मेरी जिंदगी
मेरी जिंदगी

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में हूँ एक नारी ,जिसका काम घर की चार दिवारी।
करू में सबकी फ़िकर, दिन हो या हो रात की बारी।
पर में निकलना चाहू,नन्हीं चिड़िया सी बेचारी।
बढ़कर कुछ नया अब करना है,जीबन में अब उभरना है।
सारे फर्ज निभाया है।जीवन में कुछ करना है।
पाना है जो मेने चाहा परिंदों से पंख फैलाकर।
अब बस मुझको उड़ना है,बस उड़ना है।