HARISH KANDWAL

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मंगलू का संघर्ष ( भाग- 2)

मंगलू का संघर्ष ( भाग- 2)

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 मंगलू ऋषिकेश बस अड्डे पर बैठा हुआ है, दिल्ली, सहारनपुर, रूड़की, जाने वाली चार पाँच बसें आकर चली गयी लेकिन देहरादून जाने वाली बस नहीं आयी, मंगतू ने बहुत से लोगों से पूछा कि आज देहरादून की बसें नहीं आ रही हैं, सबने कहा कि थोड़ी देर पहले ही एक बस यहाँ से गयी, लेकिन आधा घंटा तो मंगलू को ही हो चुका था। लगभग एक घंटा बस अड्डे पर बीत गया, उसने नटराज में मैक्स से जाने का विचार बनाया तब तक रूद्रप्रयाग से हिमगिरी बस जो देहरादून जा रही थी वह आ गयी, मंगलू उसमें बैठ गया, रानीपोखरी में सात मोड़ के पास रास्ते पर ट्रक पलटने के कारण वहॉ लम्बा जाम लगा हुआ था, देहरादून से ऋषिकेश आने वाली सब बसें इसी जाम में फंसी हुई थी। मंगलू ने विधायक के पीए को फोन किया लेकिन फोन लग नहीं रहा था, आधा घंटा रास्ते पर व्यतीत हो गया, बड़ी मुश्किल से जाम खुला।


गाड़ी रानीपोखरी थानो के रास्ते की ओर मु़ड़ गयी, मंगलू को रिस्पना पुल जाना है, एक तो रमेश काका का सामान देना है, और विधायक आवास भी रिस्पना से नजदीक है। इसी उहापोह में गाड़ी के परिचालक को पूछा कि क्या गाड़ी रिस्पना होकर नहीं जायेगी, परिचालक ने कहा भाई जी हमारा रूट तो यही है, यदि आपको रिस्पना जाना है तो रानीपोखरी चौक से सिटी बस में जा सकते हो। मंगलू ने बस रूकवायी और उतर गया, किराये के लिए परिचालक से वाद विवाद भी हो गया, लेकिन परिचालक ने आधा किराया वापस कर दिया।


मंगलू बस से उतरा और सड़क के किनारे खड़ा होकर आटो का इंतजार करने लगा, तेज धूप होने के कारण पसीने से लतर पतर हो चुका है तब तक एक ई रिक्शा वाला आ गया, उसने 100 रूपये मांगे , मंगलू ने सोचा यार अब बहस करके कोई फायदा नहीं है, वह बैठ गया। सीटी बस अड्डे पहुँचा तो वहाँ देहरादून के लिए बस खडी थी दो चार सवारी बैठे थे, मंगलू भी सीट पर बैठ गया, आधे घंटे तक सीटी बस वाले ने सवारियों के लिए गाड़ी रोककर रखी, मंगलू सोचने लगा कि आज सुबह किसका मुँह देखा अनावश्यक विलम्ब हो रहा है, इससे अच्छा तो घरवाली की बात सुन लेता, औऱ घर का काम निपटा लेते, मेरे को ही क्या पड़ी है इस सड़क की, कार्यकर्ता तो सब है, ठेका मुझे मिलना है नहीँ, वह तो रसूखदारो को ही मिलेगा, इतने में गाड़ी स्टार्ट हो गई, चलो अब तो चलेगी ही, लेकिन स्टार्ट करने के 10 मिनट बाद ही गाड़ी आगे बढ़ी, कुछ देर जौलीग्रांट, फिर भानियावाला, उसके बाद डोईवाला, में रुकी, लगभग 2 घण्टे में गाड़ी रिस्पना पुल पहुंची। रमेश काका के बेटे को फोन किया, उसने कहा कि बस 10 मिनट में बेटा पहुँच रहा है, मँगलू रिस्पना पुल पर बैठकर इंतजार करने लगा, 10 मिनट की जगह आधे घण्टे बाद रमेश काका का नाती आ गया, उसको सामान पकड़ाया और 03 नम्बर का टैम्पो में बैठ गया। आराघर पर उतरकर सीधे पैदल विधायक होस्टल की ओर चल पड़ा, विधायक आवास में अपनी विधानसभा को खोजते खोजते 10 मिनट निकल गया, दो चार को पूछकर पता लगाया तो तीसरी मंजिल पर मिल गया। 


  दरवाजा खटखटाया तो अंदर से लड़का आया, उसने मंगलू काका का परिचय लिया, मंगलू ने बताया कि वह विधायक जी के विधानसभा क्षेत्र का निवासी है, सड़क के प्रकरण पर आया है, लड़के ने आदर के साथ अंदर बैठने को कहते हुए कहा कि आप तब तक बैठो, विधायक जी अभी अभी पार्टी कार्यालय गए हैं, तब तक आप चाय पानी पियो।  


  वह लड़का वँहा पर सबके लिये चाय पानी की व्यवस्था करता था। मँगलू ने कहा कि आज पीआरओ साहब का नम्बर नहीं लग रहा है, लड़के ने बताया कि उनका फोन खराब हो रखा है, बनाने दे रखा है। 


  मंगलू की मजबूरी थी, वहीं बैठना पड़ा, इतनी दूर से आया है खाली हाथ भी नहीं जा सकता है, फिर सोचने लगा कि विधायक का एक कार्यालय कम से कम क्षेत्र में तो होना ही चाहिए, ताकि लोग अपनी बात और कागजात वहाँ दे सके, जब चुना क्षेत्र से जाता है तो जनता को देहरादून आने की जरूरत क्या है मन में बगावत के बीज फूटने लगे, चुने हुए प्रतिनिधियों को जनता की समस्या वहीं सुनकर या अपने प्रतिनिधियों से गाँव जाकर वहाँ से कागज मंगवाने चाहिए।  


  दिन के तीन बज चुके हैं, ऑफिस वाले लड़के ने खाने के लिये पूछ लिया, भूख भी लगी थी, मना नही कर पाया, लड़के ने अरहर की दाल औऱ चावल रख दिया, इधर विधायक जी को फोन करने की सोची फिर सहम गया, अगली बार हिम्मत की तो कॉल लग गई, विधायक जी ने कहा कि 6 बजे तक पहुंचते हैं आप तब तक चाय पानी पियो। 

  मँगलू को गुस्सा बहुत आया लेकिन मन मसोरकर रह गया, तब तक वह लड़का थाली में खाना लेकर आ गया। मंगलू को अरहर की दाल पसंद नहीं है, लेकिन भूख में तो गूलर भी पकवान लगते हैं, यहाँ ज्यादा नखरा नहीं दिखा सकता था, यदि घर मे घरवाली ने यह खाना परोसा होता तो वह गुस्से में थाली को फेंक चुका होता, लेकिन यहाँ चुपचाप खा लिया।

  कुछ देर विधायक होस्टल में घूमा सबकी नाम प्लेट पढ़ी, वँहा का रहन सहन देखकर वह भी विधायक बनने का ख्वाब देखने लग गया, टाइम पास के लिये दिन में ही ख्वाबो का संसार सजा लेने में बुराई भी कुछ नहीं है, उसने अपनी पूरे विधानसभा क्षेत्रफल से लेकर अपनी जान पहचान, और अपने वोटरों को भी गिनती कर ली, विधायक का सपना देखते देखते उसे झपकी आने लगी, इतनी देर में ऑफिस वाला लड़का चाय लेकर आ गया। झपकी टूटी और चाय का कप देकर तरोताजा हो गया, लड़के की सेवा भाव से बहुत खुश हुआ, फिर लड़के से उसके घर परिवार के बारे में पूछने लग गया। इतने में 6 बज गए, बाहर गेट पर हॉर्न सुनाई दिया खुश हुआ कि विधायक जी आ गए होंगे, लेकिन वह गाड़ी सामने वाली मंजिल के पास खड़ी हो गई, आशा के भाव निराशा में बदल गए। अब वह ऊँघने लग गया, लड़का रात के खाने की व्यवस्था करने पर लग गया, उसने पूछा कि रात का खाना यही बनाऊ या फिर कुछ व्यवस्था है, अब वह ना हाँ बोल पाया और न ही ना, क्योंकि अभी विधायक जी कब तक आये कुछ पता नहीं, तब तक उसने घर मे पत्नी को फ़ोन लगाया और कहा कि तुम मंडुवे की रखवाली करने खेत में चले जाना, अभी तो मैं विधायक हॉस्टल में इंतजार कर रहा हूँ, पत्नी ने उधर से दो चार बात सुनाई और फोन काट दिया। 


  अभी मंगतू इंतजार कर रहा है, विधायक जी का रात कहाँ रहूंगा, कितना समय और लगेगा इसी उधेड़बुन में बैठा है, अगले अंक में क्या कुछ होता है पढ़िए अगले भाग में।


क्रमशः


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