लाल रंग (प्रेम और जुनून)
लाल रंग (प्रेम और जुनून)
यह उस समय की बात है, जब किसी को नारी मुक्ति आंदोलन का पता न था, बेटी बचाओ अभियान से कुछ लेना-देना नहीं था ।उसके तीन पुत्रियां और 5 पुत्र थे उसकी एक लड़की की शादी हो चुकी थी और एक लड़के की होने वाली थी ।फिर भी और बच्चे छोटे-छोटे होते हुए सबसे छोटे की उम्र लगभग 8 साल की थी ।सारा दिन गृहस्थी में उलझी रहती थी। बच्चों की भूख का इंतजाम करना ब्याहता लड़की की विदाई का सामान तैयार करना, आने वाली बहू के लिए कपड़े तैयार करना ,गाय-भैंसों का भी ख्याल करना ,यहां तक कि एक कुत्ते को भी समय पर रोटी मिल जाए, और उसके बैठने की जगह साफ रहे, यह सब काम मां के थे। आज के कंप्यूटर में भी शायद वायरस आ जाए और वह गलती कर जाए पर धन्य है वह मां! उसके गाय भैंस ,बच्चे ,खाना पीना, कभी दिनचर्या नहीं बदलती थी। उसकी छत्रछाया में सब संतुष्ट थे।
सवेरे से उठी हुई रात तक कई काम करती हुई वह हंसने के लिए भी समय पा लेतीं थीं। हर बच्चा बिना कोई लिखित आदेश के अपना काम जानता था, और करता था। लड़के पढ़ते चले गए और बढ़ते चले गए।
जल्दी ही मां के घर एक नई बहू भी आ गई थी। खूब मिठाई , हलवा पूरी बांटे गए ।पूरे गांव में खाना खिलाया गया। मां अभी भी उसी जोश से सारा काम समेटने में ही लगी हुई थी। उसकी दिनचर्या में बहू के आने के बाद में भी कोई फर्क नहीं आया था। ना उसे कोई बहू से शिकायत थी ,और ना ही कोई बहुत ज्यादा प्रेम। बस उसने यह और मान लिया था कि उसके घर में एक नया बच्चा आ गया है और मां के प्यार की छत्रछाया उस नववधू पर भी पड़ गई थी।
जब लोग कहते थे तुम्हारी बहू तो बहुत पढ़ी-लिखी आई है तो वह मुस्कुरा भर देती थी क्योंकि वह जानती थी चाहे कितनी भी पढ़ी लिखी बहू हो, पर उसके जैसे मनो सेरों का हिसाब सिर्फ २० चवन्नियां ३० अठन्नी करके जो वो निकाल सकती थी ऐसा कितना भी पढ़ने वाली बहू आराम से नहीं निकाल सकती ।
घर के किसी भी काम की कोई जिम्मेवारी उस नववधू पर नहीं थी। घर का काम वैसे ही चल रहा था जैसे पहले चल रहा था। वह खुद ही सवेरे हर बच्चे का लंच बनाती और शाम को भी हर लड़का पिता के साथ वैसे ही खाना खाता था जैसे कि पहले खाना खाते थे। नई बहू के लिए मां ने कोई काम छोड़ा हुआ नहीं था। वह चाहे तो पूरा दिन काम कर ले ,चाहे तो वह सिर्फ सोती रहे, चाहे वह सारा दिन और बच्चों के साथ बात करती रहे ।मां अपने काम में वैसे ही व्यस्त थी और घर के और सदस्य अपने अपने कामों में वैसे ही। बस नई बहू के आने के बाद में थोड़ा सा इनके घर में जो तब्दीली आई थी वह यह थी कि अब नई बहू अकेली ही भाई के साथ घूमने चली जाती थी। अपना कमरा अलग से सजाती थी ।अपना सारा सामान अलग रखती थी ।हमेशा नए कपड़े पहन कर के अपनी सजावट पर भी ध्यान देती रहती थी ।
ससुराल से आई हुई लड़की जो अपने आप को मेहमान का दर्जा मिलने की कामना लेकर के आई थी ,उसे सारा काम अब भी वैसे ही संभालना पड़ रहा था ,जैसे कि वह पहले संभालती थी। उसके गले से मां का यह व्यवहार नहीं उतरता था ।उसे लगता था मां नई बहू को ज्यादा ही छूट दे रही है ।और इसीलिए सब भाई बहन अपनी उस बहन के साथ खड़े हो गए और एक नई तरह का विद्रोह घर में पनप गया ,जिसने कि घर का चूल्हा ही ठंडा कर दिया ।उस बहन के साथ और बहने भी कोप भवन में चली गई। मां ने अपने बच्चों को समझाने की असफल कोशिश करी ,फिर किसी तरीके से लड़कों की सहायता ले करके ही घर का काम चलाया।
जितनी मां कमजोर हो रही थी उतना ही नई बहू का पलड़ा भी कमजोर होते जा रहा था, क्योंकि रसोई का एकछत्र राज्य मां की बेटियों ने संभाल लिया था। उस दिन हमेशा के जैसे जब मां बाहर से खेती गाय और भैंस का काम निपटा कर घर में आकर बैठी तो देखा रसोई युद्ध के मैदान में बदली हुई है ।और जीत उसकी बेटियों की ही हो रही थी ।बहू ने घबराकर अपना आखिरी हथियार चला दिया था। उसने मां के सामने ही बेटे का हाथ पकड़कर के कहा कि मैं यहां पर नहीं रहूंगी।
मां एकदम सकते में आ गई। उसने पहली बार घर में बहुत जोर से सब को डांटा। ममतामयी मां डांट भी सकती है, नई बहू ने ऐसा पहली बार देखा। छोटे बच्चे तो छोटे बच्चे बड़े बेटा बेटी भी रसोई छोड़कर के गधे के सर पर सींग के जैसे कहीं गायब हो गए थे। तब मां ने बहु को हाथ पकड़ कर के अपने पास बुलाया और कहा सुनो ,देखो, तुम यहां शादी हो कर के आई हो और शादी के बाद वही घर तुम्हारा होता है जहां तुम शादी हो करके आते हो ।
मैं भी तुम्हारी ही तरह इस घर की नहीं हूं पर यह घर मेरा है। ऐसे ही अब यह घर तुम्हारा है ।और तुम बड़ी हो इस घर की।इस नाते सब को तुम्हारा कहना मानना ही चाहिए । यह शादी शुदा लड़की तुम्हारे घर की मेहमान है ,पर फिर भी अगर तुम्हें पसंद नहीं है तो तुम इसे विदा कर सकती हो, इतना हक है तुम्हें। और कुंवारी लड़की ने तो एक दिन जाना ही है ।तुम अपने आप सोच सकती हो कि उसका क्या करना चाहिए ।अगर फिर भी तुमने कहीं जाना है तो "जाओगी तुम नहीं" -------"जाएंगें हम ----"क्योंकि तुम इस घर की मालिक हो। नववधू मां को देखती रही। अपने कमरे में जाकर उसे पहली बार खुद पर ग्लानि हो रही थी। पर वह अपने आप को बहुत सुरक्षित और बड़ा महसूस कर रही थी ।थोड़ी देर में छोटे भाई बहन उसके लिए खाना थाली में डाल कर ले आए थे।
दूसरे दिन जब सुबह हुई तो नववधू भी घर की एक ममतामयी मां में तब्दील हो चुकी थी। सब उसका कहना मान रहे थे ,और घर बहुत ही सुचारू रूप से चल रहा था।
