कोरा सच

कोरा सच

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हाँ! वह कोरा सच ही तो था जो न जाने कितनी परतों में छुपा हुआ था। अनगिनत झूठ की परतों में दबकर कोरा सच भी झूठ सा लगने लगा था।


सच ने हज़ार मिन्नतें कीं दुनिया के सामने आने की।पर झूठ के आईने के सामने उसकी एक न चली।


अचानक आईना छन्न से गिरा और टुकड़े-टुकड़े हो गया। हर टुकड़े की नज़र पैनी हो गई।


सच लहुलुहान तो हुआ पर सबकी नज़रों में आ गया। झूठ दुम दबाकर भागा।जिस आईने के सामने खड़ा हो कर झूठ अपनी ढींगे हाँकता था वह भ्रमात्मक था। उसके टूटने पर सारा भ्रम टूट गया, सच सामने आ खड़ा हुआ।झूठ हार गया।


सच का हुआ बोलबाला, झूठ का मुँह काला।




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