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Sheetal Raghav

Children Stories Tragedy Inspirational

4  

Sheetal Raghav

Children Stories Tragedy Inspirational

मजबूरी

मजबूरी

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सोनू परेशान है स्कूल में फीस न जमा करने के कारण" पिछला साल भी कुछ अनमना सा चला गया। 

बापू फसल पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाए हैं। मेरा मतलब है वह खेती पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाए हैं। बापू की आंख फसल पर लगी है कि फसल अच्छी आवे और मुनीम को ......मुनीम को कर्जा उतर जावे,जो पिछले साल चढी गयो थो।

जैसे तैसे सोनू की मां दुलारी ने घर पर सिलाई बुनाई को काम करके घर चलायो। आंखों से परेशानी है पर हाथ तंग है। जा लाने चश्मा पहन कर घर के कामों के समय निकालकर मशीन पर हाथ आजमायो,की चार पैसे आवेगे तो बच्चों की किताबें पेन पेंसिल आ जावेगी।

दुलारी सोचे है कि, अगर में चार किताबें पढ़ लेती तो कछु ढंग को काम कर पाती। पर मैं ठहरी अंगूठा छाप, पर म्हारी इच्छा है कि म्हारे दोनों बच्चा अच्छे से पढ़ पावे। जई लाने तो दिन भर जा मुई, मसीन मे दीदे फोडु हूँ।

जा घर को कछु हिल्लो पानी को इन्तजाम हे जाए। म्हारे बाल बच्घा कछु लायक हे ,

जाय।

बस।

इसलिए दुलारी ने सिलाई का काम पसारा। उधर बापू खेत में जी लगावे हैं। पिछले साल की तरियाँ, इस साल भी फखल खराब ना हो जाए और चार पैसे कम जाए। 

दुलारी मैं खेत पर जा रहा हूं। तू सोनू के हाथे खाना भिजवा दीजो।

हओ ,भिजवा रही हूं, तुम चलो।

"सोनू और उसके भाई मोनू" दोनों की फिक्र में मांगीलाल (सोनू का पिताजी) परेशान है। गये बरस बच्चे स्कूल ना जा पाऐ और ना ही जा बरस साल जावे की कछु उम्मीद है। 

खैर ......

खेत में पानी छोड़ कर मांगीलाल साहूकार से पैसे उधार लेकर खाद पानी की व्यवस्था करने के लिए शहर चला गया।

शहर से खाद पानी की व्यवस्था करके सोनू का बापू लौटकर आया तो उसने खूब मन लगाकर खेती की।

 खेती भी बहुत अच्छे से लहलहा गई। पर इस साल टिड्डियों के दल ने खेतों पर हमला बोल दिया। भागत - भागत और उनको भगाते - भगाते भी वह आधा खेत चट कर गए।

उदास मांगीलाल अपनी हालत से दुखी होने लगा और मन संभाल कर बाकी बची हुई फसल के पकने का इंतजार करने लगा। 

इधर सोनू बहुत खुश है। फसल कटेगी तो फिर "स्कूल की फीस" जमा हो जाएगी और स्कूल की फीस जमा होते ही वह स्कूल जा पाएगा। 

पर विपदा आ पड़ी है। इसकी उसे कोई खबर नहीं हुई।

मांगीलाल फसल के पकने पर उसे काटकर दूर शहर बेचने के खातिर गयो और लौटकर साहूकार और मुनीम को कर्जा उतार कें वह अपने घर वापस आ गयो। 

बापू !

सोनू ने पूछा बापू ! इस बार म्हारी और मोनू की फीस भर दोगे। क्या ?

मांगीलाल ने दुखी हो अपना खाली हाथ हिलाया "नहीं भर पाऊंगाँ"। 

बोल दुखी होकर, वह भीतर कोठरी में चला गया।

मजबूर था मांगीलाल, मजबूर था किसान, फसल बेच कर भी एक पिता के हाथ आयी थी, तो बस "मजबूरी"।


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