Nitu Mathur

Others

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मेरा अस्तित्व

मेरा अस्तित्व

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"ये मेरी जिंदगी है.. मुझे पता है क्या करना है, मुझे तुम्हरा ज्ञान नहीं चाहिए" जोर से चिल्लाते हुए अर्जुन गुस्से सेएक सांस में सब कुछ बोलकर वहां से चला गया, जबकि आराधना उसे मूरत बनके एकटक उसे देखती रही । जिस तरह से वो बाहर से दुखी और परेशान थी, उससे कहीं ज्यादा वो अंदर से दर्द और पीड़ा से भरी हुई थी। उसके माथे की सलवटें, नम आंखे,और थरथराते होठों ने उसे एक भावनात्मक बहावों में घेर लिया... और उसे पिछले १७ सालों से एक मां के रूप में जैसे प्रश्नचिन्ह लगाने लगे।उसके पति अमित भी इन सभी बातों के गवाह थे , लेकिन उसके लिए ये सब बातें जैसे साधारण और महत्वहीन थी , उसने बड़ी ही बेपरवाही से आराधना को चुप होने के लिए कहा , क्योंकि अर्जुन एक यंग एडल्ट था, बड़ा हो रहा था, और उसे अपना एक स्पेस चाहिए था।


इतने सालों की शादी और मातृत्व के बाद आराधना को अगर कुछ मिल रहा था, तो वो सिर्फ और सिर्फ, "अकेलापन और उदासीनता थी " लेकिन उसने अपनी इस हालत का कभी किसी से जिक्र नहीं किया, उसने अपने चेहरे की झुर्रियां और हाथों के कड़ेपन को...जो कि उसके मातृत्व के पूरे सफ़र के गवाह थे, ध्यान देखा और सोचने लगी... वो हाथ जो उसकी उंगली पकड़ कर चलना, दौड़ना सीख रहे थे, वही हाथ , उसके हाथों से छूटकर ज़िंदगी में इस तरह आगे बढ़ने लगे, जैसे रूखे हाथों से रेत फिसल जाती है। किसी को ये बताना कितना मुश्किल और दुखदाई होता है, कि एक मां जिसने अपने बच्चे को जन्मा, पाला _ पोसा है, उसे ही अपने बच्चे की जिन्दगी के बारे में सोचने या बोलने का कोई हक नहीं। 


आराधना, एक पेशे से एक कैरियर काउंसलर थी, जो की अपने क्षेत्र में बहुत कुशल थी। युवा बच्चों की की कैरियर संबंधी सभी समस्याओं और उलझनों को दूर करने में एक कुशल सलाहकार थी। उसकी बच्चों के समस्याओं को सुनने, समझने की क्षमता ,और फिर उन्हें उसी के अनुरूप सलाह और सटीक राय देने की कुशलता , उसे बहुत सफल बना रही थी। उन बच्चों के माता पिता भी उसकी इस कुशलता से बहुत प्रभावी थे और अत्यंत आभारी भी थे। लेकिन फिर उसका खुद का बेटा उसकी राय क्यू नहीं लेता था? क्या वो एक मां के रूप में उसे सही दिशा देने में असफल हो गई ? क्या उसने खुद को taken for granted लेना शुरू कर दिया? वो इस तरह के सवालों के भंवर में डूबी जा रही थी, और उसे वापस उसी पीड़ा और परेशानी ने घेर लिया था। 


एक मां होने के नाते आराधना हमेशा अपने तौर तरीके में व्यावहारिक रहती थी, और घर की सुख शांति को बनाए रखने में हमेशा से अर्जुन के साथ प्रकाश स्तंभ जैसे खड़ी रहती थी , जिससे कि वो कभी भी जिन्दगी में अपना ध्यान और दिशा से ना भटके । वो हमेशा ही अर्जुन और अमित के साथ थी, और कभी भी उनकी इच्छाओं और महत्वकांक्षाओं का विरोध नहीं करती थी। घर को लगातार अच्छे से संभालने और बिना किसी की मदद से कुशलता से चलाने के उसके इस अथक प्रयास को कभी भी नहीं सराहा गया। वो बेकार की, बेमतलब उम्मीदों के बोझ तले दबी जा रही थी, जिसके कारण शायद वो एक " सुपर वूमेन" के खिताब से वंचित ही रही और हमेशा ही अपने ही दुःख और निराश में घिरी रही .. और बाकी सभी के लिए ही " मुस्कुराती रही"। 


और आज जब वो बीते सालों का सोच रही थी, उसे खुद को जबरन ये यकीन दिलाना पड़ा कि अर्जुन के इस तरह के व्यवहार की जिम्मेदार वो खुद ही है , उसे हमेशा हल्के में लेना , उसके काम में साथ नहीं देना, उसे समय पर सही दिशा नहीं देना.. ये सब उसी का काम था, जो उसने नहीं निभाया। उसने अपनेआप को इन सभी बेकार की उम्मीदों और ख्वाहिशों से आज़ाद कर दिया था। उसकी आंखों से आंसू गालों पर ऐसे गिरने लगे मानों पानी का झरना बह रहा हो, और जैसे बिना इजाज़त के ही उसके चेहरे की धूल को साफ करते हुए उसकी पहचान मिटा रहे हों। उसे लगा, उसे खुद को फिर से संभालना होगा, और उन के सामने ये जाहिर करना होगा कि , उसकी खुद की भी कोई पहचान है, और वो भी आदर और सम्मान की हकदार है।


 इन सब उदासी और निराशा वाली बातों के बाद और , अपने अंदर के तूफ़ान को शांत करने के बाद आराधना को जैसे अब एक रोशनी सी दिखाई दी। उसने अपनें आंसू पोंछे और वो अर्जुन के कमरे की ओर गई जहां अमित भी असमंजस में बैठा था । वो दोनो को ही एक ठहराव और आदेश भरे अंदाज़ से बोलने लगी... कि जिस तरह अर्जुन की ख़ुद की जिन्दगी है, उसी तरह उसकी भी है, और वो अर्जुन और अमित दोनों से ही ये उम्मीद रखती है कि उसे भी अलग से एक इंसान की तरह ही प्यार और सम्मान मिलना चाहिए, उसने ज़ोर देकर कहा कि जिस तरह आप सब एक दूसरे को दिल से प्यार करते हैं, इसका मतलब ये कतई नहीं है कि उन दोनोको उसे हल्के में लेनेकी आजादी मिल गई है, और वो भी घर में अपनी बात रखने का हक रखती है , सुनने का हक रखती है, उसकी सलाह भी बाकियों की तरह ही मायना रखती है । आराधना अमित और अर्जुन से ये बात बार बार दोहरा रही थी, कि उनका सम्मान मदर्स डे, और विमेंस डे मनाने से नहीं , बल्की उसे और हर औरत को पूरी ज़िंदगी आदर, और बराबर का दर्जा देने से होता है। अर्जुन ने तुरंत आराधना को गले लगाया और अपनी मां के साथ ऐसे रूखे बर्ताव के लिए माफी मांगी । 



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