मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

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मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

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लड़का हुआ है

लड़का हुआ है

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जमुनिया सुबह से ही भागी-भागी फिर रही थी, बहू के दर्द जोर मार रहा था, डिलीवरी का समय नजदीक था। बहू की मां भी आ चुकी थी। आते ही उसने प्रबल दबाव देना शुरू कर दिया ।

और कब तक इंतजार करोगे सरकारी एंबुलेंस का, शकुंतला सिन्हा नर्सिंग होम वालों को फोन लगा दो, बीस मिनट में आ जाएंगे ।’

बहू की मां ने जमुनिया को सलाह दी।

जमुनिया भागी- भागी बरामदे में आई- ‘अरे सुनते हो ! समधिन कह रही हैं कि प्राइवेट एंबुलेंस बुला लो, बहू के दर्द कुछ ज्यादा ही हो रहा है। बेटा परदेश है, कहीं कुछ हो गया बहू को तो...।’

शिवहरे जमुनिया की बातें सुन एक अदृश्य अनहोनी की कल्पना करते ही सिहर उठे, ‘ठीक है ! मैं फोन करता हूं, पैसा जो लगेगा वो खर्च करेंगे, रुपया- पैसा तो हाथ का मैल है, फिर कमा लेंगे। बस जच्चा -बच्चा दोनों सुरक्षित हो जायें।’


आधा घंटे बाद बहू नर्सिंग होम में भर्ती हो गई। डॉक्टर साहिबा ने मशीन से सब जांचे कीं, अल्ट्रासाउंड वगैरह निकाला और रिपोर्ट तैयार कर दी।

‘देखो, बच्चा पेट में उलट गया है, तुरंत ऑपरेशन करना होगा, अगर आपरेशन नहीं किया तो जच्चा-बच्चा दोनों की जान को खतरा है । आप फाइल पर हस्ताक्षर कर दीजिए और तीस हजार रुपए सिक्योरिटी फीस काउंटर पर जमा करा दीजिए, ताकि ऑपरेशन की प्रक्रिया शुरू की जा सके ।’


शिवहरे डॉक्टर साहिबा की बात सुनकर डर गये। दोनों हाथ जोड़ गिड़गिड़ाते हुए बोले - ‘डाक्टर साहिबा जी, मेरी बहू को बचा लीजिए जो खर्च होगा वो सब हम उठाने के लिए तैयार हैं, बस अब आप जल्दी ही आपरेशन कर दीजिये ।

डॉक्टर साहिबा ने पास खड़ी नर्स को देखा और एक कुटिल मुस्कान के साथ आपरेशन थिएटर में चली गयी।


कुछ देर बाद नर्स ने सूचना दी ‘लड़का हुआ है’... शिवहरे पूरे अस्सी हजार का बिल भर कर घर लौट आए, परंतु वे खुश थे। डॉक्टर साहिबा ने समय पर ऑपरेशन करके जच्चा- बच्चा दोनों को सुरक्षित बचा लिया ।



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