? बहू ने भी सपाट सा जवाब दिया इन्हीं से पूछ लो? कहकर वह भी कमरे में चली गई। बेटे ने स्पष्ट रूप से कह दिया था कि कल मुझे दिल्ली हेड ऑफिस में भी काम है आप थोड़ी देर के लिए अपने घर में चली जाना फिर हम फ्लाइट लेकर बेंगलुरु चले जाएंगे। मैं शुक्रवार तक आपके साथ रहूंगा शनिवार इतवार को हेमा आपके पास रहने आ जाएगी और जब स्कूल की छुट्टियां होंगी तो रितु भी आ जाएगी। भारती जी का पूरी रात रोना प्रशांत को दिखा नहीं क्या? उदास मन से वह सोमवार को प्रशांत के साथ दिल्ली आ गईं। प्रशांत जब आपने बैंक गया तो वह दिल्ली में अपनी किराएदार से भी मिली और अपना कमरा खोल कर वर्मा जी और अपनी बहुत सी यादें ताजा की। बैंक का काम निपटा कर जब प्रशांत आया तो वे बंगलुरु के लिए रवाना हो गए। पूरे रास्ते उन्होंने प्रशांत से कोई बात नहीं करी। प्रशांत इतना कठोर कैसे हो सकता है कि उस पर भारती जी के आंसुओं का कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा। उनकी देवरानी सही कह रही थी कि जरूर बहू ने ही सिखाया होगा। उसके मन में तो यही है ना कि मैं उनके घर में ना रहूं। इसी उधेड़बुन में ही वह खोई थी कि बैंगलोर आ गया। दोनों टैक्सी करके अपने फ्लैट में उतरे।
प्रशांत ने मोबाइल से दोनों के खाने के लिए दाल और फुल्का मंगवाया। घर वैसे ही साफ था।चाहे कुछ भी कहो, बंगलुरु का मौसम इतना ठंडा तो नहीं था, यहां आकर स्वयमेव ही भारती जी काफी ठीक हो गई थी। अब उन्हें जुकाम सा भी नहीं लग रहा था। रात को प्रशांत के साथ बैठे हुए उन्होंने देखा प्रशांत भी कितना कमजोर और उदास सा लग रहा था। भारती जी ने प्रशांत को चाय बना कर दी और फिर दोनों ने ढेर सारी बातें करी। दूसरे दिन गार्ड एक औरत को लेकर आ गया था। प्रशांत ने भारती जी से कहा यह गार्ड की भाभी है आप अकेले नहीं रहोगी यह आपके साथ घर के काम वगैरह के लिए यहीं रहेगी जरूरत पड़ने पर कोई भी काम गार्ड को बोल देना। पड़ोस में रहने वाले डॉक्टर मेहता भी मिलने के लिए आए और उन्होंने कहा माताजी अस्थमा के कारण आपका इतनी ठंड में वहां रहना ठीक नहीं था।मैंने प्रशांत जी को वादा किया है कि आपकी मम्मी का बहुत अच्छे से ख्याल रखूंगा। इसलिए मैं रोज ही शाम को घर जाने से पहले आपसे मिलकर ही जाया करूंगा।
इतने दिनों से भारती जी ने प्रशांत के लिए क्या सोचा था। शुक्रवार को हेमा कॉलेज से आ गई थी और प्रशांत की फ्लाइट थी। जाते हुए प्रशांत भारती जी से लिपट कर रो उठा और बोला मम्मी मेरे लिए भी आपको छोड़ना उतना ही मुश्किल है जितना एक समय दिल्ली से मुझे बंगलुरु भेजना आपके लिए मुश्किल था। आपने ही कहा था ना बेटा इसमें तेरी भलाई ही है और आज वैसा ही मैं सोच रहा हूं हम सब चाहते हैं कि आप स्वस्थ रहो और आपका हाथ हमारे सर पर हमेशा रहे। प्रशांत की आंखों की कोरों में भी आंसू स्पष्ट थे। कुछ सर्दियां कम हो जाए तो - ----
"अरे पापा इतना इमोशनल मत हो हम सब साथ-साथ हैं" हेमा भी जोर से हंस दी।
तभी उनकी देवरानी का फोन आया, "जीजी इतना मत रो, बच्चे तो समय के साथ बदल ही जाते हैं , उनकी अपने घर गृहस्थी हो जाती है, क्या सोच करना, परमात्मा में मन लगाओ" तभी गुस्साते हुए भारती जी बोली "चुप रहो, मेरे बच्चे समय के साथ नहीं बदले।"
