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Prem Bajaj

Others

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Prem Bajaj

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क्योंकि लड़के रोते नहीं

क्योंकि लड़के रोते नहीं

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15 साल का था मैं जब मेरे पापा की मृत्यु हुई थी, घर में माँ, चाची, चाची के दो बेटे गौरव 10 साल, और सौरभ 8 साल का था, उन सब का दायित्व अब मुझ पर था, तब मैं दसवीं कक्षा में था। फरवरी का महीना ..थोड़ी- थोड़ी ठण्डी थी, कि अचानक से रात के 2 बजे मम्मी और चाची के जो़र -ज़ोर से रोने की, चीखने चिल्लाने की आवाज़ सुन कर मैं हड़बड़ा कर उठा, देखा पापा बाथरूम के बाहर बरामदे में गिरे पडे़ है, मम्मी ज़ोर ज़ोर से उन्हे पुकार रही है ..... उठिए ना, उठिए बाहर ठण्ड है अन्दर चलिए, आप बोलते क्यों नहीं, कुछ तो बोलिए, आप बोल क्यो नहीं रहे। चाची समझ चुकी थी कि पापा नहीं रहे ,लेकिन मम्मी इस बात को स्वीकार नहीं रही थी। चाची ने रिश्तेदारों को फोन कर दिया थोड़ी देर में सब रिश्तेदार भी आ गये। अब तक छोटे भाई भी शोर सुन कर उठ गये थे और मेरे पास आ गये, मैंने दोनो को कस के बाहों में बाँध लिया जैसे मैं उन्हे साँत्वना दे रहा हूँ। चाची और उनके बेटे हमारे साथ ही रहते थे.....सौरभ जब छह महीने का था तो ना जाने एक दिन अचानक चाचा कहाँ चले गये आज तक उनका कोई पता नहीं चला। तब से पापा ने ही चाचा के परिवार को सँभाला, चाचा के जाने के बाद चाची के परिवार की कुछ मदद तो पापा करते थे, कुछ चाची ने भी सिलाई का काम शुरू कर दिया था, क्योंकि पापा की तनख्वाह से दो परिवार नहीं चल सकते थे, और चाचा की भी कोई जमा पूँजी नहीं थी, क्योंकि चाचा नौकरी करते थे और बस मुश्किल से गुज़ारा ही होता था। कुछ समय से पापा शराब बहुत पीने लग गये थे, पूछने पर कुछ भी नहीं बताते थे, बस हमेशा यही कहते सब ठीक हो जाएगा। मुझे हमेशा कहते थे तू मेरे घर का दीपक है, तेरे आने से मेरा घर रौशन हो गया है, इसलिए उन्होने मेरा नाम दीपक रखा था । .....मैं दो महीने का था जब पापा मुझे अनाथ आश्रम से लाए थे। मम्मी -पापा ने मुझे कभी नहीं बताया ये सब लेकिन दूनिया कहाँ छुपने देती है एसी बातों को, सब राज़ उजागर कर ही देती है। मम्मी-पापा की शादी को "बीस" साल हो गये थे और चाचा की शादी को भी "बारह" साल हो गये थे। अभी तक दोनो के घर कोई बच्चा नहीं हुआ था, तो दादी और मम्मी के बहुत कहने पर पापा अनाथ-आश्रम से बच्चा गोद लेने पर मान गये थे। मेरे घर में आने के बाद सब बहुत खुश रहते थे, मुझे सब बहुत प्यार करते थे। और फिर पाँच साल बाद चाची के घर भी दो साल में दो बेटे पैदा हुए, तब मुझे और भी ज्यादा प्यार मिलने लगा कि तू हमारे लिए लकी है। जब चाचा चले गये तो दो घरों का किराया भी भारी पड़ता था। अकेले पापा की तनख्वाह और दो घर, तब से चाची भी फिर हमारे साथ रहने लगी। कभी-कभी अगर मम्मी या पापा गुस्से में कुछ कह जाते तो चाची हँस कर सह जाती थी, क्योंकि वो पापा का एहसान मानती थी कि उन्होने चाची को मुसीबत के समय सहारा दिया।

लेकिन फिर भी चाची और मम्मी में बहुत प्यार था, मैं भी दो माओ का लाडला बना हुआ था, उस दिन रात को जब पापा फैक्ट्री से छुट्टी होने के बाद घर आए तो किसी से कुछ नहीं बोले बस अपने कमरे में चले गये, और मम्मी को बुला कर कुछ देर तक बातें की और खाना खाकर सो गये, शायद जैसे कोई बात उन्हे अन्दर ही अन्दर परेशान कर रही थी। अब तक सारे रिश्तेदार आ चुके थे, किसी ने डॉक्टर को बुला लिया था। डॉक्टर आए और आई ऍम सॉरी कह कर चले गये। सब रिश्तेदार मुझे समझा रहे थे, सांत्वना दे रहे थे कि तुम्हें सारे परिवार को सँभालना है, तुम्हें स्ट्रोंग बनना है, " बेटा रोना नहीं, हिम्मत से काम लेना है" मैने भी दिल पर पत्थर रख कर सारा क्रिया -क्रम किया। लेकिन मैं रो नहीं सकता था, लड़का हूँ ना।.. दो दिन बाद मम्मी ने बताया कि पापा ने सारी जमा-पूँजी किसी चिटफँड में लगाई थी कि पैसे चार गुना हो जाएंगे तो दीपक कोई बिज़नस कर लेगा, उसे हमारी तरह नौकरी नहीं करनी पड़ेगी, वो पैसे डूब गये थे, और पापा ने तो मेरे लिए दुकान भी देख ली थी ताकि मैं अपना मोबाइल शॉप खोलूँगा। लेकिन अब परिवार की ज़िम्मेदारी सँभालनी थी मुझे तो 10 वीं की परिक्षा देकर मैंने मोबाइल रिपेयरिंग का काम सीखा और उसी काम से शुरूआत की, आज मेरा अपना मोबाइल शोरूम है, पापा का सपना आज पूरा हो गया, लेकिन पापा नहीं है उसे देखने के लिए , गौरव को थाईलैंड भेज दिया है ,सौरभ M.B.A. कर रहा है। मेरी शादी भी हो गई है, दो बेटे है मेरे, चाची मम्मी आज भी एक साथ है सब, उनकी नोक झोंक आज भी वैसे ही चलती है, मेरे दोनो बेटे दो -दो दादियों के लाडले है, आज सब कुछ है, फिर भी कभी-कभी मन करता है कि एक बार जी भर के रो लूँ, निकाल लूँ अपने मन की भड़ास, लेकिन नहीं रो सकता लड़का हूँ ना, मैं भी तो अपने बेटों को यही कहता हूँ "लड़के रोते नहीं" फिर मैं कैसे रो सकता हूँ।


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